भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण के ये प्रमाण बने सुप्रीम कोर्ट में फैसले का आधार…देखिए

भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण के ये प्रमाण बने सुप्रीम कोर्ट में फैसले का आधार...देखिए

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  • Publish Date - November 9, 2019 / 07:28 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:29 PM IST

नईदिल्ली। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाया कि विवादित जमीन राम जन्मभूमि न्यास को दी गई है, मस्जिद के लिए अयोध्या में ही अलग से पांच एकड़ जमीन दी जाएगी। कोर्ट ने भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण यानी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की रिपोर्ट के आधार पर यह भी कहा है कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी।

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कोर्ट ने ASI रिपोर्ट के आधार पर अपने फैसले में कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की भी पुख्ता जानकारी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को अयोध्या जमीन विवाद मामले इस बात को माना कि ढांचा गिराना कानून व्यवस्था का उल्लंघन था। कोर्ट ने कहा कि आस्था और विश्वास के आधार पर मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता। अपना फैसला पढ़ते हुए अदालत ने कहा कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। अदालत ने माना कि वहां पहले मंदिर था।

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कोर्ट ने एएसआई की रिपोर्ट को वैध माना और कहा कि खुदाई में जो मिला वह इस्लामिक ढांचा नहीं था। फैसला पढ़ते हुए शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज कर दी है। अदालत की पीठ ने यह फैसला सर्वसम्मति से लिया। शिया बोर्ड ने मामले में याचिका दायर कर कहा था कि विवादित स्थल उसे सौंपा जाना चाहिए क्योंकि मस्जिद बनाने वाला शिया था। लेकिन कोर्ट ने इस याचिका को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया।

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बता दें कि जब भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण मतलब आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने पहली बार राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया था। करीब 15 साल पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर अयोध्या में विवादित जमीन की खुदाई की थी। जिसमें मिली चीजों का एएसआई की टीम ने वैज्ञानिक परीक्षण किया था। इसके आधार पर विवादित ढांचे के नीचे प्राचीन मंदिर के अवशेष होने का दावा किया गया था। मंदिर के पक्ष में मिले इन सबूतों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में अहम भूमिका निभाई थी।

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वहीं कोर्ट में हिंदू पक्ष की दलील थी कि पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी रामजन्मस्थान का सटीक ब्यौरा है। इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर जबरन मस्जिद बनाई। एएसआई यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई की रिपोर्ट में भी विवादित ढांचे के नीचे टीले में विशाल मंदिर के प्रमाण मिले।

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हिंदू पक्ष की दलील थी कि खुदाई में मिले कसौटी पत्थर के खंबों में देवी देवताओं, हिंदू धार्मिक प्रतीकों की नक्काशी। 1885 में फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज ने अपने फैसले में माना था कि 1528 में इस जगह हिंदू धर्मस्थल को तोड़कर निर्माण किया गया। चूंकि अब इस घटना को साढ़े तीन सौ सालों से ज्यादा समय हो चुका है लिहाजा अब इसमें कोई बदलाव करने से कानून व्यवस्था की समस्या हो सकती है।

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