रिज प्रबंधन बोर्ड से अनुमति प्राप्त निर्माण गतिविधियों पर आगे नहीं बढ़ें: उच्च न्यायालय

रिज प्रबंधन बोर्ड से अनुमति प्राप्त निर्माण गतिविधियों पर आगे नहीं बढ़ें: उच्च न्यायालय

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  • Publish Date - December 22, 2023 / 09:23 PM IST,
    Updated On - December 22, 2023 / 09:23 PM IST

नयी दिल्ली, 22 दिसंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को शहर के अधिकारियों से कहा कि वे रिज प्रबंधन बोर्ड से अनुमति प्राप्त चुनिंदा प्रस्तावित निर्माण गतिविधियों के संदर्भ में आगे कोई कदम नहीं उठाएं।

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि विकास को संतुलित किया जाना चाहिए और दिल्ली शहर के फेफड़े के रूप में कार्यरत रिज को संरक्षित किया जाना चाहिए। अदालत ने सवाल किया कि क्या 11 दिसंबर को हुई बैठक में बोर्ड द्वारा किसी भी ‘सकारात्मक’ कार्य को मंजूरी दी गई थी।

रिज दिल्ली में अरावली पहाड़ी शृंखला का विस्तार है और यह एक चट्टानी, पहाड़ी और जंगली क्षेत्र है। प्रशासनिक कारणों से इसे चार क्षेत्रों – दक्षिण, दक्षिण-मध्य, मध्य और उत्तर में विभाजित किया गया है। ये चारों जोन कुल मिलाकर लगभग 7,784 हेक्टेयर में फैले हैं।

रिज के संरक्षण से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने वन क्षेत्र में कई निर्माण गतिविधियों को बोर्ड द्वारा दी गई मंजूरी पर चिंता व्यक्त की। इन निर्माण गतिविधियों में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) से सार्क विश्वविद्यालय तक जाने वाली एक नई सड़क और आरके पुरम में 2.487 एकड़ भूमि पर भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के महानिदेशालय और केंद्रीय रिकॉर्ड कार्यालय की एक इमारत शामिल है जिसपर बोर्ड की मंजूरी मिली है।

बोर्ड की मंजूरी के बाद इस मामले को आगे विचार के लिए केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) के पास भेज दिया गया है।

न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, ‘‘यदि रिज प्रबंधन प्राधिकरण (आरएमबी) का यही मत है कि यहां कोई रिज नहीं होना चाहिए, तो मैं क्या कर सकता हूं? मुझे कोई एक भी सकारात्मक चीज बताएं (जो उस कुछ मिनटों की बैठक में हुई) जो रिज के संरक्षण के लिए है…(एक एजेंडे को छोड़कर) बाकी सब केवल तबाही है। यह इसके लिए नहीं है…रिज फेफड़ा है।’’

अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि सड़क किनारे लगे पेड़ और झाड़ियां दिल्ली शहर के लिए हरित क्षेत्र की जरूरत को पूरा नहीं करतीं और रिज को बचाना जरूरी है।

सुनवाई के दौरान मौजूद वन विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि आईटीबीपी कार्यालय के निर्माण के लिए प्रस्तावित भूमि मुख्य रिज का हिस्सा नहीं है, बल्कि ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ का हिस्सा है।

इस मामले में न्यायमित्र के रूप में नियुक्त वकील गौतम नारायण और आदित्य एन प्रसाद ने तर्क दिया कि आरएमबी के पास जंगल को खत्म करने वाली अनुमति देने की कोई शक्ति नहीं है। इस मामले की अगली सुनवाई आठ जनवरी को होगी।

भाषा संतोष रंजन

रंजन