कोच्चि, 13 जून (भाषा) केरल उच्च न्यायालय ने एक याचिकाकर्ता के सुनवाई के दौरान पेश नहीं होने और अपनी अपील पर पुन: विचार करने का अनुरोध करने के लिए असामान्य दंड लगाते हुए कहा कि यदि वह (याचिकाकर्ता) जुर्माने के बदले 10 पेड़ लगाती है तो उसकी याचिका बहाल कर दी जाएगी।
‘‘ईपीएफओ’’ के एक आदेश के खिलाफ एक निजी अस्पताल के मालिक की अपील को ईपीएफ अपीलीय न्यायाधिकरण ने पेश नहीं होने को लेकर खारिज कर दिया था। उसके 13 साल बाद, केरल उच्च न्यायालय ने इस शर्त पर याचिका बहाल की कि चिकित्सकीय केंद्र की वर्तमान मालकिन जुर्माने के बदले 10 पेड़ लगाएगी।
उच्च न्यायालय ने कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) अपीलीय न्यायाधिकरण के 2010 के फैसले को खारिज कर दिया, जब अस्पताल की वर्तमान मालकिन ने दावा किया कि उन्हें पूर्व में उसके सामने पेश होने का मौका नहीं मिला।
न्यायाधिकरण ने अपने आदेश में कहा था, ‘‘अपील स्वीकार करने के बाद सुनवाई की तारीख पक्षकारों को अधिसूचित की गई थी। हालांकि, अपीलकर्ता की ओर से कोई पेश नहीं हुआ।’’
उसने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलकर्ता की अपील को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए अपील ‘डिफ़ॉल्ट’ के तौर पर खारिज की जाती है।’’
अस्पताल के मालिक ने न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ 2011 में उच्च न्यायालय का रुख किया था। जब मामला उच्च न्यायालय में लंबित था, तब अस्पताल के मालिक की मृत्यु हो गई और उसकी जगह उसकी पत्नी को याचिकाकर्ता के रूप में शामिल किया गया था।
दस तारीखों पर सूचीबद्ध होने के बाद उच्च न्यायालय ने 2 जून को न्यायाधिकरण के फैसले को रद्द कर दिया और अस्पताल मालिक की अपील को बहाल कर दिया।
अदालत ने कहा, ‘‘… उपरोक्त दिनांक 7 अप्रैल, 2010 के आदेश को इस शर्त के अधीन खारिज किया जाता है कि याचिकाकर्ता जुर्माने के रूप में आगामी मानसून में 10 पेड़ लगाएगी।’’
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अपीलीय न्यायाधिकरण, एर्णाकुलम खंडपीठ को इस फैसले की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार महीने की अवधि के भीतर अपील पर कानून के अनुसार जल्द से जल्द फैसला करने का निर्देश दिया जाता है।’’
न्यायाधिकरण का 2010 का फैसला अस्पताल के मालिक द्वारा 2007 में दायर अपील में आया था जो उसने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के सहायक भविष्य निधि आयुक्त के एक आदेश के खिलाफ दायर किया था।
भाषा अमित अविनाश
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