IBC Open Window: How to define provocative speech in social media?

IBC Open Window: सोशल मीडिया पर काबू कर पाना टेढ़ी खीर, आखिर कैसे तय होगी भड़काऊ सामग्री, क्या सच में संभव है इस खुली दुनिया की परिभाषा तय करना

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 11:43 AM IST, Published Date : July 4, 2022/5:38 pm IST

बरुण सखाजी, सह-कार्यकारी संपादक, आईबीसी-24

सोशल मीडिया भस्मासुर की तरह कई सारी उल्टी-पुल्टी जानकारियों और भ्रम के लिए कुख्यात होता जा रहा है। इसे लेकर अरसे से बातें होती रही हैं, लेकिन मुकम्मल तौर पर इसके नियंत्रण पर कोई बात नहीं हो पा रही। हाल ही में केंद्र सरकार इस पर कानूनों का शिकंजा कसने जा रही है। इसमें भड़काऊ पोस्ट की परिभाषा के साथ दंड का प्रावधान रहेगा।>>*IBC24 News Channel के WhatsApp  ग्रुप से जुड़ने के लिए  यहां Click करें*<<

किन्हें मानें भड़काऊ

फिलहाल में इन पोस्टों को मॉडरेट करने के लिए 7 कानून हैं, लेकिन यह या तो यूजर के स्तर पर कोर्ट में नहीं टिक पाते या फिर सरकारें इनके दुरुपयोग में संलिप्त रहती हैं। इन कानूनों में यह बात साफ नहीं है कि किन्हें भड़काऊ माना जाए और किन्हें नहीं। इसकी आड़ में कई बार आरोपी बच निकलते हैं तो कई बार सरकारें और पुलिस जैसी एजेंसियां इनका दुरुपयोग करती हैं। नतीजा यह निकलता है कि इन पोस्ट पर लगाम लग ही नहीं पाती।

होने को तो ये 7 कानून हैं

मौजूदा कानून हैं तो मगर काम के नहीं। धारा-153-ए है, जिसमें धार्मिक, नस्लीय आधार पर वैमनस्य फैलाने के आरोपियों पर कार्रवाई की जा सकती है। लेकिन इसमें धार्मिक, नस्लीय टिप्पणियां क्या मानी जाएं यह पुलिस एजेंसी ही तय करती है। 295-ए  और 298 भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली हैं। लेकिन इसमें भी दिक्कत ये है कि धार्मिक भावनाएं क्या? क्या सती प्रथा का विरोध धार्मिक भावना है या ट्रिपल तलाक का विरोध इसके दायरे में आता है। धर्मग्रंथों में मान्य ग्रंथ और उनमें वर्णित बातें प्रमाणिक करने वाले इनके जानकार हैं, ऐसे में वे जिसे सिद्ध करें वही होता है। एक धारा 505 (1) और (2) भी है। इसमें अफवाह फैलाना और नफरत फैलाना शामिल है। लेकिन अफवाह क्या है, यह ज्यादातर मामलों में सिद्ध ही नहीं हो पाता। अन्य कानून जन प्रतिनिध कानून, नागरिक अधिकार अधिनियम-1955, धार्मिक संस्था कानून, केबल टेलीविजन नेटवर्क नियमन कानून, सिनेमैटेग्राफ कानून, आपराधिक प्रक्रिया संहिता-1973 जैसे कानून भी हैं, लेकिन इनमें ठीक तरह से ग्रिपिंग नहीं बन पाती।

ड्रॉफ्ट का इंतजार

अब सवाल ये है कि आखिर ने आईटी एक्ट में कैसे बदजुबानियों पर लगाम लग सकेगी। यह बड़ा सवाल है। हालांकि अभी इसकी ड्रॉफ्टिंग जारी है। आने वाले दिनों में साफ होकर आएगा तो और समझा जा सकेगा।

परिभाषा सर्वाधिक कठिन

सबसे बड़ा समस्या यही है कि भड़काऊ क्या? भड़काऊ पर कानून लगाम के अधिकार हर पोस्ट पर लगाम लग सकते हैं। क्योंकि हर राजनीतिक चीज भड़काऊ हो सकती है। जैसे कि कोई नेता स्पीच देता है और बोलता है मेरी संसदीय सीट की ओर किसी ने आंखे उठाकर देखी तो खैर नहीं…। यह सहज भाषण है, लेकिन खैर नहीं शब्द भड़काने को दर्शा रहा है। तब क्या इन पर भी कार्रवाई होगी।

इन्हें क्या मानेंगे

ऐसे ही अगर किसी पोस्ट में कोई लिखता है, सरकार ने अगर हालात नहीं सुधारे तो लोगों की नाराजगी बढ़ेगी और लोग सड़क पर उतरेंगे। तब क्या वह लोगों को भड़का रहा है। ऐसे ही अगर कोई पोस्ट करता है, आओ हम सब मिलकर देश बनाएं और जो इसे गंदा कर रहे हैं उन्हें सबक सिखाएं। तो क्या यह भड़काना हुआ। बहरहाल, आप बताइए भड़काने की परिभाषा क्या हो सकती है।

 
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