मैं उस शख्स अब तक नहीं पहचान पाया…
जो कहता तो खुद को बाप है..
और सह जाता हर ताप है…
पिता पर लिखने का मौका आता है तो ओर छोर ही नहीं मिलता, गूगल पर सर्च करेंगे तो पिता पर निबंध तो मिल जायेगा, कोटेशन भी मिल जाएंगे, लेकिन भावनाओं में ओतप्रोत लेख बहुत कम मिलेंगे, या यू कहें की पिता ने अपने ‘की बर्डस’ ही नहीं बनाए हैं।
दरअसल पिता पर लिखने के पहले पिता बनना पड़ता है, और जब आदमी पिता बन जाता है तो वह सिर्फ संतान की लकीरें ही लिखता है। बहरहाल पिता को टटोलने की कोशिश करते हैं।
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जब किसी युवक को पहली बार पता चलते है कि वह पिता बनने वाला है, तो उसे इसका अंदाजा हो जाता है कि अब किरदार बदलने वाला है। अचानक से बैंक अकाउंट में डिलेवरी के लिए सेविंग शुरु होती है। जिस लेडी डॉक्टर की क्लीनिक को आंखें उठाकर नहीं देखा उसके यहां हर महीने जाना शुरु हो जाता है। सोनाग्राफी,10 प्रकार के टेस्ट, बेबी गर्ल-बेबी व्बाय का नाम को लेकर टेंशन शुरु हो जाती है।
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यदि युवक नौकरीपेशा है और डिलेवरी के दौरान पत्नी मायके या सुसराल में हो तो डिलेवरी डेट पर पहुंचना ही बड़ा टास्क हो जाता है।
हमेशा अच्छे से अच्छे अच्छे सैलून में कटिंग करने वाला पिता अब सबसे सस्ती दुकान तलाशता है। हमेशा नए फैशन के कपड़े पहनने वाले पिता अब नीले पैंट के साथ पीली शर्ट पहन लेता है। जूते कब खरीदे थे उसे तलबे घिसने के बाद भी याद नहीं आता है। अब पेट्रोल बचाने के लिए शॉर्टकट गलियों से होकर घर पहुंचता है। बाइक पर कभी धागा लटका ना देखने वाला शख्स अब ऑफिस जाते समय बैग में थैला लेकर जाता है। अब दुकानों पर उसकी निगाहें बच्चों का सामान ही ढ़ूढ़ती रहती हैं। किसी की बात ना सुनने वाला, छोटी-छोटी बातों में नौकरी छोड़ देने वाला अब बॉस की गाली खाकर सिर झुकाकर काम में लग जाता है। बरसता पानी भी बच्चे की जिद को पूरा करने से पिता को रोक नहीं पाती है। परदेस चला जाए बेटा तो जुबान नहीं कह पाती पर पिता की संवेदना बेटा-बेटी की पदचाप जरुर तलाशती है। ये कुछ ऐसे तथ्य है जो हर पिता के जीवन में होते ही हैं।
Happy father’s Day 2021
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वहीं जवान होता बच्चा जब बार-बार आइने के सामने जुल्फे संवारने लगता है तो पिता उसकी हसरतों को समझ जाता है। पिता उसे नियंत्रित शब्दों में रोकता, घर लेट आने पर टोकता है। कभी सख्ती भी दिखताा है, कभी उसकी पॉकेट मनी को रोकता है, वहीं बेटे के लिए पिता दुश्मन और दोस्त के डैडी दर्शनीय हो जाते हैं। किशोरवस्था से शुरु होकर बेटे के पिता बनने तक ये द्वंद चलता रहता है। फिर बेटा भी पिता बन जाता है… और फिर ये च्रक शुरु से शुरु हो जाता है।
बेटा जब बाप बन जाता है
हर बेटे की जिंदगी में वो लम्हा आता है, जब वो बाप बन जाता है
आटे- दाल का भाव पता चल जाता है, बेटा जब बाप हो जाता है
कैसे फटती है एड़ियां,
कैसे हो जाती विवाइयां,
कैसे बढ़ता चश्मे का नंबर
सिमट जाता है इच्छाओं का अंबर
सब परत-दर-परत खुल जाता है
बेटा जब बाप बन जाता है
पीठ पर लाद लेता है उम्मीद की बोरी
बैग बदलकर झोला हो जाता है
बेटा जब बाप हो जाता है
काजू- बादाम का अधिकार बदल जाता है
आलमारी में कपड़ों का ढेर सिमट जाता है
घोड़े से गधा, गधे से खच्छर हो जाता है
बेटा जब बाप बन जाता है
माथे पे लकीरों का आकार बदल जाता है
पिता को कही बातों का हरघाव याद आता है
बेटा जब बाप बन जाता है।