IBC24 Stands With Manipur
IBC24 Stands With Manipur : ये मंजर.. ये हालात.. ये वाकया.. ये हक़ीकत.. एक बंद दरवाजे पर ला खड़ा कर रही है हमें… कहां को चले थे.. कहां पहुंच गए हम.. कोई कैसे दोहराए ये तफसील बार-बार.. कोई कैसे बताए कि वो किस अजाब से गुजर रही है बार-बार.. स्त्री हूं.. तो क्या यही कसूर है मेरा.. मेरी देह नुमाइशी तो नहीं.. मेरी रूह बंजर तो नहीं… मेरा वजूद इतनी बेगैरत तो नहीं..वक्त के बीहड़ में जब भी सिर उठाते हैं भेड़िए.. हर बार शिकार मैं ही बनती हूं।
एक अराजक अंधेरा हर वक्त तैरता है इस उजली सदी के सीने में.. और उसी अराजक अंधेरे की कोख से जन्मता है वो शैतानी जेहन.. जो बार-बार इसी तरह स्त्री को करता है निर्वसन.. मेरा दर्द चुप्पी के तहखानों में घुट जाता है.. आखिर क्यों.. हर बार मेरी त्रासदी देह की दीवार पर नाखून की खरोंचों से लिखी जाती है..।
ये कहानी हैं उस राज्य कि जिसने न जाने कितनी त्रासदियां सही, कितनी अनदेखियों को सहा.. हम बात कर रहे हैं मणिपुर की.. नफरत की आग में जलते मणिपुर से सामने आई वीभत्स दृश्यों ने मानवता को झकझोर दिया हैं। (IBC24 Stands With Manipur) उन दृश्यों ने इंसानी भावनाओं को शर्मसार कर दिया हैं। महिलाओं के साथ हुई बर्बरता ने ना सिर्फ देश और राज्य बल्कि हर उस एक को भीतर से हिलाकर रख दिया हैं जो जज्बातों से आगे बढ़कर इंसानियत की कीमतों को समझता हैं।
दो दिन पहले तक जिसे सिर्फ सामुदायिक हिंसा समझा और माना जा रहा था उस झड़प ने अपनी सारी हदों को पार कर दिया। बर्बरता का ऐसा नग्न नृत्य हुआ कि हर कोई मन मसोसकर उन दृश्यों को देखता रह गया। लेकिन एक सवाल जो हर किसी के मन में हैं कि क्या इसे रोका जा सकता था? क्या महिलाओं कि आबरू जिस तरह लूटी गई, उस लूट-खसोट से उन्हें बचाया जा सकता था?
दरअसल मणिपुर में जो कुछ हुआ और जो कुछ हो रहा हैं वह शायद ही भारत की धरती पर पहले नजर आया हो। श्रेष्ठ होने की आत्ममुग्धता में डूबे उन्मादियों ने दो महिलाओं को ना सिर्फ घर से घसीटकर निकाला बल्कि उन्हें नग्न कर पूरे गाँव में घुमाया। तमाशबीन तमाशा देखते रहे और उन्मादी अपनी हवास पूरी करते रहे। इस बर्बरता से आगे बढ़कर उन बेबस महिलाओं को भीड़ ने अपनी अपनी हैवानियत का भी शिकार बनाया और बलात्कार जैसे जघन्यता को अंजाम दिया गया।
लग रहा होगा कि काश कहानी यही ख़त्म हो जाती तो ज़िंदा जान से कभी ना कभी ये दर्द रुखसत हो जाता लेकिन हैवानियत का किस्सा तो अभी बाकी था। महिलाओ की इज्जत उतरने के बाद उन्मादी भीड़ की मंशा उन्हें मौत के घाट उतारने की भी थी। (IBC24 Stands With Manipur) और ऐसा ही हुआ। महिलाओं का क़त्ल कर दिया गया.. और हमेशा की तरह दुनिया देखती रह गई।।
IBC24 इस पूरी घटना की कड़ी शब्दों में निंदा ही नहीं कर रहा बल्कि उन महिलाओं के दर्द को समझने की कोशिश भी कर रहा हैं। हम हुक्मरानो के उस चुप्पी को भी सुनने की कोशिश में जुटे हैं जिन्हे महिलाओं की चीख सुनाई नहीं दी। यहाँ सवाल सिर्फ आपका ही नहीं बल्कि हर किसी का है। जिम्मेदारी उस हर एक की हैं जो खुद को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ में ऐसे अंतहीन दर्द की कहानियों को पीछे छोड़ जाता हैं।
आखिर क्यों ये हालात पैदा हुए? 4 मई की इस बर्बरता को क्या रोका जा सकता था और रोका जा सकता था तो रोकने की कोशिश क्यों नहीं हुई। क्रूरता के कलंक को अपने दामन में देखने की जिद क्यों रही? क्यों आज हर रक्षक भक्षक की तरह नजर रहा। क्या सिर्फ वोटो की सियासत ने इंसानियत की कीमत को पीछे छोड़ दिया हैं? क्या सिर्फ सख्त कार्रवाई के सरकारी आदेश से यह तय हो जाएगा की अब महिलाओं की आबरू पर कोई हाथ नहीं डालेगा? आप कैसे इस बात का वादा कर पाएंगे?
इस मामले पर अब तक चुप रहने वाले देश के प्रधानमंत्री ने आज चुप्पी तोड़ी और कहा कि कानून को हाथ में लेने वालो को बख्शा नहीं जाएगा। पर सवाल वही क्या पीएम के ख़ामोशी से हालातो में सुधार हो रहा था? आज हर दल, हर नेता और हर आम भारतवासी चीख-चीख कर सवाल का रहा.. इसका जवाब देना पड़ेगा.. (IBC24 Stands With Manipur) आपके आश्वासन और सांत्वना से ना ही महिलाओं की आबरू लौटकर आएगी और न ही उनकी जान.. ना ये कलंक मिटने वाला..