भारत में खतरनाक पीएम2.5 के प्रसार का मुख्य कारण द्वितीयक कण पदार्थ : सीआरईए विश्लेषण

भारत में खतरनाक पीएम2.5 के प्रसार का मुख्य कारण द्वितीयक कण पदार्थ : सीआरईए विश्लेषण

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  • Publish Date - December 24, 2025 / 06:50 PM IST,
    Updated On - December 24, 2025 / 06:50 PM IST

नयी दिल्ली, 24 दिसंबर (भाषा)भारत में पीएम2.5 प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष रूप से उत्सर्जित नहीं होता है, बल्कि यह वायुमंडल में पूर्ववर्ती गैसों से रासायनिक रूप से बनता है, जिसमें से 42 प्रतिशत हिस्सेदारी द्वितीयक कण पदार्थ की होती है जिसमें मुख्य रूप से सल्फर डाइऑक्साइड (एओ2) से निर्मित अमोनियम सल्फेट के कण शामिल हैं। यह खुलासा वायुमंडलीय कणों के एक नवीनतम विश्लेषण में हुआ है।

भारत विश्व स्तर पर एसओ2 का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, जिसमें कोयला आधारित बिजली संयंत्र राष्ट्रीय एसओ2 उत्सर्जन में कम से कम 60 प्रतिशत का योगदान करते हैं। इस प्रकार इस पीएम2.5 प्रदूषण को कम करने में एसओ2 पर नियंत्रण अहम है।

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए)ने एक बयान में कहा, ‘‘ सीआरईए द्वारा किए गए एक नवीनतम विश्लेषण के मुताबिक भारत में पीएम2.5 प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा सीधे उत्सर्जित नहीं होता, बल्कि वायुमंडल में पूर्ववर्ती गैसों से रासायनिक रूप से बनता है। इस आकलन से ज्ञात होता है कि भारत में पीएम2.5 प्रदूषण का 42 प्रतिशत तक हिस्सा द्वितीयक कण पदार्थ है, जो मुख्य रूप से सल्फर डाइऑक्साइड से निर्मित अमोनियम सल्फेट है।’’

इसमें कहा गया, ‘‘इन सबूतों के बावजूद, मौजूदा नियामक ढांचे ने लगभग 78 प्रतिशत कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) प्रणाली स्थापित करने से छूट दी है, जिससे स्रोत पर एसओ2 नियंत्रण काफी कमजोर हो गया है।’’

इन निष्कर्षों के साथ-साथ मौजूदा वायु गुणवत्ता रणनीतियों की बड़ी कमियों को भी रेखांकित किया गया है, जो पीएम10, सड़क की धूल और अन्य दिखने वाले प्रदूषण स्रोतों को प्राथमिकता देना जारी रखती हैं, जबकि एसओ2, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और अमोनिया जैसी पूर्ववर्ती गैसों की भूमिका को काफी हद तक नजरअंदाज करती हैं।

विश्लेषण के अनुसार, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के प्रभुत्व वाले राज्य छत्तीसगढ़ (42 प्रतिशत) में अमोनियम सल्फेट का वार्षिक योगदान सबसे अधिक है, जिसके बाद ओडिशा (41) का स्थान आता है।

इसमें कहा गया, ‘‘यह दर्शाता है कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत द्वितीयक अमोनियम सल्फेट निर्माण और पीएम2.5 को कम करने के लिए सभी कोयला आधारित तापीय विद्युत संयंत्रों में अनिवार्य एफजीडी को लागू करना महत्वपूर्ण है।’’

विश्लेषण के मुताबिक दिल्ली के वार्षिक पीएम2.5 के स्तर में लगभग एक तिहाई योगदान द्वितीयक अमोनियम सल्फेट की है।

सीआरईए के मुताबिक शहर में प्रदूषण के सबसे अधिक रहने वाले समय, मानसून के बाद और सर्दियों के दौरान, पीएम2.5 में अमोनियम सल्फेट का प्रभुत्व होता है, जो क्रमशः 49 प्रतिशत और 41 प्रतिशत रहता है, जबकि गर्मियों और मानसून में यह कुल पीएम2.5 स्तर में केवल 21 प्रतिशत जिम्मेदार होते हैं।

बयान के मुताबिक, ‘‘इससे खुलासा होता है कि दिल्ली में प्रदूषण की सबसे भीषण घटनाएं मुख्य रूप से क्षेत्रव्यापी एसओ2 उत्सर्जन और द्वितीयक कण निर्माण के कारण होती हैं, न कि केवल स्थानीय प्राथमिक स्रोतों के कारण।’’

सीआरईए ने इस नतीजे के आधार को लेकर बताया, ‘‘2024 के लिए नासा के एमईआरआरए-2 पुनर्व्याख्या डेटा का उपयोग किया गया जिसमें खुलासा हुआ कि भारतीय राज्यों में पीएम2.5 द्रव्यमान में अमोनियम सल्फेट का योगदान 17 प्रतिशत से 42 प्रतिशत के बीच है, जिसमें अधिकांश राज्यों में यह वार्षिक रूप से 30 से 40 प्रतिशत के बीच रहता है।’’

बयान के मुताबिक, ‘‘इससे यह साबित होता है कि भारत में पीएम2.5 प्रदूषण का मुख्य कारण द्वितीयक कण पदार्थ है, न कि कोई मामूली या मौसमी समस्या। छत्तीसगढ़ के अलावा, भारत के कई अन्य राज्यों में भी इसका उच्च स्तर दर्ज किया गया है, जो दर्शाता है कि द्वितीयक सल्फेट का निर्माण व्यापक और राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है, न कि कुछ क्षेत्र विशेष में।’’

भाषा धीरज नरेश

नरेश