Rajim Kumbh: राजिम कुंभ में आकर्षण का केंद्र बना पंचकोशी यात्रा की झांकी, आस्था और संस्कृति की झलक श्रद्धालुओं को कर रही आकर्षित

Rajim Kumbh 2025: राजिम कुंभ में आकर्षण का केंद्र बना पंचकोशी यात्रा की झांकी, आस्था और संस्कृति की झलक श्रद्धालुओं को कर रही आकर्षित

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  • Publish Date - February 16, 2025 / 04:08 PM IST,
    Updated On - February 16, 2025 / 04:08 PM IST

Rajim Kumbh 2025 | Photo Credit: CGDPR

HIGHLIGHTS
  • श्रद्धालुओं के लिए आस्था और संस्कृति का अद्भुत संगम।
  • यात्रा के दौरान मन के विकारों से मुक्ति और शांति का अनुभव।
  • देशभर के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत की जा रही सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ।

रायपुर: Rajim Kumbh 2025 राजिम कुंभ कल्प मेला में इस बार पहले से अधिक भव्य और आकर्षक रूप में आयोजित किया जा रहा है। श्रद्धालुओं की आस्था, भक्ति और संस्कृति का संगम इस मेले में देखने को मिल रहा है। मेले में दिनभर भजन-कीर्तन की गूंज के साथ देशभर के प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दी जा रही हैं। इस बार पंचकोशी यात्रा की थीम पर बनी झांकी मेलार्थियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है, जो आस्था और संस्कृति की झलक प्रस्तुत कर रही है।

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Rajim Kumbh 2025 चौबेबांधा के नए मेला मैदान में पंचकोशी यात्रा की झांकी बनाई गई है, जो मेलार्थियों को विशेष रूप से आकर्षित कर रही है। श्रद्धालु इस झांकी के समक्ष श्रद्धाभाव से शीश झुकाकर पुण्य लाभ ले रहे हैं। इस झांकी के माध्यम से पंचकोशी यात्रा के पांचों महादेव मंदिरों, यात्रा मार्ग और उनकी दूरी की जानकारी दी जा रही है। छत्तीसगढ़ में राजिम मेला से एक माह पूर्व पंचकोशी यात्रा निकाली जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु क्षेत्र के प्रमुख शिव मंदिरों की पदयात्रा कर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। यह यात्रा राजिम त्रिवेणी संगम में स्थित कुलेश्वर महादेव मंदिर से आरंभ होती है और वहीं समाप्त होती है।

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श्रद्धालु पाँच प्रमुख शिवलिंगों के दर्शन करते हुए यह यात्रा पूर्ण करते हैं। यात्रा के मुख्य पड़ाव इस प्रकार हैं। पटेश्वर महादेव मंदिर (पटेवा), राजिम से 5 किमी दूर, यहाँ भगवान शिव अन्नब्रह्मा के रूप में पूजे जाते हैं। चंपेश्वर महादेव (चंपारण) मंदिर राजिम से 14 किमी उत्तर स्थित है, जहाँ स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है। ब्रम्हनेश्वर महादेव (बम्हनी, महासमुंद) चंपेश्वर से 9 किमी दूर, यहाँ भगवान शिव का अघोर रूप उकेरा गया है। फणीकेश्वर महादेव (फिंगेश्वर, गरियाबंद) यहाँ शिवलिंग की ईशान रूप में पूजा की जाती है, और माता अंबिका इनकी अर्धांगिनी हैं। कोपेश्वर महादेव (कोपरा, गरियाबंद) यहाँ भगवान शिव वामदेव रूप में पूजे जाते हैं, और माता भवानी आनंद का प्रतीक मानी जाती हैं। यात्रा के समापन पर श्रद्धालु त्रिवेणी संगम स्थित कुलेश्वर महादेव के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।

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श्रद्धालु अपने सिर पर रोजमर्रा के सामान लादकर ’महादेव’ और ’राम सिया राम’ का जाप करते हुए यात्रा करते हैं। यह यात्रा अध्यात्मिक शांति, पुण्य अर्जन और काम, क्रोध, मोह, लोभ और मद जैसे विकारों से मुक्ति दिलाने में सहायक मानी जाती है। हथखोज स्थित शक्ति लहरी माता के दरबार में श्रद्धालु परसा पान, नारियल, अगरबत्ती और धूप समर्पित करते हैं। मकर संक्रांति के दिन श्रद्धालु नदी में सूखा लहर लेते हैं। इससे पहले रेत से शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।

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राजिम कुंभ केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। यहाँ श्रद्धालुओं को पंचकोशी यात्रा का आध्यात्मिक लाभ एक ही स्थान पर मिल रहा है। इस मेले में मनोरंजन, आध्यात्म और श्रद्धा का अद्भुत समन्वय देखने को मिल रहा है।

राजिम कुंभ मेला कब आयोजित होता है?

राजिम कुंभ मेला हर साल फरवरी-मार्च में आयोजित होता है, जिसमें पंचकोशी यात्रा और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

पंचकोशी यात्रा में कौन से प्रमुख मंदिर आते हैं?

पंचकोशी यात्रा में प्रमुख मंदिरों में पटेश्वर महादेव, चंपेश्वर महादेव, ब्रम्हनेश्वर महादेव, फणीकेश्वर महादेव और कोपेश्वर महादेव शामिल हैं।

राजिम कुंभ मेला का धार्मिक महत्व क्या है?

राजिम कुंभ मेला का धार्मिक महत्व मुख्य रूप से पुण्य अर्जन और मानसिक शांति से जुड़ा है, जहाँ श्रद्धालु शिवलिंगों के दर्शन करते हैं और आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं।

राजिम कुंभ मेला में सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ कब होती हैं?

राजिम कुंभ मेला में दिनभर भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ होती हैं, जिन्हें देशभर के प्रसिद्ध कलाकार प्रस्तुत करते हैं।