पंचायत चुनाव…’आरक्षण’ का पेंच ! चुनाव टलेगा या फिर निरस्त होगा ? निर्वाचन आयोग के फैसले पर टिकी निगाहें

पंचायत चुनाव...'आरक्षण' का पेंच ! चुनाव टलेगा या फिर निरस्त होगा ? Panchayat elections... the screw of 'reservation'!

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  • Publish Date - December 28, 2021 / 12:00 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:02 PM IST

भोपालः मध्यप्रदेश मे पंचायत चुनाव होंगे या नहीं इस पर अभी भी पेंच फंसा हुआ है। इसी बीच मामले में अब केंद्र सरकार ने दखल दे दिया है। केंद्र सरकार ने पक्षकार बनाने के लियए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। दूसरी ओर राज्य निर्वाचन आयोग कई बैठकों के बाद कोई नतीजे पर नहीं पहुंची है.. लेकिन सियासत पूरे चरम पर है। सत्ता पक्ष और विपक्ष मौजूदा हालात के लिए एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं।

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मध्यप्रदेश के पंचायत चुनावों में अब भी पेंच फंसा हुआ है। सियासी दांवपेंच.. वार-पलटवार और निर्वाचन आयोग की ताबड़तोड़ बैठकों के बीच ओबीसी आरक्षण के मामले में केंद्र सरकार ने भी दखल दे दिया है। केंद्र ने पक्षकार बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को याचिका दायर कर दी है। इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के ट्वीट ने सियासत गरमा दी है। उमा भारती ने एक के बाद एक 10 ट्वीट करते हुए पंचायत चुनाव में अध्यादेश वापस लेने पर मुख्यमंत्री का अभिनंदन किया है, लेकिन उमा भारती इस पर भी सवाल उठाए कि एक राष्ट्रवादी पार्टी होने भी बीजेपी को पिछड़े और दलित वर्ग के लोगों का वोट कम क्यों मिलता है..

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दरअसल बीजेपी सरकार के पंचायत राज संशोधन अध्यादेश वापस लेने के बाद गेंद राज्य निर्वाचन आयोग के पाले में आ गई है। आयोग ताबड़तोड़ बैठकों के बाद भी फैसला लेने की स्थिती में नजर नहीं आ रहा है। बीजेपी अब भी ये दावा कर रही है कि पिछड़ा वर्गों का असल हमदर्द हमारे अलावा कोई नहीं। इधर, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने संकेत दे दिए हैं कि पंचायत चुनाव टलेंगे।

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पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की रोक को बहाल कराने के लिए शिवराज सरकार हरमुमकिन कोशिश कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जा चुकी है। इस पर तीन जनवरी को सुनवाई भी होनी है लेकिन कोर्ट में सरकार को आरक्षण की तय लिमिट 50% से ज्यादा आरक्षण के लिए आंकड़े देने होंगे। हालांकि इसी सिलसिले में सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग विभाग के जरिए ओबीसी वोटरों की गिनती करने का काम शुरु कर दिया है। फिलहाल मध्यप्रदेश के 70 फीसदी की आबादी की निगाहें राज्य निर्वाचन आयोग के फैसले पर टिकी हुईं हैं।