women crimes increase during Holi, image source: Los Angeles Times
नई दिल्ली: women crimes increase during Holi, दुनियाभर में हर तीन में से एक महिला को अपने जीवनकाल में कभी न कभी शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। ये घटनाएं सार्वजनिक स्थानों पर ज्यादा देखी जाती हैं, जैसे कि बस, ट्रेन, मेले और त्यौहार। खासतौर पर होली जैसे पर्व के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ जाते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास और सुरक्षा प्रभावित होती है। एक शोध (Borker 2021, Jayachandran 2021) में बताया गया है कि सार्वजनिक सुरक्षा की कमी महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के अवसरों को भी सीमित कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अनिल कुमार सिंह श्रीनेत का कहना है कि किसी महिला को जबरन छूना, उसके शरीर पर हाथ फेरना, उसकी मर्जी के बिना रंग लगाना भी दुराचार की श्रेणी में आता है। बिना सहमति के पानी या रंग से भरे गुब्बारे फेंकना भी कानूनन अपराध माना जाता है।
Ideas For India वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार पुलिस के आंकड़ों से पता चला है कि होली के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में सामान्य दिनों की तुलना में 170% तक वृद्धि हो जाती है। विभिन्न जिलों में यह प्रभाव अलग-अलग हो सकता है और यह इस पर निर्भर करता है कि समाज में इस तरह की घटनाओं को कैसे देखा जाता है।
मेघालय हाईकोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले में कहा गया कि किसी महिला को बिना उसकी सहमति के कपड़ों के ऊपर से छूना भी यौन अपराध की श्रेणी में आएगा। अगर कोई व्यक्ति महिला के निजी अंगों को कपड़ों के ऊपर से भी छूता है, तो इसे गंभीर अपराध माना जाएगा और आरोपी पर रेप के आरोप भी लग सकते हैं।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, पानी से भरे गुब्बारे फेंकने से अगर किसी को चोट पहुंचती है, तो इसे हमला माना जा सकता है। अगर इससे किसी की जान चली जाती है, तो यह हत्या के दायरे में आएगा। भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 223 के तहत इस पर 6 महीने की सजा या जुर्माना लगाया जा सकता है, जबकि धारा 115(2) में साधारण चोट के लिए 1 साल की सजा और धारा 117(2) में गंभीर चोट के लिए 7 साल तक की सजा का प्रावधान है।
त्यौहार के नाम पर महिलाओं के साथ गलत व्यवहार को अक्सर ‘बुरा न मानो होली है’ कहकर सही ठहराने की कोशिश की जाती है। कई लोग इस मौके का फायदा उठाकर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। मीडिया में हर साल होली के दौरान उत्पीड़न की घटनाओं की खबरें आती हैं, जो इस प्रवृत्ति की पुष्टि करती हैं।
रिसर्च में पाया गया कि पितृसत्तात्मक समाजों में महिलाओं के खिलाफ अपराध अक्सर कम रिपोर्ट होते हैं। होली जैसे सार्वजनिक त्योहारों में महिलाओं की भागीदारी भी अपेक्षाकृत कम होती है। कई जिलों में महिलाएं इस तरह की हिंसा को ही सामान्य मानकर चलती हैं, जिससे शिकायत दर्ज कराने की प्रवृत्ति और कम हो जाती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत किसी भी महिला के सम्मान को ठेस पहुंचाने, जबरन छूने या उस पर हमला करने को अपराध माना जाता है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर कम से कम 1 साल की जेल और जुर्माना भरना पड़ सकता है। यह एक गैर-जमानती अपराध है, जिसमें पुलिस आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है।
होली के दौरान किसी महिला पर अश्लील टिप्पणी करने, इशारे करने या उसका पीछा करने को IPC की धारा 509 के तहत अपराध माना जाता है। इसमें दोषी को 1 साल तक की जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है।
अगर किसी महिला के कपड़े जबरन उतारे जाते हैं या फाड़ने की कोशिश की जाती है, तो यह IPC की धारा 354B के तहत गंभीर अपराध माना जाएगा। इस अपराध में कम से कम 3 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
अगर कोई व्यक्ति किसी महिला की सहमति के बिना जबरदस्ती करता है, तो इसे IPC की धारा 375 और 376 के तहत रेप माना जाता है। इस अपराध में दोषी को 10 साल से लेकर फांसी तक की सजा हो सकती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, जो 2021 की तुलना में 4% अधिक हैं। यानी हर घंटे 51 महिलाओं के खिलाफ अपराध होता है।
महिलाओं को भीड़-भाड़ वाली जगहों पर सतर्क रहना चाहिए।
किसी भी तरह की अनुचित हरकत का तुरंत विरोध करें और जरूरत पड़ने पर पुलिस की मदद लें।
अपने परिवार और दोस्तों के साथ ही होली खेलने की कोशिश करें।
अनजान लोगों के साथ ज्यादा घुलने-मिलने से बचें और किसी भी प्रकार की जबरदस्ती को बर्दाश्त न करें।
होली एक आनंद और उल्लास का पर्व है, लेकिन किसी भी त्यौहार का मतलब यह नहीं है कि महिलाओं की सुरक्षा से समझौता किया जाए। समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर कोई इस पर्व का सम्मान के साथ आनंद ले सके।
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