Marital rape: पत्नी पर क्रूरता का लाइसेंस नहीं है शादी, पति का जबरन संबंध बनाना भी दुष्कर्म, HC का बड़ा फैसला

Karnataka high court on marital rape: कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि रेप (rape) तो रेप ही रहेगा, चाहे वो पति के द्वारा किया गया हो या किसी दूसरे आदमी के द्वारा, मेरे विचार से शादी करके किसी इंसान को क्रूर जानवर की तरह बर्ताव करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता। forced relationship of husband is also rape

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  • Publish Date - March 24, 2022 / 10:36 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:28 PM IST

Marital rape

Karnatka High court on Marital rape : बेंगलुरू। मेरिटल रेप (Marital rape) को लेकर देश में चल रही चर्चा के बीच कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnatka High court) का एक अहम फैसला आया है, पत्नी की ओर से पति के खिलाफ लगाए गए बलात्कार (rape) के आरोप में चलाए जा रहे केस को रद्द करने से हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है। अदालत ने फैसले में कहा कि किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध की गई बर्बरता या दुष्कर्म बलात्कार ही माना जाएगा, चाहे वो उस आदमी के द्वारा ही क्यों न किया गया हो, जो उस महिला का पति हो। इसे लेकर कानून में दी गई छूट संपूर्ण नहीं है। हमारे विचार से शादी से किसी इंसान को क्रूर जानवर की तरह बर्ताव करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता ।

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Marital rape: पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने ये फैसला दिया, उसके खिलाफ पत्नी ने 21 मार्च 2017 को शिकायत दर्ज कराई थी, पुलिस ने छानबीन के बाद चार्जशीट पेश की, स्पेशल कोर्ट ने उसे आधार मानते हुए पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 376, 498A और 506 के तहत आरोप तय करने का आदेश दे दिया। पोक्सो एक्ट के कुछ प्रावधान भी लगाए गए, पति ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उसकी तरफ से दलील दी गई कि पत्नी की शिकायत पर पति के खिलाफ रेप का केस नहीं चलाया जा सकता क्योंकि ये मेरिटल रेप माना जाएगा, जिसे आईपीसी की धारा 375 के अपवाद-2 के तहत छूट मिली हुई है।

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सबको बराबरी का हक

Marital rape: कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने फैसले में कहा कि हमारा संविधान सबको बराबरी का अधिकार देता है, लेकिन पति को कानून में दी गई ये छूट भेदभावपूर्ण है, कानून कहता है कि अगर कोई पुरुष किसी महिला के खिलाफ अपराध करेगा तो उसे सजा मिलेगी, लेकिन अगर वो पुरुष उस महिला का पति होगा, तो उसे सजा नहीं मिलेगी, मेरे नजरिए में ये एक पुरातनपंथी सोच है, जहां एक महिला को पुरुष से कमतर देखा जाता है। यह समानता के अधिकार के खिलाफ है, कोर्ट ने कहा कि ये अपवाद 1837 में लागू किए गए नियमों से आया है, उस समय शादी को एक कॉन्ट्रैक्ट की तरह देखा जाता था और पुरुष महिला को अपनी बपौती समझते थे, लेकिन अब समय बदल गया है। आजादी के बाद हमारे संविधान में महिला और पुरुष को बराबर अधिकार दिए गए हैं।

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‘जबरन यौन संबंध एक जख्म जैसे’

लाइव लॉ के मुताबिक, अदालत ने फैसले में कहा कि एक पति द्वारा अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध जबरन यौन संबंध बनाने के गंभीर परिणाम होते हैं, ये महिला पर शारीरिक ही नहीं, मानसिक रूप से भी असर डालता है। इससे उसकी आत्मा पर हमेशा के लिए जख्म बन जाते हैं, ऐसे में कोई भी वो पुरुष जो अपनी पत्नी के साथ बलात्कार करता है, उसे धारा 376 के तहत सजा मिलनी ही चाहिए। अपराध तो अपराध ही रहेगा, रेप रेप ही रहेगा, चाहे वो पति के द्वारा किया गया हो या किसी दूसरे आदमी के द्वारा, यह कहना कि पति अपने किसी भी काम के लिए विवाह जैसी संस्‍था द्वारा संरक्षित है, ठीक नहीं होगा।