लेह, 30 दिसंबर (भाषा) लद्दाख में वर्ष भर रही अशांति और अनिश्चितता राष्ट्रीय सुर्खियां बनीं, जिसमें लेह में राज्य का दर्जा व संवैधानिक सुरक्षा उपायों को लेकर हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन, पहाड़ी परिषद चुनावों का स्थगन और पहलगाम आतंकी हमले के बाद पर्यटन में आई भारी कमी शामिल है।
साल 2025 के अंत में समुदाय 2026 की ओर उम्मीद भरी निगाहों के साथ देख रहे हैं और आस लगाये बैठे हैं कि जुलाई में ब्रिगेडियर बीडी मिश्रा (सेवानिवृत्त) का स्थान लेने वाले उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता के नेतृत्व में संवाद, समावेशिता और आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन का पुनरुद्धार होगा।
लद्दाख के निवासियों ने 2025 को एक चुनौतीपूर्ण वर्ष बताया, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी भी शामिल है। इसकी समीक्षा अब उच्चतम न्यायालय में जारी है।
अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को समाप्त किए जाने और 2019 में लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के छह साल बाद, 2025 की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और कारगिल लोकतांत्रिक गठबंधन (केडीए) के संयुक्त नेतृत्व में जन आंदोलन का शुरू होना था।
इस आंदोलन में क्षेत्र के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा, संविधान की छठी अनुसूची में इसका समावेश, भूमि और रोजगार की सुरक्षा की मांग की गई थी।
लेह में 24 सितंबर को हुए प्रदर्शनों के हिंसक होने के बाद तनाव चरम पर पहुंच गया।
प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हुई झड़पों में चार लोग मारे गए, कई घायल हुए और भाजपा कार्यालय व सुरक्षा वाहनों सहित सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा।
अधिकारियों ने कर्फ्यू लगा दिया, मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दीं और कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया, जबकि न्यायिक जांच जारी है।
आंदोलन के प्रमुख चेहरे, शिक्षाविद और जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी ने आक्रोश को और बढ़ा दिया तथा लद्दाख की राजनीतिक समस्याओं की ओर राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया।
इस बीच, लेह के कुछ समूहों ने केंद्र के साथ हुई वार्ता में बौद्ध आवाजों की अनदेखी पर सवाल उठाए और दलील दी कि बातचीत में चुनिंदा राजनीतिक प्रतिनिधियों का दबदबा था जबकि नागरिक समाज के कुछ वर्गों को दरकिनार कर दिया गया था।
इन आंतरिक मतभेदों के बावजूद एलएबी और केडीए ने एकता पर जोर देना जारी रखा तथा कहा कि क्षेत्रीय व सामुदायिक चिंताओं का समाधान एक साझा राजनीतिक ढांचे के भीतर किया जाएगा।
अशांति के बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता गुप्ता को लद्दाख का उपराज्यपाल नियुक्त किए जाने से नौकरशाही से राजनीतिक नेतृत्व की ओर बदलाव का संकेत मिला।
इस नियुक्ति से संवाद की उम्मीदें तो बढ़ीं लेकिन साथ ही संदेह भी पैदा हुआ, खासकर साल के अंत में हुए प्रशासनिक परिवर्तनों के बाद, जिन्होंने स्थानीय वित्तीय निर्णय लेने की शक्तियों को सीमित कर दिया था और केंद्रीकरण बढ़ने की आशंकाओं को बल दिया था।
गुप्ता ने हालांकि कहा कि प्रशासन सभी चिंताओं का रचनात्मक तरीके से समाधान सुनिश्चित करने के लिए निरंतर संवाद के प्रति प्रतिबद्ध है।
उन्होंने कहा, “हितधारकों ने विभिन्न मुद्दों को हल करते हुए अपने मसौदा प्रस्ताव (केंद्रीय गृह मंत्रालय को) पहले ही प्रस्तुत कर दिए हैं और केंद्र सरकार लद्दाख व राष्ट्र के हित में कार्रवाई करेगी।”
गुप्ता ने प्रक्रिया के सुव्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ने पर संतोष व्यक्त किया।
भाषा जितेंद्र मनीषा
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