नयी दिल्ली, 11 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह ‘‘नाम लिये जाने’’ को लेकर ‘‘नाराज’’ नहीं है और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष आलोचना का स्वागत करता है। अदालत ने साथ ही कहा वह न्यायिक कामकाज में व्यवधान सहन नहीं कर सकती।
अदालत ने यह टिप्पणी 2018 में उसके मौजूदा न्यायाधीश के खिलाफ कुछ कथित टिप्पणियों को लेकर कई व्यक्तियों के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान की।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘हम न्यायसंगत और निष्पक्ष आलोचना का स्वागत करते हैं। यदि आपको अदालतों की उचित और निष्पक्ष आलोचना करनी है, तो आप स्वतंत्र हैं…(लेकिन) जिस चीज की सराहना नहीं की जा सकती और जो अदालत के प्रभाव को कम करती है, वह न्यायिक व्यवस्था में व्यवधान पैदा करना है। इसे हम सहन नहीं करेंगे।’’
न्यायमूर्ति मृदुल और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ ने कहा, ‘‘हम नाम लिये जाने से नाराज नहीं हैं, लेकिन जब व्यवस्था बाधित होती है तो हम बहुत चिंतित होते हैं।’’
वर्ष 2018 में न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर के खिलाफ कुछ व्यक्तियों ने ट्वीट कर पक्षपात का आरोप लगाया था क्योंकि उन्होंने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को नजरबंदी से रिहा कर दिया था।
न्यायमूर्ति मुरलीधर उस समय दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे और हाल में वह उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए।
इसके बाद, उच्च न्यायालय द्वारा फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री, रंगनाथन और अन्य के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू की गई।
लेखक आनंद रंगनाथन के वकील ने बुधवार को अदालत को बताया कि उन्होंने ‘‘अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए’’ एक हलफनामा दायर किया है।
उन्होंने कहा कि इस मामले में बिना शर्त माफी मांगना अवमाननापूर्ण आचरण के आरोपों को स्वीकार करने जैसा होगा।
उनके वकील ने पहले अदालत को बताया था कि उनका बयान केवल उनकी स्थिति के संबंध में था कि अदालत की अवमानना की कोई परिपाटी नहीं होनी चाहिए।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि नौ नवंबर तय की।
उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव से एक पत्र प्राप्त करने के बाद 2018 में वर्तमान मामले में अवमानना कार्यवाही शुरू की थी।
न्यायाधीश के खिलाफ ट्वीट के लिए चेन्नई की साप्ताहिक पत्रिका ‘‘तुगलक’’ के संपादक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति के खिलाफ भी अवमानना कार्यवाही शुरू की गई थी।
गुरुमूर्ति के खिलाफ कार्यवाही बाद में अक्टूबर, 2019 में बंद कर दी गई थी। इस साल की शुरुआत में, अग्निहोत्री ने माफ मांग ली थी जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया था और उन्हें आरोपमुक्त कर दिया था।
राव ने अपने पत्र में कहा था कि ट्वीट एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर हमला करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास था।
भाषा
देवेंद्र माधव
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