श्रावणी पर्व गढ़ता है आत्मसंयम का संस्कार, जानिए श्रावण मास का खास महत्व

श्रावणी पर्व गढ़ता है आत्मसंयम का संस्कार, जानिए श्रावण मास का खास महत्व Shravani festival creates the rite of self-restraint

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  • Publish Date - August 1, 2022 / 05:59 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 01:39 AM IST

Self Control

Self-restraint: नई दिल्ली। श्रावणी रक्षाबंधन ऐसा वैदिक पर्व है जिसका दिव्य तत्वदर्शन आज के संदर्भ में पहले से अधिक प्रासंगिक है। इसे जीवन मूल्यों की रक्षा के संकल्प पर्व के रूप में मनाया जाता है क्योंकि उन्नत जीवन मूल्य ही सुखी एवं समृद्ध जीवन की आधारशिला रख सकते हैं। वैदिक भारत का समाज यदि आज की अपेक्षा अधिक व्यवस्थित एवं अनुशासित था तो इसका मूल कारण था कि श्रावणी जैसे पर्वों का होना।

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Self-restraint: वैदिक मनीषियों के अनुसार, श्रावणी पर्व के तीन मूल पक्ष हैं- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। इस दिन यज्ञोपवीत धारण कर साधक संकल्पपूर्वक बीते वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पापकर्मों का प्रायश्चित्त करता है। इसका कारण कि भारतीय संस्कृति में यज्ञोपवीत धारण को आत्मसंयम का संस्कार माना गया है। इस संस्कार का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति आत्मसंयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म लेकर द्विज कहला सकता है।

इस पर्व पर जिन धागों के जरिए बहन भाई की रक्षासूत्र बांधकर उससे अपनी रक्षा करने का वचन लेती है, वह देखने में भले ही साधारण लगता हो लेकिन इसमें आत्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा के साथ ही समग्र मानवता की रक्षा का गहरा संकल्प भी निहित है। आज की परिस्थितियों में रक्षाबंधन के इसी वृहत संकल्प को समझाने की जरूरत है।

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श्रावण पर्व का महत्व
Self-restraint: चलिए जानें इस श्रावण पर्व की खास बातें , श्रावण पर्व का हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा महत्व है।
श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता इसके साथ जुडे़ समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं। शास्त्रों में सावन के महात्म्य पर विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है। श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है।

श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है। इस मास का प्रत्येक दिन पूर्णता लिए हुए होता है। धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई देता है इस माह की प्रत्येक तिथि किसी न किसी धार्मिक महत्व के साथ जुडी़ हुई होती है। इसका हर दिन व्रत और पूजा पाठ के लिए महत्वपूर्ण रहता है।

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