नयी दिल्ली, 30 दिसंबर (भाषा) संसद की एक समिति ने लिथियम, ग्रेफाइट, कोबाल्ट जैसे महत्वपूर्ण खनिजों में देश की आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए विभिन्न मंत्रालयों के बीच निर्बाध समन्वय की जरूरत पर बल दिया है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भविष्य की प्रौद्योगिकी-आधारित वैश्विक अर्थव्यवस्था में इन खनिजों की भूमिका निर्णायक होगी और इनके लिए सुदृढ़ एवं टिकाऊ आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करना समय की मांग है।
कोयला, खान और इस्पात संबंधी संसद की स्थायी समिति ने एक रिपोर्ट में कहा कि घरेलू क्षमता निर्माण पर केंद्रित ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल महत्वपूर्ण खनिजों की लगातार आपूर्ति सुनिश्चित करने और देश की औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने की अपार संभावनाएं रखती है।
इसके साथ समिति ने आगाह भी किया है कि विभिन्न मंत्रालयों एवं सरकारी एजेंसियों के बीच प्रभावी तालमेल नहीं रहने पर ये प्रयास अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाएंगे।
समिति ने कहा, “खान मंत्रालय के साथ इससे जुड़े सभी मंत्रालयों, राज्य सरकारों और एजेंसियों को करीबी तालमेल के साथ काम करना चाहिए, ताकि देश महत्वपूर्ण खनिज क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी बना रहे।”
इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभाने वाले खान मंत्रालय की तारीफ करते हुए कहा गया है कि समन्वित प्रयासों के बिना लक्ष्य को हासिल कर पाना मुश्किल होगा।
संसदीय समिति ने कहा कि महत्वपूर्ण खनिज राष्ट्रीय विकास और सुरक्षा दोनों के लिए बेहद जरूरी हैं, लेकिन सीमित उपलब्धता और कुछ खास भौगोलिक क्षेत्रों में ही इनकी मौजूदगी होने से इनकी आपूर्ति को लेकर जोखिम हैं।
इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, परिवहन, रक्षा एवं ऊर्जा जैसे अनेक क्षेत्रों में इन खनिजों का व्यापक उपयोग होता है। ऐसे में खनिज क्षेत्र, खासकर महत्वपूर्ण खनिजों में आत्मनिर्भरता, देश की आर्थिक वृद्धि और प्रौद्योगिकी विकास के लिए अनिवार्य है।
समिति ने कहा कि भविष्य की वैश्विक अर्थव्यवस्था उन प्रौद्योगिकियों पर आधारित होगी, जिनकी निर्भरता लिथियम, ग्रेफाइट, कोबाल्ट और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों जैसे खनिजों पर होगी।
रिपोर्ट में खनिज उत्पादन बढ़ाने और इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए सरकार के नीतिगत सुधारों की सराहना भी की गई है।
समिति के मुताबिक, सरकार ने 30 महत्वपूर्ण खनिजों की पहचान की है, जिनमें से 24 को खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 की पहली अनुसूची के भाग-डी में रखा गया है। इसके तहत इन खनिजों के लिए खनन पट्टों और समग्र लाइसेंस की नीलामी का विशेष अधिकार अब केंद्र सरकार के पास है। इसके अलावा मंत्रालय ने ‘कारोबारी सुगमता’ को बढ़ावा देने के लिए कई अन्य नीतिगत पहल भी की हैं।
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