Face To Face MP/ Image Credit: IBC24
भोपाल। Face To Face MP: मध्यप्रदेश में बजट सत्र की सीमित बैठकों को लेकर सियासत गर्म है । विपक्ष ने सरकार पर सीधा ये आरोप लगाया है कि सवालों से बचने के लिए ये रणनीति अख्तियार की गई है। राजभवन तक पहुंचकर आपत्ति दर्ज कराई गई पर सवाल यही है कि, सत्र पर हर बार अंदर और बाहर सार्थक बहस की बजाय सियासत क्यों?
मध्यप्रदेश विधानसभा के बजट सत्र की अधिसूचना जारी होते ही सड़क पर ग़दर मच गया विपक्ष ने बजट सत्र के छोटे होने का आरोप लगाते हुए राजभवन तक दौड़ लगाईं और राज्यपाल मांगू भाई पटेल को ज्ञापन सौंपकर सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग कर दी। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि पहले बजट सत्र पूरे एक महीने चलते थे और हर विभाग की अनुदान मांगों पर चर्चा होती थी, लेकिन अब तो यह आपातकाल जैसी स्थिति बन गई है साथ ही ये तक कह दिया कि आखिर सरकार चर्चा से क्यों डरती है? क्या सरकार इतनी डरपोक हो गई है कि आज जनता और विपक्ष के सवालों से घबरा रही है?
दरअसल, हर साल विधानसभा का बजट बढ़ता जा रहा है, लेकिन सत्र घटते जा रहे हैं, ऐसे में आम लोगों की समस्याओं पर सदन में चर्चा कम ही हो पाती है, 2018 से लेकर अभी तक के बजट और सत्रों की तुलना करें तो एक दिन की बैठक पर 6.91 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। उधर विपक्ष के आरोपों की हवा सत्ता पक्ष ये बोल कर निकाल देता हैं कि कांग्रेस सिर्फ सुर्ख़ियों में बने रहने के लिए प्रोपगेंडा करता है और चर्चा से भागता है।
Face To Face MP: ऐसा नहीं है कि, सिर्फ बीजेपी सरकार के कार्यकाल में ही सत्र तय वक्त के पहले खत्म कर दिए गए,या सत्र छोटे रहे। कमलनाथ सरकार ने भी सत्र पूरे नहीं चलाए। साल 2020 में जब कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे थे तब भी 17 बैठकों वाला सत्र महज़ 2 बैठकों में ही निपटा दिया गया। उस वक्त भी सत्ता पक्ष यानी कांग्रेस सरकार की तरफ से ये दलील दी गयी कि विपक्ष ने हंगामा करके सत्र को समाप्त करने पर मजबूर कर दिया,कांग्रेस की सरकार में भी कम अवधि के सत्र बुलाये जाते रहे है एक साल में बजट, मानसून और शीतकालीन सत्र होते हैं,इनमें कम से कम 60 दिन सत्र चलना चाहिए, लेकिन यह 15-20 दिन ही चल रहे हैं,माननीयों का भी इस पर ध्यान नहीं है, क्योंकि उन्हें तो हर दिन का 1500 रुपए भत्ता मिल जाता है लेकिन जनता का पैसा कैसे बर्बाद किया जाता है इसका जवाब किसी के पास नहीं।