Halshashthi Vrat 2025 Muhurt: आज हलषष्ठी का पर्व.. संतानों की लम्बी उम्र के लिए माताएं रखेंगी उपवास, जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त..

रेवती नक्षत्र प्रातः 09 बजकर 06 मिनट तक उपरांत अश्विनी नक्षत्र का आरंभ। शूल योग अपराह्न 01 बजकर 12 मिनट तक उपरांत गण्ड योग का आरंभ। गर करण अपराह्न 03 बजकर 16 मिनट तक उपरांत विष्टि करण का आरंभ। चन्द्रमा प्रातः 09 बजकर 06 मिनट तक मीन उपरांत मेष राशि पर संचार करेगा।

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  • Publish Date - August 14, 2025 / 08:05 AM IST,
    Updated On - August 14, 2025 / 08:19 AM IST

Halshashthi Vrat 2025 Muhurt || Image- IBC24 News File

HIGHLIGHTS
  • माताएं करती हैं संतान की दीर्घायु हेतु व्रत-पूजन।
  • पसहर चावल, छः भाजी और सुहाग सामग्री से पूजा।
  • 14 अगस्त को हलषष्ठी, बलराम जन्म से जुड़ा पर्व।

Halshashthi Vrat 2025 Muhurt: रायपुर: आज हलषष्ठी का पर्व है। यह व्रत माताओं का संतान के लिए किया जाने वाला पर्व है। छत्तीसगढ़ राज्य की अनूठी संस्कृति का एक ऐसा पर्व है जिसे हर वर्ग हर जाति मे बहूत ही सद्भाव से मनाया जाताहै। हलषष्ठी को हलछठ, कमरछठ या खमरछठ भी कहा जाता है । यह पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। संतान प्राप्ति व उनके दीर्घायू सुखमय जीवन की कामना रखकर माताएँ इस व्रत को रखती है।

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इस दिन माताएँ सूबह से ही महुआ पेड़ की डाली का दातून कर, स्नान कर व्रत धारण करती है। भैस के दुध की चाय पीती है। तथा दोपहर के बाद घर के आँगन मे, मंदिर-देवालयया गाँव के चौपाल आदि मे बनावटी तालाब (सगरी) बनाकर , उसमें जल भरते है।सगरी का जल, जीवन का प्रतीक है। तालाब के पार मे बेर, पलाश,गूलर आदि पेड़ों की टहनियो तथा काशी के फूल को लगाकर सजाते है।सामने एक चौकी या पाटे पर गौरी-गणेश, कलश रखकर हलषष्ठी देवी की मुर्ती(भैस के घी मे सिन्दुर से मुर्ती बनाकर) उनकी पूजा करते है। साड़ी आदि सुहाग की सामग्री भी चढ़ाते है। तथा हलषष्ठी माता के छः कहानी को कथा के रूप मे श्रवण करते है।इस पूजन की सामग्री मे पसहर चावल (बिना हल जुते हुए जमीन से उगा हुआ धान का चावल), महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैस के दुध – दही व घी आदि रखते है।बच्चों के खिलौनों जैसे-भौरा, बाटी आदि भी रखा जाता है । बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों मे गेडी(हरियाली त्योहार के दिन बच्चों के चढ़ने के लिए बनाया जाता है) को भी सगरी मे रखकर पूजा करते है क्योंकि गेडी का स्वरूप पूर्णतः हलसे मिलता जुलता है तथा बच्चों के ही उपयोग का है।

Halshashthi Vrat पर पसहर चावल का सेवन

Halshashthi Vrat 2025 Muhurt: हलषष्ठी का पर्व भगवान कृष्ण व भैया बलराम से संबंधित है। हल से कृषि कार्य किया जाता है।तथा बलराम जी का प्रमुख हथियार भी है।बलदाऊ भैया कृषि कर्म को महत्व देते थे, वहीं भगवान कृष्ण गौ पालन को । इसलिए अन्य प्रदेशों में हलषष्ठी पर्व को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ के जन्मोत्सव के रूप में मनाने की परंपरा है। इस व्रत मे हल से जुते हुए जगहों का कोई भी अन्न आदि व गौ माता के दुध दही घी आदि का उपयोग वर्जित है। तथा हलषष्ठी व जन्माष्टमी एक दिन के अंतराल मे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

इस दिन उपवास रखने वाली माताएँ हल चले वाले जगहों पर भी नही जाती है। इस व्रत मे पूजन के बाद माताएँ अपने संतान के पीठ वालेभाग मे कमर के पास पोता (नये कपड़ों का टुकड़ा – जिसे हल्दी पानी से भिगाया जात) मारकर अपने आँचल से पोछती है जो कि माता के द्वारा दिया गया रक्षा कवच का प्रतीक है।

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पूजन के बाद व्रत करने वाली माताएँ जब प्रसाद-भोजन के लिए बैठती है। तो उनके भोज्य पदार्थ मे पसहर चावल का भात, छः प्रकार के भाजी की सब्जी (मुनगा, कद्दु ,सेमी, तोरई, करेला,मिर्च) भैस के दुध, दही व घी , सेन्धा नमक, महुआ पेड़ के पत्ते का दोना – पत्तल व लकड़ी को चम्मच के रूप मे उपयोग किया जाता है। बच्चों को प्रसाद के रूप मे धान की लाई, भुना हुआ महुआ तथा चना, गेहूँ, अरहर आदि छः प्रकार के अन्नो को मिलाकर बाँटा जाता है।इस व्रत-पूजन मे छः की संख्या का अधिक महत्व है। जैसे- भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष का छठवाँ दिन,छः प्रकार का भाजी ,छः प्रकार के खिलौना,छः प्रकार के अन्न वाला प्रसाद तथा छः कहानी की कथा । यह त्यौहार इस वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र एवं सुख-समृद्धि के लिए हलषष्ठी माता की पूजा-अर्चना करेंगी।

कमरछठ पूजा में पसहर चावल का भोग लगाने की मान्यता के चलते चावल शनिवार को महंगे दामों में बिका। अलग-अलग जगहों पर महिलाओं को 100 से 120 रुपये किलो में चावल खरीदा। मालवीय रोड, शास्त्री बाजार, पुरानी बस्ती शीतला मंदिर, आमापारा इलाके में सड़क किनारे की दुकानों पर आम दिनों की अपेक्षा चावल दोगुनी-तिगुनी कीमत में बेचा गया।

पसहर चावल को खेतों में उगाया नहीं जाता। यह चावल बिना हल जोते अपने आप खेतों की मेड़, तालाब, पोखर या अन्य जगहों पर उगता है। भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ के जन्मोत्सव वाले दिन हलषष्ठी मनाए जाने के कारण बलदाऊ के शस्त्र हल को महत्व देने के लिए बिना हल चलाए उगने वाले पसहर चावल का पूजा में इस्तेमाल किया जाता है। पूजा के दौरान महिलाएं पसहर चावल को पकाकर भोग लगाती हैं, साथ ही इसी चावल का सेवन कर व्रत तोड़ती हैं।

Halshashthi Vrat का मुहूर्त

Halshashthi Vrat 2025 Muhurt: राष्ट्रीय मिति श्रावण 23, शक सम्वत् 1947, भाद्रपद, कृष्णा, षष्ठी, बृहस्पतिवार, विक्रम संवत् 2082। सौर श्रावण मास प्रविष्टे 30, सफ़र 19, हिजरी 1447 (मुस्लिम) तदनुसार अंगे्रजी तारीख 14 अगस्त सन् 2025 ई॰। सूर्य दक्षिणायन, उत्तर गोल, वर्षा ऋतुः। राहुकाल अपराह्न 01 बजकर 30 मिनट से 03 बजे तक। षष्ठी तिथि अर्धरात्रोत्तर 02 बजकर 08 मिनट तक उपरांत सप्तमी तिथि का आरंभ।

रेवती नक्षत्र प्रातः 09 बजकर 06 मिनट तक उपरांत अश्विनी नक्षत्र का आरंभ। शूल योग अपराह्न 01 बजकर 12 मिनट तक उपरांत गण्ड योग का आरंभ। गर करण अपराह्न 03 बजकर 16 मिनट तक उपरांत विष्टि करण का आरंभ। चन्द्रमा प्रातः 09 बजकर 06 मिनट तक मीन उपरांत मेष राशि पर संचार करेगा।

1. हलषष्ठी व्रत 2025 में कब मनाया जाएगा?

हलषष्ठी व्रत इस वर्ष 14 अगस्त 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा। यह व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है।

2. हलषष्ठी व्रत में पसहर चावल का क्या महत्व है?

पसहर चावल हल न चलाए खेतों की मेड़ या तालाब किनारे अपने आप उगता है। बलराम जी के शस्त्र हल का प्रतीक मानकर इस व्रत में हल से जुते खेत का अन्न नहीं खाया जाता। इसलिए पसहर चावल का उपयोग होता है।

3. हलषष्ठी व्रत कौन रखता है और क्यों?

यह व्रत विशेष रूप से माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए रखती हैं। इस दिन विशेष पूजा, कथा और व्रत के नियमों का पालन किया जाता है।