Rajasthan News/Image Source: IBC24
जैसलमेर: Jaisalmer News: जैसलमेर के मेघा गांव में मिला जीवाश्म जिसे पहले डायनासोर का माना जा रहा था वह दरअसल डायनासोर का नहीं बल्कि फाइटोसॉरस का है। यह भारत के लिए एक बेहद रोमांचक खोज है क्योंकि देश में पहली बार किसी फाइटोसॉरस का संरक्षित जीवाश्म मिला है। मेघा में मिले वर्टिब्रेट स्केलेटन की जांच रविवार को जय नारायण विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष व जीवाश्म वैज्ञानिक प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह परिहार द्वारा की गई। Rajasthan News
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Rajasthan News: जीवाश्म वैज्ञानिक प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह परिहार ने विस्तृत जांच के बाद बताया कि यह एक सरिसृप का जीवाश्म है। यह जीव मूल रूप से मगरमच्छ के आकार का था जिसकी लंबाई लगभग तीन मीटर थी। ये जीव घने जंगलों में रहते थे तथा मीठे जल स्रोतों के आस-पास विचरण करते थे। इस जीवाश्म की संभावित आयु लगभग 20.12 करोड़ वर्ष मानी जा रही है। भू-विज्ञानी डॉ. नारायण दास इनखिया ने बताया कि यह खोज न केवल जैसलमेर, बल्कि पूरे देश के लिए विशेष महत्व की है। मेघा गांव में मिला यह जीवाश्म लगभग दो मीटर लंबा है तथा इसका सिर, रीढ़ की हड्डी और पांव अब भी जीवाश्म रूप में सुरक्षित हैं।
Rajasthan News: जैसलमेर में पाया गया यह जीवाश्म अपने आप में दुर्लभ है, और भारत में गोंडवाना क्षेत्र के बाद केवल यहीं से ऐसा जीवाश्म रिपोर्ट हुआ है। जैसलमेर का पश्चिमी इलाका, जिसे ‘लाठी फॉर्मेशन’ कहा जाता है, लगभग 100 किलोमीटर लंबा और 40 किलोमीटर चौड़ा है। यहां की चट्टानें मीठे पानी, समुद्री जीवन और जलीय वातावरण का प्रमाण देती हैं। यही कारण है कि यहां फाइटोसॉर मिला है, क्योंकि उस समय यहां एक तरफ नदी और दूसरी ओर समुद्र रहा होगा। जैसलमेर में इससे पहले भी कई महत्वपूर्ण खोजें हो चुकी हैं।