विश्व की एक मात्र राजधानी जहां शहरी सीमा में रहते हैं बाघ, यहां बाघों की संख्या में हुआ इजाफा

increased number of tigers: विश्व की एक मात्र राजधानी जहां शहरी सीमा में रहते हैं बाघ, यहां बाघों की संख्या में हुआ इजाफा

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  • Publish Date - July 29, 2022 / 02:52 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:22 PM IST

No sanctuary in Madhya Pradesh anymore

increased number of tigers: भोपाल विश्व की एक मात्र ऐसी राजधानी है जहां के शहरी सीमा क्षेत्र में 18 बाघ पनाहगार हैं। लिहाजा भोपाल को टाइगर सिटी का तमंगा भी हासिल है। जिसके बाद बाघों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। अब भोपाल के बाघों की संख्या 18 से बढ़कर 28 हो चुकी है। रातापानी अभ्यारण्य से लगे भोपाल के सिटी फारेस्ट को बाघों और 10 अतिरिक्त बाघों ने न सिर्फ अपना घर बनाया है बल्कि यह प्रजनन के लिए भी बाघों का पसंदीदा स्थान बन गया है।

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increased number of tigers: अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर राजधानी भोपाल में राज्य स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में प्रदेश के तमाम विभागीय वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। इस दौरान विश्व में बाघों की स्थिति के हुए अध्ययन के साथ मध्यप्रदेश के वर्तमान हालातों पर विचार मंथन किया गया। विश्व स्तर पर बाघों पर शोध करने वाले एक्सपर्टों ने कहा कि बाघ संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश में काफी काम हुए हैं। लेकिन इसके बाद भी संरक्षण के लिए चुनौतियां कम नहीं है। बाघ संरक्षण के लिए माइक्रो लेवल पर तय प्लानिंग के तहत काम करना होगा।

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increased number of tigers: वन विभाग के मुखिया प्रमुख सचिव अशोक बर्णवाल ने अपने संबोधन में मध्यप्रदेश में बाघों की स्थिति को लेकर खुलकर बातचीत की। उन्होंने मंच से कहा कि मध्यप्रदेश में बाघों की मौत हो रहीं हैं। लेकिन बाघों के शिकार के कारण नहीं वर्चस्व की लड़ाई के साथ उम्र के दायरे के कारण टाइगर स्टेट एमपी में बाघों की मौत के आंकड़े अन्य राज्य से अधिक हैं। उन्होंने प्रदेश के एक दर्जन अभ्यारण्य और टाइगर रिर्जव को लेकर हो रही चर्चाओं पर भी विराम दिया।

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increased number of tigers: प्रदेश में बाघ संरक्षण की दिशा में काम हो रहा है। कई प्रदेश और देश भी मध्यप्रदेश से सीख ले रहे हैं। वन क्षेत्रों की जगह भी पर्याप्त हैं। अब इन जंगलों को बचाने के साथ संरक्षित करने की आवश्यकता है। उन्होंने दावा किया कि मध्यप्रदेश बाघों के नाम से जाना जाता था और आगे भी बाघों से ही एमपी की पहचान रहेगी।

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