CG Politics | Photo Credit : IBC24
रायपुर: CG Politics बस्तर में बेकाबू धर्मांतरण पर एक और बयान आ चुका है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने दो टूक ये कह दिया कि धर्मांतरण पर अभी तक कांग्रेस-बीजेपी में केवल ब्लेमगेम ही हुआ है। नेताम ने ये भी कहा कि, धर्मांतरण को अगर कोई रोक सकता है तो आदिवासी और संघ मिलकर ही रोक सकते हैं। जानकारों का दावा है कि सड़क किनारे के ज्यादातर गांव धर्मांतरित हो चुके हैं। तमाम दावों के बावजूद मिशनरीज की गतिवधियां तेज हैं। ऐसे में सवाल ये है कि आखिर चूक हो कहां रही है? क्या धर्मांतरण गिरोह इतना ताकतवर हो चुका है कि पूरा सिस्टम मिलकर भी उसे रोक नहीं पा रहा है?
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CG Politics छत्तीसगढ़ के सियासी गलियारे में सीनियर आदिवासी नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री, अरविंद नेताम के धर्मांतरण पर दिए इस बयान के बाद पक्ष-विपक्ष में खलबली मच गई। दरअसल पूर्व कांग्रेसी नेता अरविंद नेताम, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बुलावे पर संघ मुख्यालय नागपुर पहुंचे जहां उनकी संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात हुई। नेताम ने RSS के प्रशिक्षण वर्ग समापन के मौके पर बतौर चीफ गेस्ट संबोधित करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण सबसे बड़ा मुद्दा है, बस्तर में ये खतरे की घंटी है, धर्मांतरण से आदिवासियों के असतित्व को खतरा है। साथ ही नेताम ने बीजेपी-कांग्रेस दोनों सरकारों को घेरा, कहा कि धर्मांतरण पर कोई सरकार गंभीर नहीं रही बस एक-दूसरे पर दोषारोपण करते रहे। जाहिर है अपने पूर्व सीनियर नेता अरविंद नेताम का ये बयान कांग्रेस को जरा भी रास नहीं आया। PCC चीफ दीपक बैज ने खुला आरोप लगाया कि RSS मुख्यालय जाते ही अरविंद नेताम के सुर बदल गए। वो भूल गए कि RSS कभी आदिवासियों की पक्षधर नहीं रही। बैज के आरोप पर पलटवार किया कैबिनेट मंत्री केदार कश्यप ने कहा कि दीपक बैज ने अपनी सरकार के कार्यकाल के 5 साल चर्च खुलवाने में निकाल दिए,लगातार धर्मांतरण को संरक्षण दिया। जब एक्शन लेना था तब मुंह में लड्डू डालकर बैठे रहे।
धर्मांतरण को लेकर संघ ने फिर साफ किया है कि स्वेच्छा से किए गए धर्मांतरण पर संघ को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन लालच या जबरदस्ती से धर्मांतरण गाली के समान है। ये भी साफ है कि एक तरफ डबल इंजन सरकार बस्तर से नक्सलियों के खात्मे पर युद्धस्तर पर कार्य कर रही है दूसरी तरफ संघ बस्तर में आदिवासियों के बीच भरोसा बढ़ाने की कवायद में जुट रहा है। नेताम का संघ मुख्यालय पहुंचना इसी का हिस्सा बताया गया। सवाल ये है कि क्या संघ का बस्तर में आदिवासियों के करीब जाना, कांग्रेस को खटक रहा है, क्या ये आने वाले वक्त में कांग्रेस की चुनौतियां बढ़ाने वाला है। सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या बस्तर में धर्मांतरण पर संघ और आदिवासी नेता एक होकर काम करेंगे?