महिला आरक्षण विधेयक से उम्मीद जगी, लेकिन समय-सीमा की अनिश्चितता को लेकर चिंता

महिला आरक्षण विधेयक से उम्मीद जगी, लेकिन समय-सीमा की अनिश्चितता को लेकर चिंता

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  • Publish Date - September 22, 2023 / 01:59 PM IST,
    Updated On - September 22, 2023 / 01:59 PM IST

नयी दिल्ली, 22 सितंबर (भाषा) महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने से हितधारकों के बीच भारत के राजनीतिक परिदृश्य में, खासकर नीति-निर्माण के स्तर पर, लैंगिक समानता हासिल करने की उम्मीद जगी है। हालांकि, कुछ लोगों ने इसके लागू होने की समय-सीमा की अनिश्चितता को देखते हुए चिंता जताई है।

लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने से संबंधित विधेयक को बृहस्पतिवार को संसद की मंजूरी मिल गई। लोकसभा ने इसे बुधवार को पारित किया था और राज्यसभा ने इस पर बृहस्पतिवार को मुहर लगा दी।

इससे संबंधित संविधान (128वां संशोधन) विधेयक जनगणना के आधार पर परिसीमन की कवायद पूरी होने के बाद लागू किया जाएगा। सरकार ने कहा है कि जनगणना की प्रक्रिया अगले साल चुनाव के बाद शुरू होगी।

अधिवक्ता शिल्पी जैन ने कहा कि इस विधेयक को तत्काल लागू किया जा सकता था।

उन्होंने कहा, ‘‘केवल इतना कीजिए कि 33 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दीजिए। इसके क्रियान्वयन के लिए कम से कम कोई समय-सीमा तय की जाए। अन्यथा, यह छलावा है। यह आपको मिलने वाले उस इनाम की तरह है जिसे अगले कुछ साल तक आप ग्रहण नहीं कर सकते।’’

एनजीओ ‘अनहद’ से जुड़ीं शबनम हाशमी ने कहा कि पहले जनगणना होगी, फिर परिसीमन होगा। उन्होंने कहा कि इस हिसाब से 2029 तक भी इसके कानून बनने की गारंटी नहीं है।

अपने अपने क्षेत्र की कुछ प्रतिष्ठित महिलाओं ने यह चिंता भी जताई कि संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण कहीं पंचायत चुनाव में कई जगह देखी गयी प्रतीकात्मक कवायद न बन जाए जहां 33 प्रतिशत आरक्षित सीटों पर राजनीतिक रूप से प्रभावशाली परिवारों की ही महिलाओं को जाने का मौका मिलता है।

बिहार के गया जिले में रहने वाली सरपंच डॉली वर्मा ने उम्मीद जताई कि महिलाओं को मिलने वाला यह आरक्षण दीर्घकालिक रूप से उन्हें सशक्त करेगा।

‘सरपंच पति’ की व्यवस्था के खिलाफ लड़ने वाली वर्मा ने कहा, ‘‘स्थानीय प्रशासन में आरक्षण लंबे समय से है। लेकिन दो बार सरपंच चुने जाने के बाद आज भी मैं देखती हूं कि सरपंच पतियों को व्यापक स्वीकार्यता है।’’

उन्होंने यह भी कहा, ‘‘हालांकि, मैं धीरे-धीरे बदलाव होते देख रही हूं। निर्वाचित महिलाएं नेताओं के रूप में काम कर रही हैं और अन्य महिलाओं को भी प्रेरित करती हैं।’’

वर्मा के विचारों से सहमति जताते हुए हाशमी ने कहा कि बड़ी संख्या में महिलाएं अब अपनी आवाज रख रही हैं। उन्होंने कहा, ‘विधायक और सांसद मामले में अंतर होगा। एक महिला को निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर खुद को स्थापित करने की आवश्यकता होगी, उसे परिवार पर निर्भर रहने के बजाय अधिक मुखर और अधिक आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता होगी।’

हालांकि, जैन ने कहा कि अगर केवल राजनीतिक रूप से प्रभावशाली परिवारों की महिलाओं को ही आरक्षित लोकसभा और विधानसभा सीटों के लिए टिकट मिलेगा तो विधेयक का महिला उत्थान का उद्देश्य विफल हो जाएगा।

भाषा वैभव नरेश

नरेश