MP ki baat
भोपाल: पूरी दुनिया में गाय भले ही दूध देती हो लेकिन हिंदुस्तान में ये वोट भी देती है। 70 के दशक में हरिशंकर परसाई की लिखी लाईनें मध्यप्रदेश की सियासत पर सटीक बैठती है जहां गौपालन एक बार फिर सियासत के केंद्र में आ चुका है। बीजेपी सरकार के कैबिनेट मंत्री हरदीप डंग चाहते हैं कि चुनाव वहीं लड़े जो गाय पालता हो, जिस पर कांग्रेस ने पलटवार किया कि प्रस्ताव तो मंजूर है लेकिन सरकार को ये सुनिश्चित करना होगा कि गाय पालने पर मॉब लिंचिंग नहीं होगी। अब सवाल ये है कि क्या जनसेवा के लिए गौ सेवा जरूरी है?
ये मध्यप्रदेश की हकीकत है जहां एक तरफ कई जिलों बाढ़ की बर्बादी दिख रही है, तो कोरोना की तीसरी लहर का भी डर बना हुआ है। इससे निपटने के लिए सरकार हर मुमकिन कोशिश कर रही है लेकिन नेताओं को इससे क्या? उन्हें मतलब है तो नए-नए मुद्दों और उस पर बयानबाजी। अब कैबिनेट मंत्री हरदीप डंग ने गाय को लेकर प्रदेश में नई बहस छेड़ दी है। उनका कहना है कि 25 हजार से ज्यादा वेतन वालों से 500 रु वसूले जाने चाहिए। खेती किसानी का सामान बेचने वालों के लिए गाय पालना अनिवार्य हो, जो जनप्रतिनिधि चुनाव लड़ना चाहता है उसके लिए गौपालन जरुरी हो और ऐसा नहीं करने वालों के फार्म चुनाव आयोग निरस्त कर दें। डंग के बयान का न सिर्फ उनके सहयोगी मंत्री समर्थन कर रहे हैं बल्कि प्रदेश अध्यक्ष भी इसे सही ठहरा रहे हैं।
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मध्यप्रदेश में गाय हर चुनाव में दोनों ही पार्टियों के अहम मुद्दा रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में (ग्राफिक्स इन) वादा किया था कि हर ग्राम पंचायत में गौशाला खोली जाएंगी। चिन्हित क्षेत्रों में गौ-अभयारण्य बनाए जाएंगे, इनके संचालन और रखरखाव के लिए सरकार अनुदान देगी। गौशाला में गोबर, उपले, गोमूत्र और अन्य वस्तुओं का व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन कराया जाएगा। गौवंश संरक्षण और देखभाल के लिए अस्थाई शिविर की व्यवस्था भी की जाएगी। दुर्घटना में घायल गायों के उपचार और मृत गायों के अंतिम संस्कार की व्यवस्था भी करवाई जाएगी। वैसे कांग्रेस की सरकार प्रदेश में 15 महीने रही और पार्टी का दावा है कि इस दौरान 1 हजार हाईटेक गौशालाएं शुरु की गई।
जाहिर तौर पर दोनों की पार्टियों की निगाह बहुसंख्यक वोट बैंक पर है जिसे अपने पास रखने के लिए खुद को गाय हितैषी साबित करने की होड़ है। अगले कुछ दिनों में प्रदेश में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जिन्हें 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल माना जा रहा है। ऐसे में गाय और गौपालन का मुद्दा उठना लाजिमी है।