एकता नगर (गुजरात), 26 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बी आर गवई ने शनिवार को यहां कहा कि नागरिकों के लिए अपने संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों को जानना जरूरी है क्योंकि जब तक उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक नहीं किया जाएगा, वे उन्हें लागू कराने के लिए आगे नहीं आएंगे।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि अनुच्छेद 39 (ए) के तहत समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) द्वारा ‘‘देश के अंतिम छोर पर मौजूद नागरिकों’’ तक पहुंचने के लिए किये जा रहे प्रयासों से पूरा होगा।
न्यायमूर्ति गवई नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष हैं।
न्यायमूर्ति गवई ने नालसा के तीन दशक पूरे होने के उपलक्ष्य में गुजरात के नर्मदा जिले के एकता नगर में आयोजित समारोह और पश्चिमी क्षेत्रीय सम्मेलन के अवसर पर कहा, ‘‘सिर्फ अधिकार होना ही पर्याप्त नहीं है। यह भी आवश्यक है कि नागरिक अपने संवैधानिक, वैधानिक अधिकारों को जानें। जब तक उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जागरूक नहीं किया जाएगा, वे उन्हें लागू कराने के लिए आगे नहीं आएंगे।’’
उन्होंने कहा कि लगभग साढ़े पांच महीने पहले उनके नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष का पदभार संभालने के बाद से उनकी टीम वह काम करने में सफल रही है जिसके लिए नालसा का गठन किया गया है, अर्थात जमीनी स्तर पर और देश के सुदूर कोनों तक पहुंचना।
उन्होंने कहा, ‘‘डॉ. (भीम राव) आंबेडकर संविधान को रक्तहीन क्रांति का हथियार मानते थे। इसलिए, नालसा एक तरह से जरूरतमंदों को न्याय दिलाने के वादे को हकीकत बनाने की क्रांति है। नालसा की कहानी देश के अंतिम छोर पर मौजूद नागरिकों को कानूनी अधिकार देने की कहानी है।’’
न्यायाधीश ने बताया कि नालसा जेलों में भीड़ कम करने के लिए भी काम कर रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बुजुर्ग और गंभीर रूप से बीमार कैदियों को जमानत पर रिहा किया जा सके।
उन्होंने कहा, ‘‘जब मैंने कार्यभार संभालने के बाद नागपुर केंद्रीय कारागार का दौरा किया तो हमने समस्याओं का पता लगाया और जेलों में भीड़ कम करने के लिए विशेष प्रावधानों के तहत तुरंत नालसा योजना बनाई। हमने बुजुर्ग और लाइलाज बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए जमानत पर रिहा किये जाने की विशेष योजना बनाई।’’
उन्होंने कहा कि नालसा ने उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की है, जिसमें ऐसे विचाराधीन कैदियों को प्राथमिकता के आधार पर रिहा करने का अनुरोध किया गया है, जो वृद्ध और असाध्य रोगों से पीड़ित हैं।
उन्होंने कहा कि कानून के छात्रों को इंटर्नशिप कार्यक्रमों के माध्यम से नालसा के कामकाज में शामिल किया जा रहा है, ताकि नागरिकों को न्याय दिलाने का वादा उनके कॉलेज प्रशिक्षण से ही उनमें समाहित हो जाए।
शीर्ष अदालत के न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि नालसा ने यह धारणा खत्म कर दी है कि न्याय परमार्थ कार्य है और लोगों को यह बताने में सफल रहा है कि न्याय उनका कानूनी अधिकार है।
उन्होंने कहा कि किसी देश में न्याय का सही मापदंड न्यायालय भवनों की भव्यता या वैधानिक कानूनों की संख्या में नहीं, बल्कि सबसे गरीब, हाशिए पर मौजूद और कमजोर लोगों द्वारा महसूस की जाने वाली सुरक्षा और निष्पक्षता की भावना में पाया जाता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘‘मुझे महात्मा गांधी के ये शब्द याद हैं कि ‘किसी भी समाज का सही मापदंड यह है कि वह अपने सबसे कमजोर सदस्यों के साथ कैसा व्यवहार करता है’।’’
भाषा सुभाष पवनेश
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