नयी दिल्ली, 12 फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को संविधान के अनुच्छेद 334 ए (1) की वैधता को चुनौती देने वाली उस याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है जिसमें संसद में महिलाओं के आरक्षण को प्रभावी बनाने के लिए परिसीमन को एक पूर्ववर्ती शर्त के रूप में निर्धारित किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने अटॉर्नी जनरल के अलावा कानून और न्याय मंत्रालय को नोटिस जारी किया क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 334 ए (1) की वैधता को चुनौती दी गई है। इस मामले की सुनवाई नौ अप्रैल को होगी।
याचिकाकर्ता ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडिया वीमेन’ का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 334ए(1) महिला आरक्षण अधिनियम के क्रियान्वयन को प्रभावी रूप से स्थगित करता है।
यह कानून लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीट महिलाओं के लिए आरक्षित करता है।
अनुच्छेद 334ए (1) के अनुसार लोकसभा या विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीट के आरक्षण से संबंधित संविधान के प्रावधान अगली जनगणना के बाद परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के उपरांत प्रभावी होंगे।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, एंग्लो- इंडियन के लिए ऐसी कोई पूर्व शर्त मौजूद नहीं है।
भाषा संतोष अविनाश
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