(मार्टिन बुश, मेलबर्न विश्वविद्यालय/तान्या हिल, म्यूजियम विक्टोरिया रिसर्च इंस्टिट्यूट)
मेलबर्न, आठ मई (द कन्वरसेशन) कल्पना कीजिए: दर्शकों के एक छोटे से समूह को चुपचाप एक अंधेरे कमरे में ले जाया जाता है। अंदर जाते ही वे ये देखकर दंग रह जाते हैं कि रात का चमकीला आकाश उनपर चमक बिखेर रहा है। वे इस सोच में पड़ जाते हैं कि आखिर कमरे के अंदर ऐसा कैसे हो सकता है।
यह एक प्रदर्शनी है। ऊपर दिख रहे तारे विशुद्ध रूप से एक प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं। पहली बार आम लोगों ने मशीनों का इस्तेमाल करके बनाए गए आकाश के दीदार किए। दर्शकों ने यह नजारा जर्मनी के शहर म्यूनिख में खोले गए डॉयचे संग्रहालय में देखा, जिसका निर्माण विज्ञान और प्रौद्योगिकी को दर्शाने के लिए किया गया था। तारीख थी सात मई 1925।
समय के साथ-साथ, दुनिया भर की संस्कृतियों ने दुनिया को जानने, यह समझने के लिए कि हम कहां से आए हैं और ब्रह्मांड में अपना स्थान निर्धारित करने में मदद के लिए तारों का उपयोग किया है।
प्राचीन काल से ही लोग तारों और ग्रहों को अपने-अपने तरीके से समझने का प्रयास करते आएं हैं। 1700 के दशक में, सौरमंडल का एक घड़ीनुमा मॉडल, ऑरेरी, विकसित किया गया। ‘प्लैनेटोरियम’ यानी तारामंडल शब्द का आविष्कार ग्रहों को दर्शाने वाले ‘ऑरेरी’ का वर्णन करने के लिए किया गया था।
खगोलशास्त्री ईसे ईसिंगा ने एक कमरे के आकार का ऑरेरी मॉडल तैयार किया था। यह आज भी नीदरलैंड के फ्रैनेकर में काम कर रहा है।
इस दृश्य को देखने के लिए कोई भी मनुष्य सौरमंडल के आसपास नहीं गया है। ऑरेरी और ब्रह्मांड के अन्य यांत्रिक मॉडल जैसे आकाशीय ग्लोब ही बाहरी परिप्रेक्ष्य से दृश्य प्रस्तुत करते हैं।
पहला तारामंडल
तारों और ग्रहों को वास्तविक रूप से देखने की इच्छा 20वीं सदी की शुरुआत में तेजी से बढ़ी, क्योंकि बढ़ते शहरीकरण से होने वाले प्रदूषण ने रातों में दिखने वाले आकाश को धुंधला कर दिया था।
जर्मनी के म्यूनिख में स्थित डॉयचे संग्रहालय के प्रथम निदेशक ओस्कर वॉन मिलर जैसे लोग तारों और ग्रहों से सभी को रूबरू कराना चाहते थे। दिलचस्प बात यह है कि वॉन मिलर के करियर की शुरुआत एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के रूप में हुई थी। वह शहर में प्रकाश व्यवस्था के लिए जिम्मेदार थे, जिससे प्रकाश प्रदूषण होता था।
साल 1913 में शिकागो में एटवुड स्फेयर स्थापित किया जाना रात्रि आकाश को दिखाने का एक आरंभिक प्रयास था।
लगभग पांच मीटर चौड़ा भवन एटवुड स्फेयर धातु की शीट से बना था जिस पर सितारों का एक मानचित्र अंकित था। अंदर से देखने पर, 692 छोटे-छोटे छेदों से चमकती रोशनी शिकागो के रात्रि आकाश का अनुभव कराती थी। संपूर्ण संरचना को घुमाया भी जा सकता था, जिससे ऐसा लगता था कि तारे चल रहे हैं।
तारों का हकीकत में दीदार करना एक अलग बात है जबकि ग्रहों की प्रस्तुति एक अलग बात है, जिनकी स्थिति आकाश में हर रात बदलती रहती है। वॉन मिलर और डॉयचे संग्रहालय के अन्य लोग जानते थे कि स्थिर छिद्र किसी गतिशील ग्रह की जटिलता को प्रदर्शित नहीं कर सकते।
हालांकि एटवुड स्फेयर आकाश की दुनिया में ले जाने का एक आरंभिक प्रयास था। यह ज्यादा वास्तविक भी नहीं लगता था। ऐसे में एक ऐसा मॉडल बनाने की जरूरत महसूस हुई, जो ज्यादा वास्तविक लगे। इसी सोच के साथ एक नए तरह के ‘प्लेनेटोरियम’ का जन्म हुआ, जिसका नाम पहले के ‘ऑरेरी’ से लिया गया था, लेकिन यह पूरी तरह से अलग तरीके से काम करता था।
इस तरह के उपकरण के निर्माण का कार्य जर्मन ऑप्टिकल कंपनी कार्ल ज़ीस एजी को दिया गया था। अनेक असफलताओं के बाद, उनका पहला प्लेनेटोरियम प्रोजेक्टर 1923 में पूरा हुआ, जिसकी पहली प्रदर्शनी ठीक 100 साल पहले डॉयचे संग्रहालय में हुई थी।
तारामंडल जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे। कुछ ही दशकों में पूरे विश्व में तारामंडल स्थापित किए गए। अमेरिका में पहला तारामंडल 1930 में शिकागो में खुला, जबकि एशिया में पहला तारामंडल 1937 में जापान के ओसाका में खोला गया।
ऑस्ट्रेलिया का सबसे पुराना संचालित तारामंडल मेलबोर्न तारामंडल है, जिसका प्रबंधन 1965 से म्यूजियम विक्टोरिया कर रहा है। न्यूज़ीलैंड में, ऑकलैंड की स्टारडोम वेधशाला 1997 से काम कर रही है। दक्षिणी गोलार्ध में फिलहाल सबसे लंबे समय से चलने वाला तारामंडल मोंटेवीडियो, उरुग्वे में है, जो 1955 से चालू है।
पिछले 100 साल में डॉयचे संग्रहालय की ताकत यह रही है कि यह लोगों में आश्चर्य और विस्मय पैदा करने की क्षमता रखता है। यह आकाश के विशाल रहस्य के प्रति हमारे चिरस्थायी आकर्षण को दर्शाता है।
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जोहेब नरेश
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