बेंगुलुरु, 15 जुलाई (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि माता-पिता नाजायज हो सकते हैं लेकिन बच्चे नाजायज नहीं होते क्योंकि बच्चे के जन्म में उसकी अपनी कोई भूमिका नहीं होती।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न और न्यायमूर्ति एच संजीव कुमार की खंडपीठ ने यह टिप्पणी हाल में एकल पीठ के फैसले को रद्द करने के दौरान की जिसने के संतोष की उस याचिका को खारिज कर दिया था। संतोष ने सरकारी बेंगलुरु इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी (बीईएससीओएम) में पिता की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने का निर्देश देने का अनुरोध अदालत से किया था।
संतोष ने वर्ष 2014 में लाइनमैन ग्रेड-2 के पद पर तैनात पिता की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी का आवेदन किया था। हालांकि, याचिकाकर्ता का जन्म मृतक की दूसरी पत्नी से हुआ था, जिससे उसने पहली पत्नी के रहते शादी की थी। बीईएससीओएम ने अपनी नीति का हवाला देते हुए संतोष के आवेदन को अस्वीकार कर दिया था।
कंपनी के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसे एकल पीठ ने रद्द कर दिया।
दो न्यायाधीशों की पीठ ने एकल पीठ के फैसले को रद्द करते हुए रेखांकित, ‘ हम कहना चाहते हैं कि इस दुनिया में कोई भी बच्चा मां और पिता के बिना पैदा नहीं होता। बच्चे का उसके जन्म में कोई भूमिका नहीं होती। इसलिए कानून को यह तथ्य स्वीकार करना चाहिए कि माता-पिता नाजायज हो सकते हैं लेकिन बच्चा नाजायज नहीं हो सकता।’’
पीठ ने रेखांकित किया कि यह संसद पर है कि वह कानून – बच्चों की वैधता- में एकरूपता लाए और उन तरीकों पर विचार करे जिससे वैध शादी से बाहर पैदा होने वाले बच्चों को भी सुरक्षा दी जा सके।
इसके साथ ही अदालत ने बिजली विभाग द्वारा 23 सितंबर 2011 को जारी परिपत्र के उस प्रावधान को भी रद्द कर दिया जिसके तहत शादी से बाहर पैदा हुए बच्चे अनुकंपा नियुक्ति के लिए योग्य नहीं थे।
भाषा धीरज उमा
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