No sanctuary in Madhya Pradesh anymore
No sanctuary in Madhya Pradesh anymore: भोपाल। (शिखिल ब्यौहार) जंगलों को लेकर मध्यप्रदेश के नाम कई खिताब हैं। टाइगर स्टेट, तेंदुआ स्टेट और तो और भेड़िया स्टेट तक का दर्जा एमपी के पास है। वक्त के साथ घटते जंगल और सर्वाधिक बाघों की मौत का कलंक भी एमपी के माथे पर लगा हुआ है। इसके बाद भी सियासी खींचतान के कारण प्रदेश के जंगलों और वन्य प्राणियों के बचाने के लिए 11 नए अभ्यारण्य और सबसे बड़े वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर प्रोजेक्ट को फाइलों में दफन कर दिया गया।
No sanctuary in Madhya Pradesh anymore: दरअसल, साल 2019 में मध्यप्रदेश वन विभाग की एक आंतरिक रिपोर्ट ने मंत्रालय में खलबली मचा दी थी। घटे जंगल, बाघों और तेंदुओं की मौत के कारण और कम होता इनका वर्चस्व क्षेत्र के एक-एक पहलुओं को आंकड़ों के साथ इस रिपोर्ट में बताया गया था। लिहाजा इनके संरक्षण के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार करने का निर्देश तत्कालीन वन उमंग सिंघार ने दिया। तब वन विभाग ने एमपी में एक-दो नहीं बल्कि एमपी में एक साथ 11 अभ्यारण्य बनाने की तैयारी की लेकिन, प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और कांग्रेस सरकार गिर गई। बीजेपी सरकार में वन विभाग की जिम्मेदारी मंत्री बतौर विजय शाह को मिली। विभागीय अधिकारियों ने मंत्री की पहली बैठक में ही कांग्रेस शासन काल में स्वीकृत, प्रास्तावित और जारी कार्यों की जानकारी दी थी। लेकिन मध्यप्रदेश के जंगलों के लिए संजीवनी साबित होने वाले इस मेगा प्रोजेक्ट को ही कागजों में ही बंद कर दिया गया।
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No sanctuary in Madhya Pradesh anymore: दरअसल, इस प्रोजेक्ट में न सिर्फ 11 अभ्यारण्य को हरी झंडी दी जानी थी। बल्कि इन्हें कॉरिडोर के रूप में जोड़कर विकसित किया जाना था। विभाग ने इसे वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर का नाम दिया था। मतलब जहां तक संभव हो सके वहां तक अन्य और नए अभ्यारण्यों को आपस में जोड़ा। ताकि वन्य प्राणियों के संरक्षण के साथ बाघों के वर्चस्व की लड़ाई रोकी जा सके। इस प्रोजेक्ट को तैयार करने में 10 करोड़ भी खर्च हुए। वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 26 (ए) के तहत कागजी कार्रवाई पूरी की गई।
No sanctuary in Madhya Pradesh anymore: प्रदेश में 11 नए अभ्यारण्यों के लिए कार्यालय प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) ने 09 जुलाई 2019 में पत्र लिखा। पत्र इन 11 जिलों के वनमंडल अधिकारियों को लिखा गया था। इस पत्र के साथ प्रस्तावित अभ्यारण्यों के नक्से, गांव, कुल क्षेत्रफल, वन प्राणियों की एक-एक जानकारी दी गई थी। साथ ही पत्र में संबंधित जिलों के अधिकारियों से 15 दिनों के अंदर अभिमत भी मांगा गया था। ताकि नए अभ्यारण्यों की अधिसूचना जारी की जा सके। अभिमत के बाद तमाम कागजी कार्रवाई और सर्वे के साथ अन्य रिपोर्ट का काम भी पूरा कर लिया गया। इस काम में सात माह का समय लगा। लेकिन ठीक सात माह बाद मार्च 2020 को प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ।
– श्योपुर जिले में माधव राव सिंधिया अभ्यारण्य
– बुरहानपुर जिले में महात्मा गांधी अभ्यारण्य
– सीहोर जिले में सरदार वल्लभभाई पटेल अभ्यारण्य
– सागर जिले में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अभ्यारण्य
– नरसिंहपुर जिले में इंदिरा गांधी अभ्यारण्य
– धार जिले में जमुना देवी अभ्यारण्य
– इंदौर जिले में देवी अहिल्या बाई होल्कर अभ्यारण्य
– हरदा जिले में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद अभ्यारण्य
– मंडला जिले में राजा दलपतशाह अभ्यारण्य
– छिंदवाड़ा जिले में संजय गांधी अभ्यारण्य
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No sanctuary in Madhya Pradesh anymore:वन मामलों के जानकार प्रभातेष जेटली ने बताया कि इसमें दोमत नहीं कि मध्यप्रदेश में जंगलों का विस्तार कम हो रहा है तो दूसरी ओर वन्य प्राणियों की बढ़ती संख्या के साथ मौत के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं। आज भी इन 11 अभ्यारण्यों को अस्तित्व में लाया जाए तो खोखले होते जा रहे जंगलों को संजीवनी मिलेगी और वन्य प्राणियों को अभयदान। जंगलों हो वन्यप्राणी इनके संरक्षण के कार्यों को सियासत से दूर रखना चाहिए। आरटीआई कार्यकर्ता राशिद नूर खान ने कहा कि अभ्यारण्य का दर्जा मिलने के बाद कुछ हद तक वन और वन प्राणियों का संरक्षण हो सकता है। यह प्रस्ताव किस सरकार का था मसला नहीं बल्कि मसला ये है कि आखिर जंगलों और वनों के संरक्षण से सरकार को दिक्कत क्या है। पूरी प्रक्रिया होने के बाद भी सरकार की उदासीनता किसी बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा करती है।