मोदी सरकार ने पश्चिम एशिया पर भारत के सैद्धांतिक रुख को त्यागा, अब भी संवाद के लिए प्रयास करे: सोनिया

मोदी सरकार ने पश्चिम एशिया पर भारत के सैद्धांतिक रुख को त्यागा, अब भी संवाद के लिए प्रयास करे: सोनिया

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  • Publish Date - June 21, 2025 / 04:52 PM IST,
    Updated On - June 21, 2025 / 04:52 PM IST

नयी दिल्ली, 21 जून (भाषा) कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने शनिवार को आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने गाजा की स्थिति और इजराइल-ईरान सैन्य संघर्ष पर चुप्पी साधते हुए भारत के सैद्धांतिक रुख और मूल्यों को त्याग दिया है।

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को आवाज बुलंद करनी चाहिए और पश्चिम एशिया में संवाद को प्रोत्साहित करने के लिए उपलब्ध हर राजनयिक मंच का उपयोग करना चाहिए।

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने अंग्रेजी दैनिक ‘‘द हिन्दू’’ के लिए लिखे एक लेख में आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने इजराइल और फलस्तीन के रूप में दो राष्ट्र वाले समाधान से जुड़े भारत के सैद्धांतिक रुख को त्याग दिया है।

सोनिया गांधी ने लेख में कहा, ‘‘ईरान भारत का लंबे समय से मित्र रहा है और गहरे सभ्यतागत संबंधों से हमारे साथ जुड़ा हुआ है। इसका जम्मू-कश्मीर समेत महत्वपूर्ण मौकों पर दृढ़ समर्थन का इतिहास रहा है।’’

उन्होंने उल्लेख किया कि वर्ष 1994 में ईरान ने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत की आलोचना करने वाले एक प्रस्ताव को रोकने में मदद की थी।

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने कहा, ‘‘वास्तव में, इस्लामी गणतंत्र ईरान अपने पूर्ववर्ती, ईरान के ‘शाह शासन’ की तुलना में भारत के साथ कहीं अधिक सहयोगी रहा है, जिसका झुकाव 1965 और 1971 के युद्धों में पाकिस्तान की ओर था।’’

सोनिया गांधी का कहना है, ‘हाल के दशकों में भारत और इजराइल के बीच भी रणनीतिक संबंध विकसित हुए हैं। इस महत्वपूर्ण स्थिति में आने से हमारे देश का तनाव कम करने और शांति बहाल करने का नैतिक दायित्व और शक्ति बढ़ी है। यह कोई कोरा सिद्धांत नहीं है। पश्चिम एशिया में लाखों भारतीय नागरिक रह रहे हैं और काम कर रहे हैं, इसलिए इस क्षेत्र में शांति स्थापना एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दा है।’

उनके मुताबिक ईरान के खिलाफ इजराइल के मौजूदा हमले उस समय किए गए हैं, जब शक्तिशाली पश्चिमी देशों ने उसकी अमानवीय कार्रवाइयों को नजरअंदाज कर उसे लगभग समर्थन दिया है।

सोनिया गांधी ने कहा, ‘कांग्रेस, सात अक्टूबर, 2023 को हमास द्वारा किए गए भयानक और अस्वीकार्य हमलों की स्पष्ट रूप से निंदा करती है, पर हम इजराइल की भयावह और बर्बर प्रतिक्रिया के खिलाफ चुप नहीं बैठ सकते। इन हमलों में फलस्तीन के 55,000 से अधिक नागरिक अपनी जान गंवा चुके हैं। परिवार, पड़ोस और यहां तक कि अस्पताल भी ध्वस्त कर दिए गए हैं। गाजा अकाल के कगार पर खड़ा है और वहां के नागरिक जो पीड़ा डोल रहे हैं, उसे शब्दों में कहना संभव नहीं है।’

उन्होंने दावा किया कि इस मानवीय त्रासदी के सामने, नरेंद्र मोदी सरकार ने शांतिपूर्ण दो-राष्ट्र समाधान के प्रति भारत की दीर्घकालिक और सैद्धांतिक प्रतिबद्धता को त्याग दिया है, जिसके अंतर्गत एक संप्रभु, स्वतंत्र फलस्तीन की कल्पना की गई थी, जो सुरक्षा व सम्मान के साथ इजराइल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर रह सके।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘इजराइल द्वारा गाजा में तबाही और अब बिना किसी कारण ईरान पर सैन्य हमलों के खिलाफ भारत की चुप्पी साफ करती है कि मौजूदा सरकार ने अपनी नैतिक और कूटनीतिक परंपराओं को त्याग दिया है। हमने न केवल अपनी साख खो दी है, बल्कि अपने मूल्यों को भी छोड़ दिया है। ‘

सोनिया गांधी ने कहा, ‘‘अब भी देर नहीं हुई है। भारत को स्पष्ट रूप से अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए, जिम्मेदारी से काम करना चाहिए तथा तनाव कम करने और पश्चिम एशिया में बातचीत फिर से स्थापित करने के लिए हर राजनयिक मंच की मदद लेनी चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि कांग्रेस ईरान की धरती पर बमबारी और सुनियोजित तरीके से की जा रही हत्याओं की निंदा करती है।

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने कहा, ‘इससे युद्ध और भड़कने की आशंकाएं बढ़ गई हैं, जिसके गंभीर क्षेत्रीय एवं वैश्विक परिणाम होंगे। हाल ही में इज़राइल द्वारा गाजा में की गई क्रूरतापूर्ण और अमानवीय कार्रवाइयों की तरह ही ईरान के खिलाफ यह सैन्य कार्यवाही भी आम नागरिकों के जीवन और क्षेत्रीय स्थिरता को ताक पर रखकर की जा रहीं हैं। इस तरह की कार्रवाइयों से केवल अस्थिरता बढ़ेगी और निरंतर टकराव और झगड़े बने रहेंगे।’

उनका कहना है कि इससे भी अधिक चिंताजनक यह है कि यह हमला उस समय किया गया है जब ईरान और अमेरिका के बीच चल रहे कूटनीतिक प्रयास सकारात्मक संकेत दे रहे थे।

सोनिया गांधी ने कहा कि इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बातचीत के बजाय टकराव का रास्ता चुना, लेकिन इससे भी ज्यादा अफसोस की बात यह है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो कभी अमेरिका के अंतहीन युद्धों और सैन्य औद्योगिक व्यवस्था की मिलीभगत के खिलाफ खुलकर बोलते थे, वो भी अब इस विनाशकाटी रास्ते पर चलने को तैयार हैं।

भाषा हक अविनाश प्रशांत

प्रशांत