स्विट्जरलैंड के खिलाफ डेविस कप में जीत से भारतीय टेनिस में बदलाव की उम्मीद

स्विट्जरलैंड के खिलाफ डेविस कप में जीत से भारतीय टेनिस में बदलाव की उम्मीद

स्विट्जरलैंड के खिलाफ डेविस कप में जीत से भारतीय टेनिस में बदलाव की उम्मीद
Modified Date: September 14, 2025 / 05:01 pm IST
Published Date: September 14, 2025 5:01 pm IST

(अमनप्रीत सिंह)

नयी दिल्ली, 14 सितंबर (भाषा) लंबे इंतजार के बाद आखिरकार भारतीय टेनिस के लिए जश्न मनाने का मौका आ ही गया। स्विट्जरलैंड के खिलाफ डेविस कप में जीत भारत के लिए कई मायनों में बेहद महत्व रखती है। यह पिछले 32 वर्षों में पहला अवसर है जबकि भारत ने किसी यूरोपीय देश को उसी की धरती पर हराया। इसलिए यह जीत वाकई जश्न मनाने लायक है।

बील में हुए इस इनडोर मुकाबले का परिणाम अच्छी योजना, साहसिक फैसला और खिलाड़ियों के निडर प्रदर्शन के कारण भारत के पक्ष में रहा।

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लेकिन सबसे बड़ा सवाल जो मन में बार-बार आता है, वो ये है कि क्या भारतीय टेनिस प्रणाली वाकई इस जीत का दावा कर सकती है? जवाब है: आंशिक रूप से।

आखिरकार, व्यवस्था तीन युगल विशेषज्ञ खिलाड़ियों सहित एक बड़ी टीम को बील भेजने के लिए उत्सुक नहीं थी। इसके बजाय टीम की तैयारी में कोई योगदान नहीं देने वाले अधिकारी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर देश की सैर करने के लिए निकल गए।

कप्तान रोहित राजपाल को यह सुनिश्चित करने के लिए कोर्ट के बाहर कड़ी मशक्कत करनी पड़ी कि भारत की टीम में पर्याप्त खिलाड़ी मौजूद रहें। ऐसा इसलिए किया गया ताकि ज़रूरत पड़ने पर भारत के पास एक आदर्श विकल्प मौजूद रहे।

इसकी ज़रूरत तब पड़ी जब युकी भांबरी पैर की चोट के कारण बाहर हो गए। उचित योजना के चलते, भारत ने ऋत्विक बोलिपल्ली को एन श्रीराम बालाजी के साथ युगल मुकाबले के लिए तैयार कर लिया।

ये अलग बात है कि भारत युगल मुकाबले में जीत हासिल नहीं कर पाया लेकिन भारतीय खिलाड़ियों ने कड़ी चुनौती पेश की। भारत अगर स्विट्जरलैंड को हराने में सफल रहा तो इसका पूरा श्रेय टीम प्रबंधन को जाता है।

भारत की जीत की कुंजी एकल खिलाड़ियों का आत्मविश्वास से भरा प्रदर्शन रहा। दक्षिणेश्वर सुरेश और सुमित नागल ने तीन मैच जीते। इस मामले में भी उच्च रैंकिंग वाले आर्यन शाह या करण सिंह की बजाय रिजर्व खिलाड़ी दक्षिणेश्वर को मैदान में उतारना एक रणनीतिक निर्णय था।

राजपाल को प्रशिक्षण सप्ताह के दौरान यह अहसास हुआ कि दक्षिणेश्वर अपनी अच्छी सर्विस और दमदार शॉट के दम पर अपने साथियों को हरा रहे हैं। उन्होंने यह देखकर नागल के साथ एकल में उन्हें उतारने का फैसला लिया जो आखिर में सही साबित हुआ।

मुद्दा यह है कि दक्षिणेश्वर की प्रगति में उनकी कड़ी मेहनत और उनके टेनिस सफ़र में कुछ लोगों के व्यक्तिगत प्रयासों का ज़्यादा योगदान है। कोई आधिकारिक व्यवस्था नहीं थी जिसने उन्हें आगे बढ़ाने में मदद की हो।

नागल के मामले में भी यही बात लागू होती है। यह सर्वविदित तथ्य है कि अगर महेश भूपति ने प्रतिभा खोज कार्यक्रम के दौरान उनकी प्रतिभा को नहीं पहचाना होता तो उनके जैसा खिलाड़ी उभरकर सामने नहीं आता।

भारतीय खिलाड़ियों ने निश्चित रूप से अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा के आधार पर जीत हासिल की है, इसलिए भारतीय टेनिस से जुड़े अधिकारी इस जीत का पूरा श्रेय नहीं ले सकते हैं।

इसके बाद हालांकि भारतीय टेनिस में कुछ बदलाव की उम्मीद जगी है लेकिन जब तक 10 से 15 वर्ष की आयु के कम से कम 100 खिलाड़ियों को समर्थन देने वाली उचित घरेलू प्रणाली नहीं बनाई जाती, तब तक भारत टेनिस जैसे चुनौतीपूर्ण खेल में एक ताकत नहीं बन सकता।

भाषा

पंत नमिता

नमिता


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