न्यायालय ने अयोग्यता याचिकाओं पर नोटिस में देरी पर तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष से पूछे सवाल

न्यायालय ने अयोग्यता याचिकाओं पर नोटिस में देरी पर तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष से पूछे सवाल

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  • Publish Date - April 2, 2025 / 05:48 PM IST,
    Updated On - April 2, 2025 / 05:48 PM IST

नयी दिल्ली, दो अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष से पूछा कि उन्होंने कांग्रेस में शामिल हुए भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के विधायकों की अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर नोटिस जारी करने में लगभग 10 महीने का समय क्यों लगाया?

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी के विधानसभा में दिए गए उस कथित बयान पर भी आपत्ति जताई कि कोई उपचुनाव नहीं होगा।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘यदि यह बात सदन में कही गई है, तो आपके मुख्यमंत्री दसवीं अनुसूची का मजाक उड़ा रहे हैं।’’

संविधान की दसवीं अनुसूची दलबदल के आधार पर अयोग्यता के प्रावधानों से संबंधित है।

पीठ तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्य करार देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर निर्णय लेने में कथित देरी से संबंधित दलीलों को सुन रही थी।

एक याचिका में तीन विधायकों को अयोग्य करार देने संबंधी तेलंगाना उच्च न्यायालय के नवंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी गई है, जबकि एक अन्य याचिका दल-बदल करने वाले शेष सात विधायकों को लेकर दायर की गई है।

पिछले साल नवंबर में उच्च न्यायालय की एक पीठ ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष को तीनों विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर ‘‘उचित समय’’ के भीतर फैसला करना चाहिए। पीठ का फैसला एकल न्यायाधीश के नौ सितंबर, 2024 के आदेश के खिलाफ अपील पर आया।

एकल न्यायाधीश ने तेलंगाना विधानसभा के सचिव को निर्देश दिया था कि वे अयोग्यता के अनुरोध वाली याचिका को चार सप्ताह के भीतर सुनवाई का कार्यक्रम तय करने के लिए अध्यक्ष के समक्ष रखें।

बुधवार को उच्चतम न्यायालय ने सवाल किया, ‘‘यदि अध्यक्ष कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो इस देश की अदालतें, जिनके पास संविधान के संरक्षक के रूप में न केवल शक्ति है, बल्कि दायित्व भी है, शक्तिहीन हो जाएंगी?’’

विधानसभा अध्यक्ष कार्यालय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि पहली अयोग्यता याचिका 18 मार्च, 2024 को दायर की गई थी, इसके बाद पिछले साल क्रमशः दो अप्रैल और आठ अप्रैल को दो अन्य ऐसी याचिकाएं दायर की गईं। उन्होंने कहा कि पहली याचिका पिछले साल 10 अप्रैल को उच्च न्यायालय में दायर की गई थी।

जब पीठ ने अयोग्यता याचिकाओं पर नोटिस जारी करने में लगने वाले समय के बारे में पूछा तो वरिष्ठ अधिवक्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष मामले के लंबित होने का हवाला दिया।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने केवल चार सप्ताह के भीतर कार्यक्रम तय करने का अनुरोध किया था।

मामले में दलीलें तीन अप्रैल को भी जारी रहेंगी।

बीआरएस नेता पी. कौशिक रेड्डी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुंदरम ने 25 मार्च को दलील में कहा कि मूल प्रश्न यह है कि क्या किसी न्यायालय के पास संवैधानिक प्राधिकारी को उसके संवैधानिक आदेश के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य करने की शक्ति, अधिकार है।

भाषा आशीष नरेश

नरेश