Sukunaarchaeum Mirabile / Image Source: IBC24
Sukunaarchaeum Mirabile: वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीव की खोज की है जो जीवन और गैर-जीवन के बीच की रेखा को पूरी तरह धुंधला कर देता है। इसका नाम है सुकुनार्कियम मिराबाइल (Sukunaarchaeum mirabile), जो जापानी पौराणिक कथाओं के छोटे कद के देवता सुकुना से प्रेरित है। कनाडा और जापान के शोधकर्ताओं ने इस अनोखे जीव को समुद्री प्लवक सिथारिस्टेस रेजियस के जीनोम में खोजा। आइए जानते हैं इस खोज के बारे में सब कुछ!
वैज्ञानिकों ने इस नए जीव की खोज की है, इस जीव का नाम सुकुनार्कियम मिराबाइल (Sukunaarchaeum mirabile) रखा गया है, जो जापानी पौराणिक कथाओं के एक छोटे कद के देवता के नाम पर आधारित है। यह खोज कनाडा और जापान के शोधकर्ताओं ने की, जिन्होंने इसे समुद्री प्लवक सिथारिस्टेस रेजियस के बैक्टीरियल जीनोम का अध्ययन करते समय पाया।
वायरस को आमतौर पर “जीवित” नहीं माना जाता क्योंकि वे बढ़ते नहीं, खुद से प्रजनन नहीं करते, और अपनी ऊर्जा खुद नहीं बनाते। लेकिन सुकुनार्कियम मिराबाइल इस सोच को चुनौती देता है। ये आर्किया डोमेन का हिस्सा है, जो प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं से संबंधित है, लेकिन इसमें कुछ ऐसी खूबियाँ हैं जो इसे खास बनाती हैं।
कनाडा के डलहौजी विश्वविद्यालय के आणविक जीवविज्ञानी रयो हरदा की अगुआई में शोधकर्ताओं ने इस जीव को तब खोजा, जब वे समुद्री प्लवक के जीनोम का अध्ययन कर रहे थे। इस जीव का जीनोम इतना छोटा है कि ये वैज्ञानिकों को हैरान कर देता है। इसमें सिर्फ 2,38,000 बेस पेयर हैं, जबकि आर्किया में अब तक का सबसे छोटा जीनोम 4,90,000 बेस पेयर का था। ये जीव अपने मेजबान पर कई जैविक प्रक्रियाओं के लिए निर्भर है, लेकिन यह अपने राइबोसोम और मैसेंजर RNA खुद बना सकता है ऐसा कुछ जो सामान्य वायरस नहीं करते।
सुकुनार्कियम मिराबाइल एक आर्किया (Archaea) है, जो प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं से संबंधित है, लेकिन इसमें कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो इसे सामान्य वायरस और कोशिकीय जीवन के बीच रखती हैं। यह अपने राइबोसोम और मैसेंजर RNA स्वयं बना सकता है, जो सामान्य वायरस में नहीं पाया जाता। हालांकि, यह अपने मेजबान पर कई जैविक कार्यों के लिए निर्भर रहता है और इसका मुख्य ध्यान स्वयं की प्रतिकृति बनाने पर होता है।
इस जीव का जीनोम आश्चर्यजनक रूप से छोटा है, जिसमें केवल 2,38,000 बेस पेयर हैं। यह आर्किया समूह में अब तक के सबसे छोटे जीनोम से भी आधा है, जो 4,90,000 बेस पेयर का होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खोज जीवन की परिभाषा को चुनौती देती है और सूक्ष्मजीवीयों के बीच की जटिल बातचीत को समझने में नई संभावनाएं खोलती है।
डलहौजी विश्वविद्यालय, कनाडा के आणविक जीवविज्ञानी रयो हरदा के नेतृत्व में किए गए इस शोध को बायोरेक्सिव सर्वर पर प्रकाशित किया गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी और खोजें कोशिकीय विकास की हमारी समझ को और गहरा करेंगी।