सनातन धर्म का प्रतीक है शंख, इससे निकली ध्वनि से शुद्ध हो जाता है वातावरण

सनातन धर्म का प्रतीक है शंख, इससे निकली ध्वनि से शुद्ध हो जाता है वातावरण

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  • Publish Date - June 9, 2020 / 10:10 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:52 PM IST

धर्म। शंख प्रतीक है सनातन धर्म का…शंख प्रतीक है निधि का..शंख प्रतीक है मंगल चिन्ह का…शंख अनिष्टों का नाश करता है..शंख सौभाग्य में वृद्धि करता है…। चाहे युद्ध का आरंभ हो…या धार्मिक अनुष्ठान हो…या यज्ञ का समापन हो…शंख के बगैर बात नहीं बनती । आदि हो या अंत…हर वक्त शंखनाद की ज़रूरत पड़ती है। तभी तो हर युग में इसका महत्व रहा है। शंख की ध्वनि जहां श्रद्धा और आस्था का भाव जगाती है तो वही रण भूमि में जोश पैदा करती है। शंख केवल श्रवणीय ही नहीं बल्कि पूजनीय और दर्शनीय भी है।

शंख भारतीय संस्कृति में शंख को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है।

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हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है। शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दू धर्म में शंख का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है। शंख का हमारी पूजा से निकट का सम्बन्ध है। कहा जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर जल गंगाजल के सदृश पवित्र हो जाता है। मन्दिर में शंख में जल भरकर भगवान की आरती की जाती है। आरती के बाद शंख का जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं। जो भगवान कृष्ण को शंख में फूल, जल और अक्षत रखकर उन्हें अर्ध्य देता है, उसको अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। शंख में जल भरकर ऊँ नमोनारायण का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता है। यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है। विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। समुद्री प्राणी का खोल शंख कितना चमत्कारी हो सकता है।

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दुर्लभ शंखों का एक अद्भुत संग्रहालय मौजूद है छतरपुर ज़िले के ईशानगर गांव में। ईशानगर के रहने वाले हरसेवक मिश्रा ने जीवन भर चारों धाम की यात्राओं के दौरान इन शंखों का संग्रह किया है। ईशानगर गांव में स्थित इस निजी संग्रहालय में केदारनाथ, बद्रीनाथ,यमुनोत्री और गंगोत्री से लेकर देश के अधिकतर हिस्सों से लाए गए शंख मौजूद हैं।

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जानकारी के मुताबिक इन शंखों के संग्रहणकर्ता हरसेवक मिश्रा , धार्मिक यात्राओं को यादगार बनाने के लिए वो हर तीर्थ स्थल से शंख खरीदते रहे हैं। सबसे पहला शंख उन्होंने रामेश्वरम से खरीदा था, फिर धीरे-धीरे इनके घर में शंखों का संसार बस गया । आज उनके संग्रहालय में 40 हज़ार से भी ज्यादा शंख मौजूद हैं। हर सेवक मिश्रा ने अपने पूरे जीवन में 60 तीर्थों की यात्राएं की हैं, जिसमें केदारनाथ,बद्रीनाथ,यमुनोत्री और गंगोत्री से लेकर हिमालय यात्रा तक शामिल हैं।