आक्रमणकारियों से परास्त नहीं होना भी धर्म का हिस्सा : मोहन भागवत

आक्रमणकारियों से परास्त नहीं होना भी धर्म का हिस्सा : मोहन भागवत

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  • Publish Date - April 26, 2025 / 09:35 PM IST,
    Updated On - April 26, 2025 / 09:35 PM IST

(तस्वीरों के साथ)

नयी दिल्ली, 26 अप्रैल (भाषा)राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि अहिंसा का सिद्धांत हिंदू धर्म में निहित है, जिसमें कहा गया है कि हमलावरों से परास्त नहीं होना भी कर्तव्य का हिस्सा है।

उन्होंने एक पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि अहिंसा के सिद्धांत लोगों को इस विचार को अपनाने पर आधारित हैं।

आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘कई लोग इन सिद्धांतों को पूरे दिल से अपनाते हैं, जबकि अन्य ऐसा नहीं करते हैं और परेशानी बढ़ाते रहते हैं। ऐसी स्थिति में धर्म कहता है कि हमलावरों से परास्त नहीं होना भी धर्म (कर्तव्य) का हिस्सा है। गुंडों को सबक सिखाना भी कर्तव्य का हिस्सा है।’’

उन्होंने कहा कि भारत ने कभी भी अपने पड़ोसियों को नुकसान नहीं पहुंचाया है, लेकिन अगर कोई बुरी नजर डालता है तो उसके पास कोई विकल्प नहीं बचता।

संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘हम कभी भी अपने पड़ोसियों का अपमान या नुकसान नहीं करते। लेकिन अगर कोई बुराई पर उतर आए तो दूसरा विकल्प क्या है? राजा का कर्तव्य लोगों की रक्षा करना है, राजा को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।’’

भागवत ने सनातन धर्म को सही अर्थों में समझने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि ‘धर्म तब तक धर्म नहीं है जब तक वह सत्य, शुचिता, करुणा और तपस्या के चार सिद्धांतों का पालन नहीं करता।’’उन्होंने कहा, ‘‘इससे परे जो भी है वह अधर्म है।’’

भागवत ने कहा कि वर्तमान समय में धर्म केवल कर्मकांड और खान-पान की आदतों तक सीमित रह गया है। उन्होंने कहा, ‘‘हमने धर्म को रीति-रिवाजों और खान-पान की आदतों तक सीमित कर दिया है, जैसे कि किसकी किस तरह पूजा की जानी चाहिए और क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए। यह एक आचार संहिता है… सिद्धांत नहीं। धर्म एक सिद्धांत है।’’

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हिंदू समाज को हिंदू धर्म को समझने की जरूरत है, जो दुनिया के सामने अपनी परंपराओं और संस्कृति को पेश करने का सबसे अच्छा तरीका होगा।

उन्होंने कहा, ‘‘हिंदू धर्मग्रंथों में कहीं भी छुआछूत की बात नहीं कही गई है। कोई भी ‘ऊंच’ या ‘नीच’ नहीं है। इसमें कभी नहीं कहा गया है कि एक काम बड़ा है और दूसरा छोटा… अगर आप ऊंच-नीच देखते हैं तो यह अधर्म है। यह निर्मम व्यवहार है।’’

भागवत ने कहा कि कई धर्म हो सकते हैं और उनमें से प्रत्येक अपने अनुयायियों के लिए महान हो सकता है; लेकिन व्यक्ति को अपने चुने हुए मार्ग पर चलना चाहिए और दूसरों के मार्ग का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘किसी को बदलने की कोशिश नहीं करें।’’

भागवत ने कहा, ‘‘धर्म के ऊपर एक धर्म है। जब तक हम इसे नहीं समझेंगे, हम धर्म को नहीं समझ पाएंगे। धर्म के ऊपर वह धर्म अध्यात्म है।’’

इस अवसर पर स्वामी विज्ञानानंद ने कहा कि उनकी पुस्तक ‘द हिन्दू मेनिफेस्टो’ में प्राचीन ज्ञान का सार समाहित है, जिसे समकालीन समय के लिए पुनर्व्याख्यायित किया गया है।

उन्होंने कहा कि हिंदू विचार ने सदैव वर्तमान की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा है तथा यह ऋषियों द्वारा शक्तिशाली सूत्रों में निहित शाश्वत सिद्धांतों पर दृढ़ता से आधारित रहा है।

भाषा धीरज माधव

माधव