कुप्रथा की जकड़ में महिलाओं की आजादी, मासिक होने पर झोपड़ी में गुजारना पड़ता है वक्त

कुप्रथा की जकड़ में महिलाओं की आजादी, मासिक होने पर झोपड़ी में गुजारना पड़ता है वक्त

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  • Publish Date - June 17, 2018 / 08:24 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:44 PM IST

राजनांदगांव। देश जहां आधुनिकता और नए अविष्कार के साथ विकास की कई इबारतें लिख रहा है। वहीं देश के इन उपलब्धियां को तब धक्का लगता है। जब समाज में महिलाओं के लिए फैली कुप्रथा उजागर होती। आज भी हमारे समाज में कई रूढ़ीवादी परंपरा फैली है जिससे महिलाओं की आजादी जकड़ी हुई नजर आती है। 

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में एक ऐसा गांव हैं जहां महिलाओं को मासिक धर्म आने के दौरान गांव में मौजूद एक अलग झोपड़ी में समय गुजारना पड़ता है। सीतागांव और मदनवाड़ा के बीच बसा कोरकट्टा गांव के लोगों के मुताबिक ऐसा नहीं करने पर गांव में कुदरती विपत्ती आ जाती है। पिछले कई सालों से महिलाओं को मासिक धर्म के समय अपने घर को छोड़कर गांव से अलग एक झोपड़ी में बिताना पड़ता है। पीरियड्स के खत्म होने तक महिलाओं का इस झोपड़ी में ही खाना-पीना और गुजारा करना पड़ता है।

कोरकट्‌टा गांव में 50 घर हैं, जहां की आबादी 700 है। पीरियड्स के चार दिनों तक महिलाओं को इस झोपड़ी में ही नहाना-खाना और दैनिक क्रियाएं यहीं करनी पड़ती है। मीडिया के माध्यम से खबर मिलने पर जिले के कलेक्टर और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी गांव वाले से मिले और उन्हें समझाया कि पीरियड्स आना नार्मल प्रक्रिया है, इससे संक्रमण नहीं फैलता है।

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लेकिन महिलाओं के लिए ये दिन कष्टप्रद होता है। कलेक्टर ने गांव वालो को मेंस्ट्रल हाईजिन के बारे में बताया और कहा कि ये गलत है। इस समय महिलाओं को अपने घर पर सैनेटरीपैड के इस्तेमाल करते हुए सब काम कर सकती है। कलेक्टर ने अधिकारियों को यहां निशुल्क सैनेटरी नैपकिन बांटने के निर्देश भी दिए।

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कोरकट्टा गांव की महिलाओं ने भी बताया कि गांव की कुल देवी और उनसे जुड़ी आस्था के चलते ऐसा करती हैं। उनको डर है कि नीयम टूटने पर मां नाराज होंगी और गांव पर भारी विपत्ती भी आ सकती है। इसलिए इसको मानना बहुत जरूरी है। इसलिए गलत होते हुए भी इसका पालन करना गलत नहीं है। 

 

 

वेब डेस्क, IBC24