‘भगवा गमछा पहनना जानबूझकर धर्म का प्रदर्शन करना’, हिजाब बैन पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी

Supreme Court hearing on hijab ban : सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे दिन भी 'हिजाब बैन' से जुड़े एक मामले को लेकर वकीलों की दलीलें सुनीं।

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  • Publish Date - September 8, 2022 / 10:40 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:40 PM IST

Supreme Court hearing on hijab ban

Supreme Court hearing on hijab ban : सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे दिन भी ‘हिजाब बैन’ से जुड़े एक मामले को लेकर वकीलों की दलीलें सुनीं। कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में मुस्लिम लड़कियों के स्कूल में ‘सिर पर स्कार्फ पहनने पर पाबंदी’ यानी हिजाब  लगा दी है। इसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं।

कामत ने अपनी दलील को मजबूत बनाते हुए कहा कि हिजाब पहनना या नहीं पहनना एक धार्मिक विश्वास का मामला है। जबकि ‘अनिवार्य धार्मिक विधि-विधानों’ का सवाल तब उठता है जब राज्य उसे लेकर कोई कानून बनाता है और उन्हें मिटाने की कोशिश करता है, तब पूछा जाता है, कि क्या ये जरूरी है। सारे धार्मिक विधि-विधान अनिवार्य नहीं हो सकते, लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं कि सरकार उस पर प्रतिबंध लगा दे। ये तब तक नहीं किया जा सकता जब तक ये कानून व्यवस्था या किसी के स्वास्थ्य को प्रभावित ना कर रहा हो।

देवदत्त कामत ने अपनी दलील पर आगे बढ़ते हुए कहा, एक और सवाल पूछा गया है कि क्या सिर पर स्कार्फ बांधने की अनुमति दे दी जाती है, तो कल को कुछ छात्र कहेंगे कि उन्हें भगवा गमछा पहनना है। मेरे हिसाब से भगवा गमछा पहनना अपनी धार्मिक मान्यताओं का स्वाभाविक प्रदर्शन नहीं है। बल्कि ये धार्मिक कट्टरवादका जानबूझकर किया गया प्रदर्शन है। ये ऐसा है कि अगर आप हिजाब पहनोगे, तो मैं अपनी धार्मिक पहचान बचाने के लिए कुछ पहनूंगा। संविधान का अनुच्छेद-25 इसे सुरक्षित नहीं करता है। रुद्राक्ष, नमाम और तिलक लगाने को अनुच्छेद-25 सुरक्षा प्रदान करता है।

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देवदत्त कामत के बाद वकील निजामुद्दीन पाशा ने इस मामले से जुड़ी इस्लामिक व्याख्याओं के बारे में कोर्ट को जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस्लाम के ‘अनिवार्य विधि विधानों’ की बात करें तो हमें शिरूर मठ के मामले को देखना होगा। इस मामले की सुनवाई के वक्त पहली बार ‘अनिवार्य विधि विधानों’ की चर्चा हुई थी। ये ना तो संविधान का हिस्सा है और ना ही संविधान सभा में इस मामले पर विचार किया गया। सवाल ये है कि क्या सिर्फ ‘अनिवार्य विधि-विधानों’ की रक्षा की जानी है या सभी धार्मिक रीति-रिवाजों को सुरक्षा दी जानी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अलग-अलग फैसलों में इस पर अलग-अलग मत दिए हैं। शिरूर मठ के मामले में सवाल ये था कि ‘प्रार्थना किस तरह की जानी चाहिए?”

निजामुद्दीन पाशा ने अपनी दलील में कहा कि जब एक लड़की को लगता है कि उसका परदा उसके लिए पूरी दुनिया से ज्यादा अहम है, तब उसे शिक्षा या परदे में से एक का चुनाव करने के लिए कहा, अनुच्छेद-21 के तहत मिले शिक्षा के अधिकार से वंचित करना है। हम से धर्म के आधार पर शिक्षा तक पहुंच से बेदखल नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सोमवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।

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