पत्थलगढ़ी का विरोध करने पर 7 लोगों की हत्या, जानिए क्या है ये और कैसा उभरा आंदोलन

पत्थलगढ़ी का विरोध करने पर 7 लोगों की हत्या, जानिए क्या है ये और कैसा उभरा आंदोलन

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  • Publish Date - January 22, 2020 / 05:19 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:47 PM IST

झारखंड। सिंहभूम जिले के बुरुगुलीकेरा में कथित रूप से पत्थलगढ़ी आंदोलन का विरोध करने पर 7 लोगों की हत्या कर दी गई। पत्थलगड़ी आंदोलन के समर्थकों पर लोगों की हत्या का आरोप है।

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बता दें कि पत्थलगड़ी के तहत सरकारी संस्थानों और सुविधाओं के बहिष्कार करने और स्थानीय शासन की मांग की जाती है। आइए जानते हैं, क्या है पत्थलगड़ी और कैसे झारखंड समेत कई राज्यों के आदिवासी इलाकों में बढ़ता गया इसका असर।

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पत्थलगड़ी के तहत आदिवासी समाज के लोग अपने इलाके में पत्थर गाड़कर सीमा तय करते हैं और उसे स्वायत्त क्षेत्र मानते हैं
2018 में पूर्व लोकसभा स्पीकर कड़िया मुंडा के गांव में भी पत्थलगड़ी के विरोध पर हिंसा हुई थी। पत्थलगड़ी का केंद्र गुजरात के तापी जिला का कटास्वान नामक स्थान है। यह गुजरात और महाराष्ट्र के बॉर्डर का भील आदिवासी बहुत इलाका है

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क्या है पत्थलगड़ी
झारखंड के खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम जिले के कुछ इलाकों में पत्थलगड़ी कर (शिलालेख) इन क्षेत्रों की पारंपरिक ग्राम सभाओं के सर्वशक्तिशाली होने का ऐलान किया गया था। कहा गया कि इन इलाकों में ग्राम सभाओं की इजाजत के बगैर किसी बाहरी शख्स का प्रवेश प्रतिबंधित है। इन इलाकों में खनन और दूसरे निर्माण कार्यों के लिए ग्राम सभाओं की इजाजत जरूरी थी। इसी को लेकर कई गांवों में पत्थलगड़ी महोत्सव आयोजित किए गए। इस कार्यक्रम में हजारों आदिवासी शामिल हुए।

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जून 2018 में पूर्व लोकसभा स्पीकर कड़िया मुंडा के गांव चांडडीह और पड़ोस के घाघरा गांव में आदिवासियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पें हुईं। पुलिस फायरिंग में एक आदिवासी की मौत हो गई। वहीं पुलिस ने कई जवानों के अपहरण का आरोप लगाया। बाद में जवान सुरक्षित लौटे। इस संबंध में कई थानों में देशद्रोह की एफआईआर दर्ज हुई थी। हालांकि हेमंत सोरेन ने सीएम बनते ही पहली कैबिनेट बैठक में 2017-18 के पत्थलगड़ी आंदोलन में शामिल लोगों पर दर्ज मुकदमे वापस ले लिए हैं।

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आदिवासियों के बीच गांव और जमीन के सीमांकन के लिए, मृत व्यक्ति की याद में, किसी की शहादत की याद में, खास घटनाओं को याद रखने के लिए पत्थर गाड़ने का चलन लंबे वक्त से रहा है। आदिवासियों में इसे जमीन की रजिस्ट्री के पेपर से भी ज्यादा अहम मानते हैं।

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