Holashtak 2024 Date: इस दिन से शुरू हो रहे होलाष्टक, नहीं किए जाते मांगलिक कार्य

Holashtak 2024 Date: होली से ठीक 8 दिन पहले एक ऐसा मुहूर्त शुरू हो जाता है जिसमें मांगलिक कार्यों के करने पर ही रोक लग जाती है।

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  • Publish Date - March 2, 2024 / 06:03 PM IST,
    Updated On - March 2, 2024 / 06:03 PM IST

Holashtak 2024 Date

नई दिल्ली : Holashtak 2024 Date: होली का त्योहार हर्ष उल्लाह और एक दूसरे से मिल कर गिले शिकवे मिटाने का त्योहार है। इस बार 25 माच को होली का त्योहार मनाया जाएगा। होली से ठीक 8 दिन पहले एक ऐसा मुहूर्त शुरू हो जाता है जिसमें मांगलिक कार्यों के करने पर ही रोक लग जाती है। इसे होलाष्टक कहा जाता है।

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इस दिन से शुरू हो रहे होलाष्टक

पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा को होलिका दहन और उसके अगले दिन यानी प्रतिपदा को रंग भरी होली होती है। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को होलाष्टक शुरू हो जाएगा। इस बार होलाष्टक 17 मार्च रविवार से लगेगा।

होलाष्टक में नहीं किए जाते ये कार्य

Holashtak 2024 Date:  हिंदू पंचांग में सोलह संस्कारों को बहुत महत्व दिया गया है जिसमें शादी विवाह, उपनयन संस्कार जनेऊ, नामकरण, नए घर में प्रवेश, विशिष्ट कार्य के लिए हवन पूजन आदि प्रतिबंधित रहता है। हां नित्य पूजा कर्म आदि किया जा सकता है, होलाष्टक लगने के पहले ही नव विवाहित बहू को उसके मायके भेज दिया जाता है। मान्यता है कि पहली होली मायके में ही होनी चाहिए।

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होलाष्टक लगने के 2 महत्वपूर्ण कारण

Holashtak 2024 Date:  होली के आठ दिन पहले मांगलिक कार्यों पर रोक लगने के दो प्रमुख कारण हैं। इनमें से पहला हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद से जुड़ा हुआ है। हिरण्यकश्यप विष्णु भगवान से वैर मानता था और इसलिए उसने अपने राज्य में स्वयं को ही भगवान घोषित कर आदेश कर दिया था कि सभी लोग उसकी पूजा करें। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद विष्णु जी का परम भक्त था और जब भी मौका मिलता उनकी पूजा करने बैठ जाता है। कई बार मना करने के बाद भी जब वह नहीं माना और पहाड़ से फेंकने जैसा कार्य करने के बाद भी वह नहीं मरा तो प्रहलाद की बुआ होलिका ने कहा कि मैं इसे अपनी गोद में आग पर लेकर बैठ जाऊंगी।

प्रह्लाद जल कर मर जाएगा क्योंकि मुझे आग से न मरने का वरदान मिला है। नियत तिथि से ठीक आठ दिन पहले प्रह्लाद को घोर यातनाएं देना शुरू किया गया किंतु वह विष्णु भक्ति से विचलित नहीं हुआ। बाद में लकड़ी के ढेर के ऊपर वह प्रह्लाद को लेकर बैठ गयी जिसमें वह तो जल गई और प्रहलाद हंसते हुए निकल आए। तभी से होलिका जलाई जाती है। दूसरा कारण भगवान शंकर से जुड़ा है, फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन ही शिव जी ने कामदेव को भस्म किया था।

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