14 साल की उम्र में बनीं सबसे खूंखार स्नाइपर, 300 से ज्यादा लोगों को मारा, मिला ‘लेडी डेथ’ का खिताब

14 साल की उम्र में बनीं सबसे खूंखार स्नाइपर, 300 से ज्यादा लोगों को मारा, मिला 'लेडी डेथ' का खिताब

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  • Publish Date - March 2, 2021 / 01:17 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:50 PM IST

यूक्रेन। ‘लेडी डेथ’ के नाम से मशहूर शूटर (ल्यूडमिला पवलिचेंको) ने 300 से ज्यादा लोगों को मारा, 14 साल की उम्र में हथियार उठा कर बनीं इतिहास की सबसे खूंखार स्नाइपर। इस महिला की गिनती इतिहास की सबसे खूंखार शूटर के तौर पर होती है। एक इंटरव्यू में ल्यूडमिला पवलिचेंको ने कहा था कि ‘नाजियों को मारना कोई उलझन भरी बात नहीं है, जिस तरह एक शिकारी जानवरों को मारकर आत्मसंतुष्ट होता है उसी तरह मुझे भी संतुष्टि हुई है।

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हालांकि ल्यूडमिला पवलिचेंको सिर्फ एक सैनिक नहीं थीं बल्कि इतिहास की सबसे सफल महिला शूटर में से भी एक थीं। कहा जाता है कि वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान ल्यूडमिला पवलिचेंको ने 309 लोगों को मारा था। एक बेहतरीन शूटर होने की वजह से उन्हें ‘लेडी डेथ’ का खिताब मिला है।

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ल्यूडमिला पवलिचेंको का जन्म यूक्रेन के पास स्थित एक गांव Kiev में हुआ था। बचपन से ही वो काफी तेजतर्रार थीं। हालांकि कहा जाता है कि बचपन में उन्हें लिंगभेद का सामना भी करना पड़ा। उन्होंने जब यह सुना कि उनके पड़ोस में रहने वाले लड़के ने शूटिंग की ट्रेनिंग ली है।

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इसके बाद ल्यूडमिला ने भी शूटिंग की ट्रेनिंग ली। 14 साल की उम्र में हथियार थामने वाली ल्यूडमिला ने आर्म्स फैक्ट्री में काम भी किया। करीब 16 साल की उम्र में ल्यूडमिला की शादी एक चिकित्सक से हो गई। ल्यूडमिला ने बच्चे को भी जन्म दिया। साल 1937 में Kiev University में दाखिला लिया। इसके साथ ही साथ उन्होंने स्नाइपर स्कूल में भी दाखिला लिया।

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साल 1941 में जब जर्मन की सेना ने सोवियत यूनियन से जंग छेड़ी तब ल्यूडमिला पवलिचेंको भी स्कूल छोड़ रेड आर्मी में शामिल हो गईं। हालांकि उस वक्त आर्मी में कोई महिला नहीं थी, लेकिन ल्यूडमिला पवलिचेंको को काफी सपोर्ट मिला। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 25 साल की उम्र में ल्यूडमिला ने अपनी स्नाइपर राइफल से कुल 309 लोगों को मार गिराया था, जिनमें से अधिकतर हिटलर की फौज के सिपाही थे। स्नाइपर राइफल के साथ अविश्वसनीय क्षमता के कारण ल्यूडमिला को ‘लेडी डेथ’ नाम से भी पुकारा जाता था।

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ल्यूडमिला साल 1942 में युद्ध के दौरान बुरी तरह घायल हो गईं, जिसके बाद उन्हें रूस की राजधानी मॉस्को भेज दिया गया। वहां चोट से उबरने के बाद उन्होंने रेड आर्मी के दूसरे निशानेबाजों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया और फिर बाद में वह रेड आर्मी की प्रवक्ता भी बनीं। 1945 में युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने सोवियत नौसेना के मुख्यालय में भी काम किया। 10 अक्तूबर 1974 को 58 साल की उम्र में मॉस्को में ही उनकी मौत हो गई।