(फाइल फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, 16 अगस्त (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह शहर के निवासियों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है और मवेशियों को जहरीला कचरा खाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे वे स्वास्थ्यवर्धक दूध देने में असमर्थ हो जाएंगे।
उच्च न्यायालय ने डेयरी क्षेत्र में चल रही आवासीय कॉलोनी पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि डेयरी कॉलोनियों में भारी अतिक्रमण एवं अवैध निर्माण है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी एस अरोड़ा की पीठ ने कहा, ‘‘ जब गायें जहरीला कचरा खाने लगेंगी, तो वे स्वास्थ्यवर्धक दूध नहीं देंगी। हम यह अपने लिए नहीं, बल्कि सिर्फ़ अगली पीढ़ी के लिए कर रहे हैं। अगर आप एमसीडी की कार्रवाई (तोड़फोड़) से परेशान हैं, तो एमसीडी के अपीलीय न्यायाधिकरण में जाएं।’’
पीठ ने कहा, ‘‘ इन लोगों को डेयरियों से कोई मतलब नहीं है। इन्हें सिर्फ़ अपनी संपत्तियों से मतलब है। ये सब दलाल हैं। इनको दिल्ली के नागरिकों के स्वास्थ्य से कोई मतलब नहीं है। हमें दिल्ली के नागरिकों के स्वास्थ्य से मतलब है।’’
उच्च न्यायालय ने भलस्वा में उन कुछ खास डेयरी मालिकों को तोड़फोड़ की कार्रवाई से नौ अगस्त को दिया गया अंतरिम संरक्षण 23 अगस्त तक बढ़ा दिया है, जो स्थानांतरित होने के इच्छुक हैं, बशर्ते कि वे अपने संबंधित भूखंडों पर निर्माण की सीमा, अपने पास मौजूद मवेशियों की संख्या आदि के संबंध में हलफनामे में बताएं।
जब उच्च न्यायालय ने अन्य को कोई संरक्षण देने से इनकार कर दिया, तब अन्य लोगों ने अपने अभियोग आवेदन को वापस लेने तथा एमसीडी के अपीलीय न्यायाधिकरण में जाने की छूट मांगी।
सुनवाई के दौरान एमसीडी के वकील ने कहा कि निगम किसी डेयरी के खिलाफ नहीं, बल्कि अवैध एवं अनधिकृत निर्माणों के विरूद्ध कार्रवाई कर रहा है एवं इन अवैध निर्माणों में डेयरी के जमीन पर शोरूम का निर्माण भी शामिल है।
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अगली पीढ़ी के सामने खराब दूध के सेवन के कारण जानलेवा बीमारियों का खतरा पैदा नहीं होना चाहिए।
उच्च न्यायालय भलस्वा डेयरी कॉलोनी के निवासी होने का दावा करने वाले लोगों द्वारा दायर विभिन्न आवेदनों पर सुनवाई कर रहा था, जो अधिकारियों द्वारा चलायी जा रही तोड़फोड़ की कार्रवाई या सीलिंग के निर्देश से परेशान थे क्योंकि उन्हें बेघर होने का डर है।
भाषा राजकुमार माधव
माधव