CAA विरोधियों का ‘प्रयोग’ तो बड़ा विध्वंसकारी और जानलेवा साबित हुआ। नागरिकता तो नहीं छिनी, लेकिन 42 बेगुनाहों की जिंदगी जरूर छिन गई। सैकड़ों का आशियाना और रोजगार छिन गया, शहर का अमन-ओ-चैन छिन गया।
प्रयोग का ये संयोग पुराना है। 2 अप्रैल, 2018 का भारत बंद याद है? उस बंद के दौरान हुई हिंसा में 17 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। आगजनी और तोड़फोड़ में अरबों रुपए की संपत्ति तहस-नहस हुई थी, सो अलग। सारी सुनियोजित अराजकता ये अफवाह फैलाकर मचाई गई थी, कि सरकार आरक्षण खत्म करने जा रही है। जबकि हकीकत में मामला SC-ST एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक से संबंधित फैसले से जुड़ा था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का आरक्षण से कोई लेना-देना था ही नहीं। सरकार सफाई देती रह गई, लेकिन अफवाह गैंग ने अपना भ्रमजाल फैलाकर देश को गृहयुद्ध के मुहाने पर और भाजपा को सियासी चक्रव्यूह के बीच में खड़ा कर दिया था।
तब भाजपा को इस चक्रव्यूह से निकलने की तगड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। खुद पर लगे दलित विरोधी तोहमत को हटाने के लिए सरकार को संसद में SC-ST एक्ट में संशोधन करना पड़ा। हालांकि ऐसा करके वो एक मुसीबत से निकल कर दूसरी में फंस गई थी। बाकी का काम मध्यप्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनावों में माई के लालों और नोटावीरों ने कर दिया।
लोगों का बरगलाने का पैटर्न वही पुराना है, तब के आरक्षण आधारित आंदोलन वाला। तब आरक्षण की आड़ थी, अब नागरिकता की। तब आरक्षण छीन लिए जाने का भय दिखाकर आरक्षित वर्ग को भड़काया, अब नागरिकता छीन लिए जाने का डर दिखाकर एक समुदाय विशेष को भरमाया। हकीकत में ना तब किसी का आरक्षण छीना जा रहा था, और ना अब किसी की नागरिकता। तब कौआ आरक्षण का कान लेकर भागा था अब नागरिकता का। तब 17 जिंदगी सियासी षड़यंत्र की भेंट चढ़ गईं, अब 42।
सवाल उठता है कि अब आगे क्या? दो ही विकल्प हैं। या तो सरकार CAA पर अपने फैसले से पीछे हट जाए, या फिर विरोधी अपने रुख से। यहीं पर दोनों पक्षों की ओर से अगला सवाल खड़ा हो जाता है- आखिर क्यों पीछे हट जाएं? इस ‘क्यों’ का ईमानदारी से जवाब तलाशने में ही गतिरोध का समाधान छिपा है।
सरकार CAA की प्रासंगिकता, अतीत में रहे कांग्रेस के सकारात्मक रुख और अब फैलाए जा रहे भ्रम को दूर करने के लिए अनेकानेक बार अपना पक्ष रख चुकी है। पूर्णरुपेण संवैधानिक पक्रिया का पालन करते हुए संसद के दोनों सदनों में चर्चा कराने के बाद पारित नागरिकता संशोधन कानून पर सरकार एक इंच पीछे नहीं हटेगी, ये भी उसने साफ शब्दों में ऐलान कर रखा है। रही बात NRC की तो प्रधानमंत्री स्पष्ट कर चुके हैं कि इसे लागू करने की फिलहाल कोई तैयारी नहीं है।
सरकार के इस स्पष्टीकरण और रुख के बाद अब CAA विरोधियों के सामने दो ही विकल्प हैं। या तो वे इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर फैसला आने का इंतजार करें, या फिर इस सरकार के बदलने का। तीसरे विकल्प के तहत अगर वे सियासत का मोहरा बनकर रहना चाहते हैं, तो फिर उनकी मर्जी।
सौरभ तिवारी
डिप्टी एडिटर, IBC24
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