नयी दिल्ली, छह अगस्त (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक किशोरी का यौन उत्पीड़न करने के आरोपी 65 वर्षीय व्यक्ति की जमानत रद्द कर दी और कहा कि ऐसे अपराधियों को राहत देने से समाज पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि आमतौर पर अदालतें जमानत मंजूरी संबंधी आदेशों में दखल नहीं देती हैं लेकिन जब राहत देने के लिए जरूरी मूलभूत जरूरतों को ‘‘अधीनस्थ अदालत पूरी तरह अनदेखी कर दे’’ तब उच्च न्यायालय द्वारा जमानत रद्द किया जाना उपयुक्त होगा।
न्यायूर्ति प्रसाद ने दो अगस्त को जारी किये गये अपने आदेश में कहा, ‘‘इस अदालत का यह मानना है कि ऐसे अपराधियों को जमानत देने का समाज पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा तथा जिस उद्देश्य से पॉक्सो (बच्चों के साथ यौन अपराध) कानून बनाया गया था, यह उसके विपरीत होगा।
न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि यह मानने का प्रथम दृष्टया तार्किक आधार है कि आरोपी ने नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया।
उच्च न्यायालय ने कहा कि वह आरोपी को मिली जमानत रद्द करना चाहता है। उच्च न्यायालय ने उसे अधीनस्थ न्यायालय में नौ अगस्त को आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, अक्टूबर 2019 में एक दिन जब पीड़िता घर लौट रही थी तभी आरोपी उसे एक मकान के स्नानघर में ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। घटना के समय पीड़िता की उम्र 13 साल थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, मेडिकल जांच के दौरान पता चला कि उसके साथ आरोपी ने बार-बार दुष्कर्म किया और आखिरी बार नौ अक्टूबर, 2019 को यह कृत्य किया गया। आरोपी उसका पड़ोसी था।
इन घटनाओं के सिलसिले में यहां कापसहेड़ा थाने में एक मामला दर्ज किया गया था।
अगस्त 2022 में अधीनस्थ अदालत ने यह कहते हुए आरोपी को जमानत दे दी थी कि आरोपी के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप बनता है न कि दुष्कर्म का जिसके लिए कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान है और उसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
पीड़िता के पिता ने अधीनस्थ अदालत के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
भाषा राजकुमार सुभाष
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