टोक्यो ओलंपिक में कांस्य विजेता रूपिंदर पाल सिंह और डिफेंडर बीरेंद्र लाकड़ा ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी को कहा अलविदा, सोशल मीडिया पर लिखी ये बात

Tokyo Olympics bronze winner Rupinder Pal Singh and defender Birender Lakra said goodbye to international hockey

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  • Publish Date - September 30, 2021 / 05:19 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:20 PM IST

नयी दिल्ली, 30 सितंबर ( भाषा ) ओलंपिक कांस्य पदक विजेता भारतीय हॉकी टीम के अहम सदस्य रहे स्टार ड्रैग फ्लिकर रूपिंदर पाल सिंह और डिफेंडर बीरेंद्र लाकड़ा ने युवाओं के लिये रास्ता बनाने की कवायद में गुरूवार को अंतरराष्ट्रीय हॉकी से तुरंत प्रभाव से संन्यास लेने की घोषणा कर दी ।

रूपिंदर ने अपने ट्विटर हैंडल पर इस फैसले की घोषणा की जबकि लाकड़ा के संन्यास का ऐलान हॉकी इंडिया ने किया । तोक्यो ओलंपिक में भारत के उपकप्तान रहे लाकड़ा ने हालांकि बाद में अपने फेसबुक पेज पर लंबी पोस्ट लिखकर अपनी बात कही ।

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विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि दोनों खिलाड़ियों को बता दिया गया था कि अगले सप्ताह से बेंगलुरू में शुरू हो रहे राष्ट्रीय शिविर में उन्हें जगह नहीं मिलेगी ।

देश के सर्वश्रेष्ठ ड्रैग फ्लिकर में शामिल किए जाने वाले 30 साल के रूपिंदर ने 223 मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है ।‘बॉब’ के नाम से मशहूर रूपिंदर ने तोक्यो ओलंपिक में भारत के कांस्य पदक जीतने के अभियान के दौरान चार गोल दागे थे जिसमें तीसरे स्थान के प्ले आफ में जर्मनी के खिलाफ पेनल्टी स्ट्रोक पर किया गोल भी शामिल था।

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रूपिंदर का यह फैसला हैरानी भरा है क्योंकि उनकी फिटनेस और फॉर्म को देखते हुए स्पष्ट तौर पर वह कुछ और साल आसानी से खेल सकते थे।

रूपिंदर ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर बयान मे लिखा ,‘‘इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले कुछ महीने मेरे जीवन के सर्वश्रेष्ठ दिन रहे। मैंने अपने जीवन के कुछ शानदार अनुभव जिनके साथ साझा किए टीम के अपने उन साथियों के साथ तोक्यो में पोडियम पर खड़े होना ऐसा अहसास था जिसे मैं हमेशा सहेजकर रखूंगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि अब समय आ गया है जब युवा और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उस आनंद की अनुभूति का अवसर दिया जाए जो भारत के लिए खेलते हुए मैं पिछले 13 साल से अनुभव कर रहा हूं ।’’

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वहीं लाकड़ा के बारे में हॉकी इंडिया ने ट्वीट किया ,‘‘ मजबूत डिफेंडर और भारतीय हॉकी टीम के सबसे प्रभावी खिलाड़ियों में से एक ओडिशा के स्टार लाकड़ा ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहने का फैसला लिया है । हैप्पी रिटायरमेंट बीरेंद्र लाकड़ा ।’’

लाकड़ा ने बाद में फेसबुक पर लंबी पोस्ट लिखकर कहा ,‘‘ पिछले कुछ सप्ताह से मैं हॉकी में अब तक के अपने सफर पर आत्ममंथन कर रहा था । भारत के लिये खेलना और भारतीय टीम की जर्सी पहनने से ज्यादा खुशी और गर्व मुझे किसी बात से नहीं मिला । अब समय आ गया है कि अगली पीढी के युवा खिलाड़ी भारत के लिये खेलने के अहसास को जी सकें ।’’

उन्होंने आगे कहा ,‘‘ पिछले 11 साल में देश के लिये 201 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने के बाद मैने भारतीय हॉकी टीम से विदा लेने का फैसला किया है । इतने शानदार खिलाड़ियों के साथ फिर ड्रेसिंग रूम साझा नहीं कर पाने के अहसास की अभी कल्पना भी नहीं कर पा रहा हूं लेकिन मैं उन्हें भारतीय हॉकी को आगे ले जाने के लिये शुभकामना देता हूं चूंकि अगले ओलंपिक तीन साल बाद ही हैं ।’’

ओडिशा के इस अनुभवी खिलाड़ी ने कहा ,‘‘ मैने भारतीय टीम के लिये खेलते हुए अपने कैरियर में कई उतार चढाव देखे लेकिन ओलंपिक कांस्य पदक जीतने से बढकर कुछ नहीं । मुझे लगता है कि अब विदा लेकर नया रास्ता चुनने का सही समय है । इस खेल ने मुझे इतना कुछ दिया है और मेरा जीवन बदल दिया है । मैं आगे भी किसी ना किसी रूप में हॉकी की सेवा करता रहूंगा ।’’

ओडिशा के सुंदरगढ जिले में जन्में 31 वर्ष के लाकड़ा 2014 इंचियोन एशियाई खेलों में स्वर्ण और 2018 में जकार्ता में कांस्य जीतने वाली टीम का हिस्सा थे । दबाव के क्षणों में भी शांतचित्त बने रहने के लिये मशहूर लाकड़ा ने 2012 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला था । वहीं पंजाब के फरीदकोट से तोक्यो में पोडियम तक के सफर के दौरान रूपिंदर ने कड़ी मेहनत और कई बार वापसी की।

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मई 2010 में इपोह में सुल्तान अजलन शाह कप में अंतरराष्ट्रीय पदार्पण के बाद से रूपिंदर भारत की रक्षापंक्ति के अहम सदस्य रहे और वीआर रघुनाथ के साथ मिलकर उन्होंने खतरनाक ड्रैग फ्लिक संयोजन बनाया। निडर रक्षण के अलावा रूपिंदर पर उनके कप्तान पेनल्टी कॉर्नर और पेनल्टी स्ट्रोक पर गोल करने के लिए भी काफी भरोसा करते थे।

रूपिंदर की मजबूत कद-काठी और लंबाई पेनल्टी कॉर्नर के समय किसी भी टीम के डिफेंस को परेशान करने के लिए पर्याप्त थी। उन्हें अपने चतुराई भरे वैरिएशन के लिए भी जाना जाता था।रूपिंदर को 2014 विश्व कप में भारतीय टीम का उप कप्तान बनाया गया और वह इसी साल राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने वाली भारतीय टीम का भी हिस्सा रहे।

रूपिंदर उस भारतीय टीम का भी हिस्सा रहे जिसने 2014 इंचियोन एशियाई खेलों में स्वर्ण और 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता। एशियाई खेलों में निराशा के बाद रूपिंदर को बलि का बकरा भी बनाया गया और इसके बाद टीम के हुए बदलाव के दौरान उनकी अनदेखी की गई।

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वह चोटों से भी परेशान रहे। पैर की मांसपेशियों में समस्या के कारण 2017 में उनका करियर लगभग खत्म ही हो गया था। इस समय को उन्होंने अपने करियर का सबसे मश्किल समय करार दिया था। चोट के कारण उनके छह महीने तक बाहर रहने का सबसे अधिक फायदा हरमनप्रीत को मिला लेकिन उनकी सफल वापसी के बाद ये दोनों शॉर्ट कॉर्नर पर भारत के ट्रंप कार्ड बने और इनकी जोड़ी तोक्यो तक बनी रही। रूपिंदर ने अपने करियर की सबसे बड़ी सफलता इस साल तोक्यो खेलों में हासिल की।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे 223 मैचों में भारत की जर्सी पहनने का सम्मान मिला और इसमें से प्रत्येक मैच विशेष रहा। मैं खुशी के साथ टीम से जा रहा हूं और संतुष्ट हूं क्योंकि हमने सबसे बड़ा सपना साकार कर लिया जो भारत के लिए ओलंपिक में पदक जीतना था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने साथ विश्व हॉकी के सबसे प्रतिभावान खिलाड़ियों के साथ खेलने की यादें ले जा रहा हूं और इनमें से प्रत्येक के लिए मेरे दिल में काफी सम्मान है।’’