Kailash kher Concert: संगीत के सम्राट की धरती पर गूँजा कैलाश खेर का सूफी कलाम , सैयां’ की पहली तान छिड़ते ही सुध-बुध खो बैठी भीड़

ग्वालियर में 25 दिसंबर को कैलाश खेर ने तबला दिवस और ग्वालियर गौरव दिवस के अवसर पर मेला मैदान में आयोजित कार्यक्रम में सूफी और शास्त्रीय संगीत से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अपनी टीम के साथ ढाई घंटे तक मंच पर रहने वाले कैलाश ने “सैयां”, “तेरी दीवानी” और “बम लहरी” जैसे गीत प्रस्तुत किए।

Kailash kher Concert/ Image Source : IBC24

HIGHLIGHTS
  • 25 दिसंबर को ग्वालियर मेला मैदान में कैलाश खेर का लाइव कॉन्सर्ट आयोजित।
  • न्होंने सूफी, शास्त्रीय और कव्वाली संगीत का मिश्रण पेश किया।
  • बैरिकेडिंग कम कर ऑडियंस के करीब गए और ढाई घंटे तक मंच पर रहे।

Kailash kher Concert ग्वालियर:कैलाश खेर 25 दिसंबर को तबला दिवस और ग्वालियर गौरव दिवस के अवसर पर मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के मेला मैदान में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए। ठंड से कांपती रात में बॉलीवुड सिंगर कैलाश खेर ने अपने गीतों और सूफी अंदाज से ऑडियंस को आध्यात्म की गहराई में ले जाकर मंत्रमुग्ध कर दिया।

ग्वालियर की धरती को किया नमन

Kailash kher Concert कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने कच्ची, भावपूर्ण और ऊंची आवाज़ में सूफी कलाम “सैयां” से की। इसके बाद सिंगर ने ग्वालियर की धरती को नमन किया और कहा, “आज का दिन हम सभी के लिए विशेष है। तानसेन की धरती पर हम तबला दिवस मना रहे हैं। व्यापार मेले के शुभारंभ का भी मौका है।”कैलाश खेर ने अपने अंदाज में “तेरी दीवानी” और “कैसे बताएं क्यों तुझको चाहें” गीत प्रस्तुत किए। उनका गाया “बम लहरी” गीत सूफी अंदाज में था और इसमें शिव भक्ति की झलक भी देखने को मिली। इसके अलावा उन्होंने “तौबा तौबा अल्लाह के बंदे” और “इश्क़ अनोखा” जैसे सूफी गीत भी प्रस्तुत किए।

Kailash kher Concert कैलाश खेर अपनी 13 सदस्यीय टीम के साथ लगभग ढाई घंटे तक स्टेज पर रहे। उनकी परफॉर्मेंस में भारतीय शास्त्रीय संगीत, कव्वाली और सूफी रहस्यवाद का सुंदर मिश्रण देखने को मिला। इस मिश्रण ने कुछ ऑडियंस को अंत तक बांधे रखा, जबकि कुछ लोग सूफी संगीत की गहराई न समझ पाने की वजह से पंडाल से बाहर चले गए।कैलाश खेर को निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार शाम 7 बजे स्टेज पर आना था, लेकिन उन्होंने 8:30 से 9 बजे के बीच “सैयां” गीत गाते हुए मंच पर एंट्री ली। ऑडियंस की संख्या सीमित होने और साउंड के ईको होने की वजह से उनके गीतों के बोल पूरे पंडाल में गूंज रहे थे।

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