Will Chhattisgarhism be stamped out?

क्या छत्तीसगढ़ियावाद पर लगेगी मुहर?

Chhattisgarhism : क्या मोदी-शाह की जोड़ी छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की आभा मंडल को तोड़ पाएंगे? क्या मोदी शाह की जोड़ी छत्तीसगढ़ में

Edited By :   Modified Date:  October 1, 2023 / 04:48 PM IST, Published Date : October 1, 2023/4:48 pm IST

छत्तीसगढ़ समेत 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कभी भी चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है। इससे पहले राजनीतिक दल दमखम के साथ मैदान में डटे हुए हैं। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के दौरे हो रहे हैं। वहीं, बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ कई केंद्रीय मंत्री लगातार छत्तीसगढ़ का दौरा कर रहे हैं। इन दौरे से क्या कुछ हासिल होता है ये तो वक्त ही बताएगा।

सत्ता का सवाल-

बड़ा सवाल क्या मोदी-शाह की जोड़ी छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की आभा मंडल को तोड़ पाएंगे? क्या मोदी शाह की जोड़ी छत्तीसगढ़ में फिर से बीजेपी की सरकार बनाने में सफल होगी? क्या 5 साल का सूखा खत्म होगा? 90 विधानसभा सीट वाली राज्य में 71 विधायकों के साथ शासन कर रही कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी? ये वो सवाल है, जिसका जवाब पाने छत्तीसगढ़ की जनता बेताब है। चलिए सिलसिलेवार तरीके से इन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।

2000 में मध्यप्रदेश से अलग होकर बने छत्तीसगढ़ में विधायकों की संख्या के आधार पर कांग्रेस की सरकार बनी। जिस सरकार का नेतृत्व अजीत प्रमोद जोगी ने किया। राज्य बनने के बाद 2003 में पहली बार विधानसभा चुनाए हुए। अप्रत्याशित रूप से छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बनी। बीजेपी ने 50 सीटों पर जीत हासिल कर सत्ता में काबिज हुई। जबकि सत्ताधारी कांग्रेस महज 37 सीटों पर सिमट गई। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में प्रदेश ने दिग्गजों के बीच से डॉ रमन सिंह को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी।

चाउर वाले बाबा ने किया कमाल

अपने पहले कार्यकाल के दौरान रमन सिंह चाउर वाले बाबा के रुप में प्रसिद्ध हुए। 1 और 2 रुपए किलो में चावल देने की उनकी स्कीम पर जनता ने मुहर लगाई और 2008 में फिर से रमन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी। इस बार भी बीजेपी को 50 सीटों पर जीत हासिल हुई। वहीं, कांग्रेस विधायकों की संख्या में सिर्फ एक का इजाफा हुआ और कांग्रेस को 38 सीटों पर ही संतुष्ट होना पड़ा। बात 2013 की विधानसभा चुनाव की करें तो नतीजों में दोपहर तक कांग्रेस की सरकार बनती दिख रही थी। कांग्रेस दफ्तर में तो जश्न भी शुरु हो गया। लेकिन दोपहर बाद बीजेपी ने कमबैक किया और 49 विधायकों के साथ सरकार बनाने में फिर से सफल हो गई।

क्या फिर चलेगा भूपेश बघेल का जादू ?

2018 में मुख्यमंत्री रमन सिंह का 15 सालों से चला आ रहा करिश्मा खत्म हुआ और कांग्रेस 68 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस की सरकार में वापसी हुई। कई दिनों तक चले भारी उठापटक के बाद भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री पद की कामन सौंपी गई। सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़िया वाद की ऐसी चाल चली की जनता भूपेश बघेल की मुरीद हो गई। लोगों को लगने लगा कि उन्हें अपना मुख्यमंत्री मिल गया। छत्तीसगढ़ी में संवाद, भाषण, छत्तीसगढ़ी तीज, त्योहारों को बड़े ही उत्साह से मनाया जाने जाने लगा। भूपेश बघेल में छत्तीसगढ़िया वाद की झलक दिखाई देती है। भूपेश बघेल यानी छत्तीसगढ़िया वाद के पर्याय बन गए। जिसे तोड़ना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा।

छत्तीसगढ़ियावाद से कैसे निपटेगी बीजेपी ?

ठेठ छत्तीसगढ़ की छवि से लबरेज होने के लिए ही बीजेपी ने विष्णु देव साय को हटाकर बिलासपुर सांसद अरुण साव को प्रदेशाध्यक्ष की कमना सौंपी। बीजेपी की कमान संभालने के बाद अरुण साव आक्रामक रूप से छत्तीसगढ़िया अंदाज में कांग्रेस पर वार करते देखे जा सकते हैं। नारायण चंदेल, अजय चंद्राकर, विजय बघेल, संतोष पांडेय, ओपी चौधरी ये वो चेहरे हैं। जिस पर बीजेपी आगे दांव लगा सकती है। गुटबाजी से उबरने के लिए मोदी के चेहरे पर ही बीजेपी ने चुनाव लड़ने का फैसला किया है। हालांकि बीजेपी शराबबंदी, पीएससी घोटाल, गोठान में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को उठाती रही है। कांग्रेस या बीजेपी किसका छत्तीसगढ़िया वाद जनता को पसंद आता है ये वक्त ही बताएगा।

आसान नहीं है सरकार की राह

भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार चल रही है। लेकिन उसके लिए भी 2023 का चुनाव आसान नहीं है। यही वजह है। कांग्रेस भी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। बीजेपी 21 प्रत्याशियों के नाम घोषित कर चुकी है। लेकिन कांग्रेस ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। कांग्रेस नेताओं के बीच भी गाहे-बगाहे गुटबाजी देखने को मिल रही है।

भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़ियावाद का आभामंडल तोड़ने पीएम मोदी और अमित शाह लगातार दौरे कर रहे हैं। सत्तावापसी के लिए हर चाल चली जा रही है। लगातार 15 सालों तक सत्ता का सुख भोगने वाली बीजेपी फिर से सत्ता में आने के लिए बेचैन है। बीजेपी नेताओं में सत्ता पाने की प्यास देखी जा सकती है। लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस से मुकाबला आसान नहीं है। 2023 का ऊंट किस करवट बैठेगा ये तो वक्त की गर्त में छिपा है।