jagannath mandir ke rahasya..
Jagannath mandir ka Rahasya : जगन्नाथ मंदिर, जिसे श्री जगन्नाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। यह भगवान जगन्नाथ (जो भगवान विष्णु का एक रूप हैं) को समर्पित है और इसे चार धामों में से एक माना जाता है। मंदिर अपनी वार्षिक रथ यात्रा उत्सव के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को रथों में बैठाकर नगर में घुमाया जाता है। इस साल जगन्नाथ यात्रा 27 जून से शुरू हो रही है।
जगन्नाथ जी की मूर्ति की स्थापना के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसके अनुसार राजा इंद्रद्युम्न को भगवान कृष्ण ने स्वप्न में दर्शन दिए थे और उन्हें लकड़ी की मूर्ति बनाने का आदेश दिया था। जगन्नाथ जी की प्रतिमा, जो कि लकड़ी की बनी होती है, हर 12 साल में बदल दी जाती है। इसे ‘नवकलेवर’ कहा जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि लकड़ी की मूर्तियाँ समय के साथ खराब हो सकती हैं और खंडित हो सकती हैं, इसलिए उनकी दिव्यता और अखंडता को बनाए रखने के लिए उन्हें बदल दिया जाता है।
Jagannath mandir ka Rahasya
‘नवकलेवर’ की गुप्त परंपरा
जगन्नाथ जी की प्रतिमा हर 12 साल में “नवकलेवर” नामक एक विशेष अनुष्ठान के दौरान बदल दी जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि जगन्नाथ जी की मूर्तियां लकड़ी की बनी होती हैं और समय के साथ क्षय होने का डर रहता है। इसलिए, उनकी दिव्यता और अखंडता को बनाए रखने के लिए, उन्हें हर 12 साल में बदला जाता है। यह प्रक्रिया बहुत गुप्त रखी जाती है और इसे “नवकलेवर” कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ के हृदय का एक विशेष हिस्सा, जिसे “ब्रह्म पदार्थ” कहा जाता है, पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में स्थापित किया जाता है इस प्रक्रिया को करते समय, बहुत सावधानी बरती जाती है और पंडित की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। आईये विस्तार से जानते हैं कि किस लकड़ी की बनी होती हैं भगवान जगन्नाथ जी की प्रतिमाएं..?
Jagannath mandir ka Rahasya
भगवान् की मूर्तियां बनाने में होता है नीम की लकड़ी का उपयोग
ये मूर्तियां विशेष रूप से नीम की लकड़ी से बनाई जाती हैं। नई मूर्तियों के निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली लकड़ियों का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होता है। जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी और विद्वान ब्राह्मण सबसे पहले नई मूर्तियों के लिए सही पेड़ों का चुनाव करते हैं। इस चुनाव में कई नियमों का पालन किया जाता है:
– पेड़ नीम के ही होने चाहिए।
– वे कम से कम 100 साल पुराने हों।
– सबसे महत्वपूर्ण, उनमें किसी प्रकार का दोष न हो। पेड़ स्वस्थ और पवित्र माना जाना चाहिए।
Jagannath mandir ka Rahasya
इन चुने हुए पेड़ों को विशेष अनुष्ठानों के बाद काटा जाता है और मंदिर में लाया जाता है। फिर पुजारी और कुशल शिल्पकार मिलकर इन पवित्र लकड़ियों को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन के दिव्य आकार में गढ़ते हैं। यह सिर्फ मूर्ति निर्माण नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जहां देवत्व को लकड़ी के माध्यम से नया रूप दिया जाता है। जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन की नई लकड़ी की मूर्तियों का मंदिर में स्वागत किया जाता है। पुरानी मूर्तियों को सदियों पुराने ओडिया शास्त्रों के अनुसार कोइली बैकुंठ में समाधि दी जाती है।
Jagannath mandir ka Rahasya
यह परंपरा न केवल भगवान की मूर्तियों के संरक्षण का माध्यम है, बल्कि यह जीवन के चक्र, परिवर्तन और नवीनीकरण के सनातन सत्य का भी प्रतीक है। हर 12 साल में एक नया शरीर धारण करने वाले भगवान जगन्नाथ, हमें सिखाते हैं कि जीवन में परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर है।
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