सिर पर मैला ढोने वाली ऊषा चोमर को मिलेगा पद्मश्री, पीएम मोदी को बताया महात्मा गांधी के बाद दूसरा बड़ा नेता

सिर पर मैला ढोने वाली ऊषा चोमर को मिलेगा पद्मश्री, पीएम मोदी को बताया महात्मा गांधी के बाद दूसरा बड़ा नेता

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  • Publish Date - January 26, 2020 / 07:03 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:25 PM IST

नईदिल्ली। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री अवार्ड पाने वालों के नाम में ऊषा चोमर का नाम भी शामिल है। ऊषा चोमर राजस्थान के अलवर जिले की रहने वाली हैं और मैला ढोने का काम करती थीं। ऊषा चोमर पद्मश्री अवार्ड मिलने की घोषणा से बेहद खुश हैं। अपनी पुरानी बातें याद करते हुए ऊषा बताती हैं कि उन्हें कैसे समाज में तिरस्कृत नजरों से देखा जाता था। लोगों के व्यवहार की वजह से कई बार वो यह काम छोड़ना चाहती थीं। लेकिन सुलभ शौचालय के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक से जुड़ने के बाद उनकी जिन्दगी बदलने लगी।

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ऊषा बताती हैं कि एक वक्त में मैला ढोने के काम से ऊब गई थी, लेकिन इसी काम ने उन्हे समाज में नई पहचान दी है, आज लोग उसे इज्जत की नजरों से देखते हैं। वो महिलाओं के लिए उदाहरण बन गई हैं। इस काम की वजह से वो पांच देशों की यात्रा कर आईं, कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की है।

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पहले जिस समाज में किसी को छू लेना भी उनके लिए अपराध था, आज वहीं के लोग उन्हें अपने घर पर बुलाते हैं, शादी सामारोह में उनका विशेष स्वागत करते हैं, आज वो मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ भी कर पाती हैंं। अवॉर्ड के लिए चुने जाने पर ऊषा चोमर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया हे। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के बाद पीएम मोदी ही दूसरे नेता हैं जिन्होंने सफाई के लिए झाड़ू अपने हाथ में लिया। इसका असर अन्य देशवासियों पर भी हुआ है।

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साल 2003 में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक अलवर आए, वो मैला ढोने वाले परिवारों से मिलकर काम करना चाहते थे, लेकिन कोई महिला समूह उनसे मिलने को तैयार नहीं थी, किसी तरीके से बातचीत कर एक महिला समूह को तैयार किया गया। महल चौक इलाक़े में महिलाएं इकट्ठा हुईं, इस मुलाकात ने उनकी जिन्दगी बदल दी, वो पापड़ और जूट से संबंधित काम करने लगीं। साल 2010 तक उन्होंने अलवर की सभी मैला ढोने वाली महिलाओं को अपने साथ जोड़ लिया, इस काम की वजह से उनकी आमदनी बढ़ने लगी।

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ऊषा चोमर बताती हैं कि आर्थिक मजबूती ने सभी महिलाओं का जीवन बदल दिया है, आज उनके जैसी कई महिलाएं सम्मान के साथ अपना जीवन निर्वहन कर रही हैं और ये सब कुछ हुआ बिंदेश्वर पाठक की वजह से अब अलवर में कोई महिला, मैला नहीं ढोती है। ऊषा कहती हैं कि जब पद्मश्री की घोषणा हुई तो उनके घर पर बधाई देने वालों का तांता लग गया।