आयात शुल्क घटने की अफवाह से बीते सप्ताह तेल तिलहन बाजार टूटे

आयात शुल्क घटने की अफवाह से बीते सप्ताह तेल तिलहन बाजार टूटे

आयात शुल्क घटने की अफवाह से बीते सप्ताह तेल तिलहन बाजार टूटे
Modified Date: November 29, 2022 / 08:54 pm IST
Published Date: May 23, 2021 8:24 am IST

नयी दिल्ली, 23 मई (भाषा) सरकार द्वारा आयातित तेल तिलहनों के आयात शुल्क में कमी किये जाने की अफवाह से दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह बाजार में अफरा तफरी का माहौल था तथा मांग प्रभावित होने से लगभग सभी प्रमुख तेल तिलहनों के भाव नरमी दर्शाते बंद हुए।

जानकार सूत्रों ने कहा कि अफवाहों के कारण मांग गंभीर रूप से प्रभावित होने की वजह से मुख्य रूप से सीपीओ और सोयाबीन तेल कीमतों की अगुवाई में सरसों, मूंगफली, बिनौला सहित विभिन्न तेल तिलहन कीमतों में गिरावट देखी गई।

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उन्होंने बताया कि अफ्रीकी देश मोजांबिक ने अपने यहां सोयाबीन के निर्यात को तत्काल प्रभाव से रोक दिया है। सोयाबीन के बिजाई का समय नजदीक है और बरसात के कारण पिछली फसल दागी निकलने की वजह से बिजाई के लिए सोयाबीन के बेहतर दाने की कमी है। वैसे सरकार ने सोयाबीन के बेहतर बीज की पर्याप्त आपूर्ति किये जाने का आश्वासन दे रखा है पर किसानों को अभी ये बीज उपलब्ध नहीं हैं।

हालात यह हैं कि महाराष्ट्र की लातूर मंडी में सोयाबीन की जो आवक 7-8 हजार बोरी प्रतिदिन की थी वह शनिवार को घटकर 4-5 हजार बोरी प्रतिदिन

रह गई है और कीमतों में लगभग 50 रुपये क्विन्टल की तेजी है। अगर किसानों को अच्छे बीज नहीं मिले तो सोयाबीन का उत्पादन प्रभावित हो सकता है जिसकी अगली फसल बेहतर होने की संभावना जताई जा रही थी।

अफवाहों के संदर्भ में बाजार के जानकारों ने कहा कि सरकार की ओर से आयात शुल्क कम करने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि विदेशों में खाद्य तेलों के दाम बढ़ा दिये जाते हैं और स्थिति जस की तस बनी रहती है।

इसका दूसरा गंभीर असर देश के तेल तिलहन उद्योग और तिलहन किसानों पर होता है जो भाव की अनिश्चिताताओं के कारण असमंजस की स्थिति का सामना करते हैं और साथ ही सरकार को राजस्व की हानि होती है। इससे तिलहन किसानों का हौसला टूटता है जिनके फसल की खरीद प्रभावित होती है।

सूत्रों ने कहा कि आयात शुल्क घटाने का कोई औचित्य ही नहीं है क्योंकि इन आयातित तेलों के भाव सरसों जैसे देशी तेल के मुकाबले पहले से ही नीचे चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन आयातित तेलों के दाम का कम होना इस बात को साबित करता है कि आयातित तेलों की पर्याप्त आपूर्ति हो रही है तो ऐसे में आयात शुल्क को और कम करने से कोई अपेक्षित नतीजा नहीं निकल सकता।

उन्होंने कहा कि कांडला बंदरगाह पर सोयाबीन डीगम के आने पर भाव 1,425 डॉलर प्रति टन बैठता है। मौजूदा आयात शुल्क और बाकी खर्चो के उपरांत इंदौर जाने पर इसका भाव 152 रुपये किलो बैठता है। लेकिन इंदौर के वायदा कारोबार में इस तेल के जुलाई अनुबंध का भाव 136 रुपये किलो और अगस्त अनुबंध का भाव 133 रुपये किलो बोला जा रहा है। जब आयातकों को खरीद मूल्य से 16-19 रुपये नीचे बेचना पड़ेगा तो फिर आयात शुल्क कम किये जाने का क्या फायदा है? उन्होंने कहा कि मलेशिया और अर्जेन्टीना में जिन लोगों के तेल प्रसंस्करण संयंत्र हैं, सिर्फ उन्हें ही ऐसी अफवाहों का फायदा मिलता है। संभवत: इन्हीं वजहों से किसान धान और गेहूं की बुवाई पर जोर देते हैं और तिलहन उत्पादन पर कम ध्यान देते हैं।

उन्होंने कहा कि खासकर तिलहन बुवाई के मौसम के दौरान अफवाहें फैलाने वालों पर नियंत्रण किया जाना चाहिये और आयात शुल्क के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ करने से बचा जाना चाहिये।

बीते सप्ताह, सरसों दाना का भाव 200 रुपये की हानि दर्शाता 7,300-7,400 रुपये प्रति क्विन्टल रह गया जो भाव उसके पिछले सप्ताहांत 7,550-7,600 रुपये प्रति क्विंटल था। सरसों दादरी तेल का भाव भी 625 रुपये घटकर 14,500 रुपये प्रति क्विन्टल रह गया। सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी टिनों के भाव भी समीक्षाधीन सप्ताहांत में 75-75 रुपये की हानि दर्शाती क्रमश: 2,315-2,365 रुपये और 2,415-2,515 रुपये प्रति टिन पर बंद हुए।

सोयाबीन के दागी फसलों की मांग घटने से सोयाबीन दाना और लूज के भाव में 150-150 रुपये की हानि दर्ज हुई। आयात शुल्क में कमी किये जाने की अफवाह से कारोबारी मांग प्रभावित हुई जिसकी वजह से समीक्षाधीन सप्ताहांत में सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम के भाव क्रमश: 400 रुपये, 450 रुपये और 450 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 15,600 रुपये, 15,300 रुपये और 14,050 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए।

निर्यात मांग घटने और गुजरात की मंडियों में मूंगफली के गर्मी के फसल की आवक बढ़ने से मूंगफली दाना 125 रुपये की गिरावट के साथ 6,170-6,215 रुपये, मूंगफली गुजरात 300 रुपये हानि के साथ 15,200 रुपये क्विन्टल तथा मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड का भाव 55 रुपये की गिरावट के साथ 2,435-2,485 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ।

सप्ताह के दौरान अफवाहों के मद्देनजर मांग प्रभावित होने से कच्चा पाम तेल (सीपीओ) का भाव 360 रुपये घटकर 12,300 रुपये प्रति क्विन्टल रह गया। पामोलीन दिल्ली और पामोलीन कांडला तेल के भाव भी समीक्षाधीन सप्ताहांत में क्रमश: 450 रुपये और 470 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 14,100 रुपये और 13,100 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।

गिरावट के आम रुख के अनुरूप समीक्षाधीन सप्ताहांत में बिनौला तेल भी 300 रुपये की हानि के साथ 14,550 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ। अन्य सभी तेल तिलहनों के भाव पूर्ववत बंद हुए।

भाषा राजेश

मनोहर रमण

रमण


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