Politics Sam Pitroda's statement
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रायपुरः Politics Sam Pitroda’s statement लोकसभा चुनाव के बीच सैम पित्रोदा ने देशवासियों के रंग-रूप को लेकर विवादित टिप्पणी कर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी है। बीजेपी के लिए उनका ये बयान बड़ा सियासी हथियार बना है। पीएम मोदी सहित बीजेपी के कई नेता पित्रोदा के बयान को लेकर कांग्रेस को घेर रही है। हालांकि कांग्रेस नेता भी पलटवार से पीछे नहीं हट रहे हैं। पित्रोदा के बयान पर इतनी सियासत क्यों हो रही है और क्या इससे वोटर प्रभावित होंगे? चलिए समझते हैं..
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Politics Sam Pitroda’s statement सैम पित्रोदा कांग्रेस के ऐसे शख्स हैं, जो इस चुनाव में सीधे नहीं जुड़े हैं। देश के बाहर बैठे हुए हैं, लेकिन वे दो बार मुद्दा दे चुके हैं। उनके द्वारा विरासत टैक्स को लेकर दिए गए बयान पर बहस थमी नहीं थी कि उन्होंने एक बार फिर अपना मुंह खोल दिया और भारत के लोगों को चाइनीज, अफ्रीकन, अरबी और गोरों में बांट दिया। ये बिल्कुल बेकार की बात है। हिंदुस्तानी को ऐसे नहीं बांटना चाहिए। हालांकि वे भारत के विविधताओं के बारे में बताना चाह रहे थे, लेकिन इसके लिए उन्होंने जो उदाहरण दिया, वह सही नहीं था।
सैम पित्रोदा के इसी बयान को प्रधानमंत्री मोदी ले उड़े। हम अभी देख ही रहे हैं कि पीएम मोदी को जरा सा मुद्दा मिलता है, उन्हें अपने भाषणों में शामिल कर लेते हैं। पीएम मोदी ने बुधवार को अपनी सभाओं में पित्रोदा के बयान पर रोष व्यक्त किया। उन्होंने कड़े शब्दों इसका विरोध किया। मोदी ने अपने भाषण में राष्ट्रपति को भी शामिल किया और कहा कि कांग्रेस तो राष्ट्रपति को अफ्रीकन समझती है और उनका विरोध करती है। मेरा मानना है कि हम भारतीय है। हमें नस्ल और रंगभेद के आधार पर नहीं बांटा जाना चाहिए। ये अलग बात है कि सैम पित्रोदा विदेश में रहते हैं तो उनकी सोच ऐसी हो गई हो। सैम पित्रोदा को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था। मेरे हिसाब से सैम पित्रोदा का भारतीयों को रंगभेद के आधार पर बांटना और पीएम मोदी का इस मामले में राष्ट्रपति को घसीटना दोनों गलत बात है। कांग्रेस को सैम पित्रोदा को समझाना चाहिए कि आप विदेश में रहते हुए भाजपा को ऐसे बैठे-बैठाया मुद्दा मत दीजिए। दरअसल, इस बार के चुनाव में कोई ऐसा मुद्दा नहीं है, जो सभी चरणों को आपस में जोड़ें। यहीं वजह है कि हर चरण के बाद एक अजीब सा मुद्दा बेइमानी से निकल आता है। मुझे नहीं लगता कि सैम पित्रोदा के बयान से वोटर पर कोई प्रभाव पड़ेगा।
लोकसभा चुनाव के बीच सैम पित्रोदा के बयान पर देश में सियासत तो गर्म है ही, साथ ही साथ सियासी लड़ाई अब अडानी और अंबानी पर शिफ्ट होती नजर आ रही है। इसे लेकर भाजपा और कांग्रेस के नेता एक-दूसरे को घेर रहे हैं। अडानी और अंबानी के मुद्दे से जनता को कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है। अगर अडानी के मुद्दे से फर्क पड़ता तो कांग्रेस को इससे पहले के चुनावों में फायदा मिलता। क्योंकि राहुल गांधी समेत कांग्रेस के कई नेता इससे पहले के चुनावों में अडानी का नाम ले रहे थे। अडानी और अंबानी का मुद्दा एक अलग मुद्दा है। मतदाताओं को इससे फर्क नहीं पड़ने वाला है। मतदाता मानते हैं कि देश में पैसा कमाना अपराध तो नहीं है। अगर उनके खिलाफ कोई केस है तो वह कोर्ट में चलेगा। मैं ये नहीं मानता कि प्रधानमंत्री मोदी अडानी और अंबानी से मिले हुए हैं। वे देश के प्रधानमंत्री है, उनका अलग काम है। अडानी और अंबानी देश वेल्थ क्रियेटर है, उनका अलग काम है। अडानी और अंबानी का नाम लेने से कांग्रेस को फायदा होने वाली बात सही नहीं है। क्योंकि उनके नाम लेने से कांग्रेस को इससे पहले के चुनावों में कोई फायदा नहीं मिला है।
अब इस बात को पीएम मोदी के द्वारा छेड़ना भी अजीब सी बात है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी अब अडानी और अंबानी का नाम नहीं ले रहे हैं, क्योंकि मैं कांग्रेस के शहजादे से पूछना चाहता हूं कि उन्होंने अडाणी और अंबानी से कितना माल उठाया है? काला धन के बोरे भर के रुपए मारे हैं? कांग्रेस पार्टी को चुनाव के लिए उन उद्योगपतियों से कितना माल मिला? क्या टेंपो भरकर माल पहुंचा है? अब ये इस पर भी तो सवाल उठ सकता है कि आप प्रधानमंत्री और आपको पता नहीं है कि काला धन किसके पास है। इस तरीके की बातों से वोटरों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे जनता से जुड़े मुद्दों को सामने रखें। इससे उन्हें भी फायदा मिलेगा और आम जनता भी वोट के लिए प्रेरित होंगे।