नागपुर, सात दिसंबर (भाषा) महाराष्ट्र विधान परिषद के सभापति राम शिंदे ने रविवार को कहा कि उनके कार्यालय को सदन में नेता प्रतिपक्ष नियुक्त करने का प्रस्ताव मिला है।
उन्होंने बताया कि यह पद इस वर्ष जुलाई से रिक्त है और सभी पक्षकारों से बातचीत के बाद ‘उचित समय पर निर्णय लिया जाएगा।
राज्य विधानमंडल के उच्च सदन विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का पद इस वर्ष जुलाई में शिवसेना (उबाठा) के नेता और सदन में तत्कालीन विपक्ष के नेता अंबादास दानवे का कार्यकाल समाप्त होने के बाद से रिक्त है।
यदि विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति नहीं की जाती है, तो यह संभवतः राज्य विधानमंडल का पहला सत्र होगा, जिसमें दोनों सदनों में विपक्ष का नेता नहीं होगा, जो एक संवैधानिक पद है।
शिंदे ने विधानमंडल के सप्ताह भर चलने वाले शीतकालीन सत्र की पूर्व संध्या पर संवाददाताओं से बातचीत में कहा,‘‘हमें नेता प्रतिपक्ष नियुक्त करने के संबंध में एक प्रस्ताव मिला है। सभी हितधारकों के साथ परामर्श के बाद उचित समय पर निर्णय लिया जाएगा।’’
शिंदे ने नेता प्रतिपक्ष को लेकर विपक्ष की दलीलों को एक तरह से खारिज करते हुए कहा कि यह आवश्यक नहीं है कि 1947 के बाद अपनाई गई विधायी पंरपराएं 2025 में भी उसी तरह परिलक्षित हों।
उन्होंने कहा, ‘‘यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि 2025 में भी कामकाज उसी तरह जारी रहेगा जैसा 1947 में आजादी के बाद से चली आ रही परंपराओं और प्रथाओं के अनुसार चलता रहा है।’’
पिछले साल राज्य विधानसभा चुनावों में किसी भी विपक्षी दल को 288 सदस्यीय विधानसभा में 10 प्रतिशत सीटें नहीं मिल पाई थीं। नियमानुसार, नेता प्रतिपक्ष पद पर दावा करने के लिए दल के सदन में कम से कम 10 प्रतिशत सीट होना अनिवार्य है।
कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा था कि 1980 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 14 विधायक थे, फिर भी उसे नेता प्रतिपक्ष का पद दिया गया था। इसी तरह, 1985 में भी भाजपा के मात्र 16 विधायक होने के बावजूद यह पद उसे दिया गया था।
विपक्ष ने रविवार को शीतकालीन सत्र की पूर्व संध्या पर सरकार की परंपरागत चाय पार्टी का बहिष्कार करने का निर्णय लिया, क्योंकि सरकार ने विधानमंडल के दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष नियुक्त करने की उनकी मांग पर अमल नहीं किया है।
भाषा धीरज नरेश
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