सख्ती से निपटेंगे: ‘डिजिटल अरेस्ट’ मामलों में 3000 करोड़ रुपये से अधिक उगाही पर न्यायालय

सख्ती से निपटेंगे: ‘डिजिटल अरेस्ट’ मामलों में 3000 करोड़ रुपये से अधिक उगाही पर न्यायालय

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  • Publish Date - November 3, 2025 / 05:30 PM IST,
    Updated On - November 3, 2025 / 05:30 PM IST

नयी दिल्ली, तीन नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने देश में ‘डिजिटल अरेस्ट’ से जुड़े मामलों में भारी वृद्धि पर सोमवार को आश्चर्य जताया और कहा कि इनसे सख्ती से निपटे जाने की जरूरत है।

‘डिजिटल अरेस्ट’ तेजी से बढ़ता साइबर अपराध है, जिसमें जालसाज ऑडियो या वीडियो कॉल पर खुद को कानून प्रवर्तन एजेंसियों, अदालत या सरकारी विभागों के कर्मचारी के रूप में पेश करके पीड़ितों को डराते-धमकाते हैं और उन पर रुपये देने का दबाव बनाते हैं। देश में ‘डिजिटल अरेस्ट’ से जुड़े मामलों में वरिष्ठ नागरिकों सहित पीड़ितों से अब तक 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की उगाही किए जाने का अनुमान है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मामले में न्यायालय की मदद के लिए एक न्यायमित्र नियुक्त किया तथा गृह मंत्रालय और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से सीलबंद लिफाफों में पेश दो रिपोर्ट का अवलोकन किया।

पीठ ने कहा, “यह चौंकाने वाली बात है कि देशभर में वरिष्ठ नागरिकों सहित पीड़ितों से 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की उगाही की जा चुकी है। अगर हम कड़े और कठोर आदेश पारित नहीं करते हैं, तो यह समस्या और बढ़ जाएगी।”

उसने कहा, “हमें न्यायिक आदेशों के जरिये अपनी एजेंसियों के हाथ मजबूत करने होंगे। हम इन अपराधों से सख्ती से निपटने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 नवंबर की तारीख तय की। उसने कहा कि अगली सुवनाई पर वह न्यायमित्र के सुझावों के आधार पर कुछ निर्देश पारित करेगी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि सीबीआई ने बताया है कि अपराध सिंडिकेट का संचालन विदेश से किया जा रहा है, जहां उनके वित्तीय, तकनीकी और मानव श्रम आधार वाले “व्यापक घोटाला नेटवर्क” हैं।

केंद्र और सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि गृह मंत्रालय का साइबर अपराध प्रभाग इन मुद्दों से निपट रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा के अंबाला में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला की ओर से प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई को लिखे पत्र का संज्ञान लिया है, जिसमें महिला ने शिकायत की है कि जालसाजों ने अदालत और जांच एजेंसियों के जाली आदेशों के आधार पर उसे और उसके पति को ‘डिजिटल अरेस्ट’ किया तथा सितंबर में उनसे 1.05 करोड़ रुपये की उगाही की।

महिला ने पत्र में लिखा है कि ‘डिजिटल अरेस्ट’ के दौरान जालसाजों ने सीबीआई, ईडी और न्यायिक अधिकारी बनकर कई ऑडियो, वीडियो कॉल किए तथा उसकी और उसके पति की गिरफ्तारी के आदेश संबंधी कथित अदालती फैसले दिखाए।

शीर्ष अदालत को बताया गया कि वारदात के सिलसिले में अंबाला स्थित साइबर अपराध विभाग में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दो प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।

न्यायालय ने 27 अक्टूबर को कहा था कि वह ‘डिजिटल अरेस्ट’ से जुड़े मामलों की व्यापकता और देश भर में इनकी बढ़ती संख्या को देखते हुए इनकी जांच सीबीआई को सौंपने का इच्छुक है।

उसने विभिन्न राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में ‘डिजिटल अरेस्ट’ से जुड़ी वारदातों के सिलसिले में दर्ज प्राथमिकी का विवरण मांगा था।

शीर्ष अदालत ने कहा है कि वह सीबीआई जांच की प्रगति की निगरानी करेगी और इन अपराधों से निपटने के लिए जो भी आवश्यक होगा, निर्देश जारी करेगी।

उसने सीबीआई से पूछा था कि क्या उसे ‘डिजिटल अरेस्ट’ से जुड़े मामलों की जांच के लिए पुलिस बल से बाहर के साइबर विशेषज्ञों सहित अधिक संसाधनों की जरूरत है।

भाषा पारुल नरेश

नरेश